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Lockdown in Lucknow: लॉकडाउन में मनोरंजन संग खुला संस्कार और किस्सों का खजाना, किरदारों संग लोगों ने साझा की 'रामायण' की यादें

लॉकडाउन की वजह से अब दूरदर्शन पर फिर से आने लगा मेघा सीरियल रामायण। लोगों ने साझा की यादें।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sun, 29 Mar 2020 11:05 AM (IST)Updated: Mon, 30 Mar 2020 07:21 AM (IST)
Lockdown in Lucknow: लॉकडाउन में मनोरंजन संग खुला संस्कार और किस्सों का खजाना, किरदारों संग लोगों ने साझा की 'रामायण' की यादें
Lockdown in Lucknow: लॉकडाउन में मनोरंजन संग खुला संस्कार और किस्सों का खजाना, किरदारों संग लोगों ने साझा की 'रामायण' की यादें

लखनऊ, जेएनएन। टीवी धारावाहिक महाभारत के दूरदर्शन पर एक बार फिर प्रसारित होने पर कृष्ण, द्रोपदी, कर्ण, युधिष्ठिर, गांधारी और दुर्योधन की भूमिका निभाने वाले अभिनेताओं ने जागरण के पाठकों के लिए उस दौर की यादें साझा कीं।

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भगवान कृष्ण का किरदार निभाने वाले अभिनेता नीतीश भारद्वाज ने बताया कि महाभारत के कलाकारों की प्रसिद्धि दुनियाभर में थी। खुद उनकी प्रसिद्धि का आलम यह था कि पाकिस्तान से भी प्रशंसकों के पत्र आते थे।

महाभारत को मिली अपार सफलता के कारणों पर नीतीश ने कहा, इसकी वजह चोपड़ा साहब के प्रोडक्शन की ताकत, उनकी दूरदृष्टि, मजबूत शोध टीम और काम को अंजाम देने की क्षमता थी। पंडित नरेंद्र शर्मा जी का कहानी बयां करने का अंदाज, डॉ. राही मासूम रजा के अमर संवाद और प्रत्येक अभिनेता की प्रतिबद्धता की यह देन है। भगवान कृष्ण के चरित्र के बारे में 56 वर्षीय इस अभिनेता ने कहा, मैं मानता हूं कि मुङो ‘विधि लिखित’ तौर पर यह भूमिका मिली। शायद मैं इस भूमिका के लिए ही जन्मा। वैदिक अध्ययनों में मेरी ब्राह्मणवादी परवरिश, मां के विचारपूर्ण मार्गदर्शन और मुङो महाभारत से संबंधित मराठी और हिंदी साहित्य से अवगत कराने के लिए मेरे पिता ने मुङो संस्कृत भाषा सिखाई और वरिष्ठ जनों के मार्गदर्शन में सर्वश्रेष्ठ मराठी थिएटर प्रशिक्षण का ज्ञान मिला। मेरी सफलता का सारा श्रेय मेरे जीवन के इन स्वर्गदूतों को जाता है।

अभिनेता नीतीश भारद्वाज, रूपा गांगुली, पंकज धीर, गजेंद्र चौहान, रेणुका इसरानी और पुनीत इस्सर ने दैनिक 

चीरहरण की शूटिंग के दौरान था बुखार..

बीआर चोपड़ा कृत महाभारत के बाद इसे लेकर कई और टीवी धारावाहिक बने, लेकिन उतनी लोकप्रियता और सफलता किसी को नहीं मिली। आखिर उसमें ऐसी क्या बात थी? इस प्रश्न पर रूपा गांगुली, जिन्होंने पांचाली की भूमिका की थी और वर्तमान में राज्यसभा सांसद हैं, ने कहा- पहला तो इसका संवाद बहुत सशक्त और प्रामाणिक था। उनके माध्यम से गहन ज्ञान प्राप्त होता था, जो लोगों को काफी अच्छा लगता था। शूटिंग से जुड़ीं यादें साझा करते हुए रूपा ने बताया, जब चीरहरण वाले एपिसोड की शूटिंग होनी थी, मुङो 104 डिग्री बुखार था, लेकिन फिर भी मैंने शूटिंग पर जाने का फैसला किया।

(कोलकाता से विशाल श्रेष्ठ और मुंबई से प्रियंका सिंह की प्रस्तुति।)

अजरुन की जगह बन गया कर्ण..

अंगराज कर्ण की भूमिका निभाने वाले पंकज धीर का कहना है कि महाभारत की खासियत यह थी कि इसकी कहानी भीष्म पितामह, श्रीकृष्ण, दुर्योधन, कर्ण हर किसी के नजरिए से अलग थी। इस किरदार को समझने के लिए मेरे पास केवल किताबें थीं। मैंने अपना कॉन्ट्रैक्ट अजरुन के रोल के लिए साइन किया था। मुङो बताया गया कि इस रोल के लिए बीच में मूंछें भी काटनी पड़ेगी। मैंने मना कर दिया, तो मुङो शो से चार-पांच महीने के लिए निकाल दिया गया था। फिर चोपड़ा साहब का फोन आया उन्होंने कहा कि कर्ण का रोल कर लो, इसके लिए मूंछें नहीं काटनी होगी।

देखें, समङों और सीखें..

आज के युवा भाग्यशाली हैं कि इस तरह के असाधारण धारावाहिक का प्रसारण फिर से किया जा रहा है। यह गीता के अमर दर्शन को समझने का मौका है। नई पीढ़ी के युवाओं को संवादों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। वे मानव संघर्ष के सभी पहलुओं के लिए प्रासंगिक हैं, आने वाले समय के लिए। यह भारत की विरासत का सबसे अच्छा हिस्सा है, जिसे आज की पीढ़ी देखे, समङो और सीखे।

-नीतीश भारद्वाज

38 घंटे में शूट हुआ था शरशैया वाला सीन..

धर्मराज युधिष्ठिर का किरदार निभाने वाले गजेंद्र चौहान कहते हैं कि महाभारत एक संपूर्ण स्क्रीनप्ले था। उसमें आत्मा थी। आत्मा का अर्थ लेखन, कहानी, संवाद से है। इसमें वह सबकुछ है, जो मानव जीवन में होता है। हर किसी को लगता था कि उसके घर में एक युधिष्ठिर, दुर्योधन, शकुनी, अजरुन है। उन्होंने बताया कि भीष्म पितामह का बाणों की शैया पर लेटने वाला सीन 38 घंटे में शूट हुआ था। पूरी यूनिट लगातार काम कर रही थी, क्योंकि भीष्म की भूमिका निभा रहे मुकेश खन्ना अपनी जगह से उठ नहीं सकते थे।

आंखों पर सही में बांधी थी मोटी पट्टी..

गांधारी का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री रेणुका इसरानी के लिए आंखों पर पट्टी बांध कर काम करना बहुत मुश्किल था। बकौल रेणुका, ‘पहली बार कॉस्ट्यूम डिजाइनर ने जब पट्टी बनाई, तो लगा कि पारदर्शी है। लिहाजा मैंने डिजाइनर से तीन कपड़े की परत की पट्टी बनवाई ताकि सही में इस भूमिका को महसूस कर सकूं। रिहर्सल करना पड़ती थी कि मुङो कितने कदम चलना है, गति कितनी होनी चाहिए।

महाभारत ने सिखाया कि क्या नहीं करना चाहिए..

दुर्योधन का किरदार निभाने वाले पुनीत इस्सर का कहना है कि रामायण और महाभारत दोनों ही आज के माहौल में सीख देने की बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। रामायण सिखाता है कि हमें क्या करना चाहिए और महाभारत सिखाता है कि हमें क्या नहीं करना चाहिए। इस वक्त कोरोना हमारा शत्रु है। दुर्योधन का जो वर्चस्व लोगों ने देखा वह इसलिए था कि क्योंकि मैं बहुत पढ़ता था। चोपड़ा साहब ने मुङो भीम का किरदार ऑफर किया था। मैंने कहा कि मैं दुर्योधन बनना चाहता हूं।

’ आत्म प्रकाश मिश्र (लेखक टीवी प्रस्तोता और दूरदर्शन में कार्यRम अधिशासी हैं)

वर्ष 2015 में मेरे द्वारा निर्देशित दूरदर्शन धारावाहिक विज्ञान से ध्यान की ओर का लोकार्पण करते हुए प्रदेश के पूर्व राज्यपाल राम नाईक जी ने कहा, मुङो दूरदर्शन के रामायण और महाभारत धारावाहिकों का स्मरण है। इनके प्रसारण के समय सड़कें खाली हो जाया करती थीं।

वर्ष 1990 में ईराक द्वारा कुवैत पर धावा बोलने और फिर अमेरिका द्वारा 35 देशों की मदद से ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म के सीएनएन पर सजीव प्रसारण के पहले तक भारत में दूरदर्शन का दबदबा हुआ करता था। 1959 में यूनेस्को की मदद से सप्ताह में तीन दिन मात्र आधे घंटे का प्रसारण करता था दूरदर्शन। 1982 में वह रंगीन हुआ और 1987 में रामानंद सागर द्वारा दूरदर्शन के लिए बनाए गए सीरियल रामायण ने उसे लोकप्रियता की ऊंची उड़ान दी। ऐसा नहीं है कि रामायण दूरदर्शन का पहला सीरियल था। इससे सात वर्ष पूर्व 1980 में दूरदर्शन लखनऊ बीबी नातियों वाली बनाकर दर्शकों की वाहवाही बटोर चुका था। इसके लेखक केपी सक्सेना थे। मिर्जा की भूमिका में विश्वनाथ मिश्र और बीबी के किरदार में प्रमोद बाला स्टार का दर्जा पा चुके थे। दरअसल, 80 का दशक दूरदर्शन धारावाहिकों का स्वर्ण युग था। 1984 में कुंदन शाह का ये जो जिंदगी है, 1985 में बासु चटर्जी का रजनी और 1986 में सईद अख्तर का नुक्कड़ व 1986 में ही रमेश सिप्पी का बुनियाद भारत में दूरदर्शन की मजबूत बुनियाद डाल चुके थे। 1988 में दिखाया गया बीआर चोपड़ा का महाभारत घर-घर में भगवान श्री कृष्ण का संदेश पहुंचा रहा था।

भारत का पहला सोप-ओपेरा कहे जाने वाले मनोहर श्याम जोशी के हम लोग के किरदार भागवंती, बड़की, नन्हे और बसेसरराम घर-घर में अपनी पैठ बना चुके थे। विक्रम और बेताल, चंद्रकांता और मालगुडी डेज का ऑडियो सुनकर लोग समझ जाते कि कौन सा सीरियल टेलीकास्ट हो रहा। सीवी रमन, सलमा सुलतान, अविनाश कौर सरीन और शम्मी नारंग जैसे दिग्गज समाचार वाचकों से समाचार सुनता और रात में नौ बजे के बाद घर भर हल्के फुल्के मनोरंजक और पारिवारिक धारावाहिकों का आनंद उठाता। 1990 के दशक में भारत ने बाजादवाद की आमद दर्ज की। अन्य क्षेत्रों के साथ टीवी के क्षेत्र में भी भारत और विश्व के बड़े ऑपरेटर्स कूद गए। दर्शकों की रुचि बदलने लगी। नई शताब्दी के आगमन के बाद परिवर्तन की गति और तेज होती गई। इन सबके बीच लोक सेवा प्रसारक की भूमिका लगातार निभाता दूरदर्शन नेपथ्य में जाता हुआ सा लगने लगा। आज नौ सौ से अधिक टीवी चैनलों की तरंगे आसमान में तैर रही हैं। बावजूद इसके आज भी विश्व को रामायण और महाभारत जैसे दो विश्व विख्यात महाकाव्य देने वाले हम भारतीय इन आख्यानों से जुड़कर आनंदित महसूस करते हैं। राम हमारे इतिहास बोध के महानायक हैं। दुनिया की किसी भी गाथा में नायक इतना लोकप्रिय नहीं था। इस कथा का खलनायक भी चरित्रवान है। यही कारण है कि मूवी रिव्यूज और रेंटिंग देने वाली संस्था इंटरनेट मूवी डेटाबेस में रामानंद सागर के 1987 में बने रामायण की रेटिंग 9.1 है जबकि सेक्रेड गेम्स की 8.8 और मिर्जापुर की 8.5 है। यहां तक कि 1987 में ही ऑस्कर जीतने वाली ओलिवर स्टोन की फिल्म प्लाटून की रेटिंग 8.1 है। मानना ही होगा, ओल्ड इज गोल्ड।

यादों के गलियारे से 

नवयुग डिग्री कॉलेज में इतिहास विभाग की विभागाध्यक्ष डॉॅ. शोभा मिश्र ने भी घर पर सपरिवार टीवी पर रामायण देखकर शनिवार का दिन गुजारा। उनके अनुसार आज की पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने के लिए इस तरह के सीरियल बहुत उपयोगी सिद्ध होंगे। लॉकडाउन के समय रामायण और महाभारत का पुन: प्रसारण किया जाना सराहनीय है।

हर एपिसोड से बच्चों को दूंगी सीख

रामायण और महाभारत की शुरुआत होने से मैं बहुत खुश हूं। स्मारक संरक्षण समिति की जनसंपर्क अधिकारी और व्यवस्थापक भावना सिंह ने पति रणविजय और पूरे परिवार के साथ दोनों धारावाहिक देखे। महाभारत के पहले ही एपिसोड से बच्चों ऋषिका और अभिजय को सीख दी कि जिस तरह से शांतनु ने गंगा को बिना सोचे समङो ही वचन दे दिया था, इसी तरह से कोई भी प्रॉमिस करने से पहले बहुत सोचना समझना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि हम ऐसा कोई वादा कर दें जो कि पूरा ही ना कर पाएं। वो कहती हैं कि रामायण और महाभारत के हर एपिसोड से बच्चों को कोई न कोई सीख जरूर दूंगी।

19 साल बाद लगाया दूरदर्शन चैनल

डीडी नेशनल व डीडी भारती चैनल देखे दो दशक हो गए थे, कारण कोई रोचक सीरियल न आना और कई दशक में नए चैनलों का आगमन भी कह सकते हैं। करीब 19 साल बाद मैंने डीडी भारती व डीडी नेशनल देखा तो गुजरा जमाना याद आ गया। इस्माइलगंज निवासी अरुण कुमार शुक्ला ने बताया कि माता-पिता चैनल देख कुछ भावुक भी हो गए, क्योंकि तब पूरा घर एक साथ बैठकर रामायण देखता था, आज घर वही है, कमरा वही है, लेकिन पुराने लोग नहीं रहे। अब पिता जी के बाबा और मेरे बाबा भी नहीं रहे। समय के साथ बहुत बदलाव आया, लेकिन आज भी इन दोनों चैनलों में बहुत कुछ नहीं बदला। जब न्यूज चैनल पर रामायण व महाभारत आने की बात सुनी तो शुक्रवार को ही इन चैनलों को खोज लिया था। शनिवार सुबह नौ बजे पूरे परिवार के साथ रामायण का आनंद लिया, इस दौरान पुराने किस्से भी याद आ गए, जब लोग तख्त व सोफे पर जगह न मिलने पर टाट की बोरी बिछाकर रामायण बहुत ही ध्यान से देखते थे। वह कहते हैं, आज सैकड़ों चैनल है, लेकिन घर का हर शख्स साथ बैठकर नहीं देखता। अमूमन लोगों के घरों में एक से ज्यादा टीवी हैं। सीरियल बदलकर या अपना पसंदीदा चैनल देखते हैं लेकिन रामायण व महाभारत आप बड़ों और छोटों सभी के साथ बिन किसी ङिाझक के पूरा देख सकते हैं।

तीन पीढ़ियों संग बरसों बाद देखा अपना मनपसंद सीरियल

तीनों भाइयों और अपने परिवार संग सालों बाद आज कुंडरी रकाबगंज निवासी व्यवसायी उमाशंकर अवस्थी ने महाभारत के पुराने करेक्टर देखे। बोले, समाचार पत्र में जैसे ही यह न्यूज पढ़ी थी तो प}ी और छोटे भाई सुनील और शशिकांत एवं पूरा परिवार सुबह से ही बात कर रहा था कि आज फिर से अपने पुराने सीरियल देखने हैं। हम लोग सुबह रामायण देखकर आढ़त पर पहुंचे। दोपहर महाभारत देखने के लिए फिर पौने 12 बजे ही घर पर आ गए। बेटे आशीष, बहू उपासना, बेटी प्रिया, पौत्र युवराज और अन्य परिवारीजन के साथ हॉल में बैठे और सीरियल देखना शुरू किया। शांतनु के बेटे और गंगाजी व भीष्म पितामह से संबंधित प्रसंग दिखाया गया।

कहानियों में सुना था अब साक्षी बना

डी ब्लॉक इंदिरानगर निवासी आशुतोष सिंह शनिवार को टीवी पर रामायण देखकर खुश नजर आए। वह कहते हैं कि मैंने इस लोकप्रिय धारावाहिक के बारे में बस कहानियों में सुना था। आज जब दूरदर्शन पर जब रामायण का प्रसारण दोबारा शुरू हुआ तो मैं खुद को रोक नहीं सका। मैं भी इसका साक्षी बना ताकि आने वाले भविष्य में लोगों को कहानियां सुना सकूं। अब से रोजाना इसे देखूंगा। मेरा मानना है कि हिंदी भाषा का ज्ञान प्राप्त करने के लिए भी इस सीरियल से बेहतर कोई दूसरा विकल्प नहीं है।

घर पर रामायण देखते आशुतोष सिंह

दूरदर्शन के नेशनल चैनल पर टीवी इतिहास के सबसे लोकप्रिय धारावाहिकों में से एक रामायण सीरियल की शनिवार से वापसी हुई। वहीं, डीडी भारती चैनल पर महाभारत का प्रसारण भी शुरू हुआ। एक वो समय था, जब इन धारावाहिकों को देखने के लिए सड़कों पर सन्नाटा छा जाता था, नजारा आज भी वैसा ही है, बस वजह बदल गई है। लॉकडाउन में लोगों को घरों में रहने के लिए प्रेरित करने के लिए लंबे अरसे बाद इन धारावाहिकों का पुन: प्रसारण शुरू हुआ तो मनोरंजन संग संस्कार और किस्सों का खजाना खुल गया। घर पर मौजूद बड़े-बुजुर्गो ने अपने समय का आंखों देखा हाल सुनाया तो वहीं नई पीढ़ी ने भी इन सीरियलों का खूब लुत्फ उठाया।

लाइट चली गई तो पूरे गांव ने स्टेशन पर जाकर देखी थी रामायण

प्रेम कुमार बताते हैं, लॉकडाउन के कारण जैसा नजारा सड़कों पर है, ठीक वैसा ही नजारा 90 के दशक में हुआ करता था जब सुबह-सुबह रामायण का प्रसारण शुरू होता था। मुङो आज भी अच्छी तरह याद है रामायण आने के आधा घंटा पहले ही सड़कें बिल्कुल इसी तरह वीरान हो जाती थीं। लोग अपने घरों की तरफ भागकर टेलीविजन सेट ऑन करते थे। अगर कोई समय से घर पहुंच पाने में असफल रहता था तो वह पास के किसी होटल, रेस्टोरेंट या जिस जगह पर भी टीवी उपलब्ध होता था, वहां पर रामायण देखने के लिए ठहर जाता था। खास बात थी कि उस समय रामायण का क्रेज इस हद तक था कि लोग अजनबी लोगों को भी अपने घर में बैठा लिया करते थे। इतना अधिक लोगों का रामायण के प्रति प्रेम था। रामायण के कलाकार लोगों को साक्षात राम और सीता नजर आते थे। अधिकांश घरों में जब रामायण आती थी उस समय टीवी सेट के सामने लोग अगरबत्ती और धूपबत्ती जला देते थे। इस हद तक लोगों में श्रद्धा थी कि रामायण आने से पूर्व हम लोग बच्चों को स्नान कर बैठने को कहते थे। एक बार की बात है, मैं अपने गांव में था और अचानक उस वक्त लाइट चली गई। रामायण का समय था इसलिए पूरा गांव एकत्रित हो गया। पता किया गया तो पूरे इलाके में केवल एक रेलवे स्टेशन था जहां पर जनरेटर की व्यवस्था थी। पूरा का पूरा गांव स्टेशन की ओर कूच कर गया। वहां पहले मास्टर ने कहा, जनरेटर तो है हमारे पास टीवी उपलब्ध नहीं है। आनन-फानन कुछ लोग पास ही स्थित गांव गए और एक टीवी सेट ले आए। वहीं पर टीवी लगाया गया और लोगों ने खुले मैदान में बैठकर रामायण देखी। इस हद तक लोगों को इस धारावाहिक का इंतजार रहता था। रामायण सीरियल ने पूरे हिंदुस्तान को एक सूत्र में पिरोकर रख दिया था। वाकई इससे बहुत सुखद और ना भूलने वाली यादें हैं।

ट्रैक्टर की बैट्री लेकर जाते थे देखने

अशोक कुमार पांडेय ने कहा कि रामायण जब शुरू हुआ था तो ऐसा लगा मानो पूरी श्रीरामचरित मानस का सीधा प्रसारण चल रहा हो। लालकुआं में रहता था। मेरे पास तो टीवी नहीं थी, पड़ोसी के यहां छोटी ब्लैक एंड व्हाइट टीवी हुआ करती थी। रामायण की लोकप्रियता की वजह से उस समय बिजली तो नहीं कटती थी, लेकिन एक दो बार पहले धोखा दे चुकी थी। ऐसे में कोई रिस्क नहीं लिया जा सकता था। मेरे दोस्त के पास ट्रैक्टर था। ट्रैक्टर की बैट्री से छोटी वाली टीवी चल जाती थी, दोनों लोग जाते थे क्योंकि मेरे पास बैट्री होती थी तो टीवी के सबसे आगे बैठने का मौका मिलता था। पांच फीट के ऊपर टीवी रखी रहती थी और सभी लोग आगे ही बैठना चाहते थे।

एक घंटे पहले से शुरू हो जाती थी तैयारी

सीरियल शुरू होने के एक घंटे पहले से ही तैयारियां पूरी हो जाती थीं। इस समय का लॉकडाउन जैसा दृश्य उस समय हर रविवार को सुबह नौ से दस के बीच नजर आता था। एक बार फिर रामायण ने पुरानी यादों को ताजा कर दिया है। बंगला बाजार के सुनील गुप्ता ने पत्नी और बेटे पुष्कर के साथ रामायण का लुत्फ उठाया। उस समय की बात करें तो बंगला बाजार में मात्र एक दो घरों में ब्लैक एंड व्हाइट टीवी होता था। एक साथ मोहल्ले के लोग जाते थे। आगे बैठने की होड़ लगी रहती थी। कुछ बुजुर्गों की जगह निर्धारित हो चुकी थी। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्श को एक बार फिर से देखने को मिल रहा है। वैसे तो रामायण के नाम पर कई सीरियल आए, लेकिन रामानंद सागर जैसे जीवंत चित्रण किसी में नजर नहीं आया।

खिड़कियों से देखते थे रामायण

इंदिरा नगर के छोटे लाल चौरसिया ने बताया कि लॉकडाउन के चलते बेटी अंजली और बेटा शेखर भी घर पर हैं। रामायण शुरू हुआ तो एक साथ तीन पीढ़ियों ने इसका आनंद लिया। मुङो याद है कि उस समय रामायण के समय घरों के अंदर तो छोड़िए, खिड़कियों से एक झलक पाने की बेकरारी नजर आती थी। एक साथ कई लोग खड़े रहते थे। प}ी तो पहले ही हिदायत दे देती थीं कि जो मांगना हो मांग लो, रामायण के समय कुछ न मांगना। विज्ञापन तक कोई नहीं छोड़ता था।

याद आया वो एंटीना एडजस्ट करना

डाक सेवाएं लखनऊ परिक्षेत्र के निदेशक केके यादव ने भी सपरिवार टीवी पर रामायण और महाभारत का लुत्फ उठाया। बताते हैं, 1987 में जब यह टीवी पर शुरू हुआ था, तब मेरी उम्र मात्र 10 साल की थी। उस दौर में तो अधिकतर लोगों के घर में टीवी भी नहीं थी। अभी भी याद आता है छत पर खड़े होकर एक व्यक्ति द्वारा एंटीना को सही दिशा में एडजस्ट करते रहना, ताकि टीवी पर ठीक से रामायण देख सकें। रामायण के पुन: प्रसारण से सबसे अच्छा तो बच्चों के लिए रहा। मेरी दोनों बेटियों अक्षिता और अपूर्वा ने इसका खूब आनंद लिया। उनके द्वारा पुस्तकों में पढ़ी रामायण को धारावाहिक रूप में देखने का अनुभव ही काफी आनंददायी रहा। जहां बच्चे दिन भर विभिन्न चैनल्स पर काटरून देखते हैं, वहां रामायण को देखना एक नया अनुभव देता है।


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