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बीते दिनों की बात हुई 'मौका मुरत्तिब' और 'बयान तहरीर'यूपी पुलिस में खत्म हो रहा उर्दू-फारसी का वजूद

उत्तर प्रदेश में एफआइआर व जीडी के ऑनलाइन होने से बदली भाषाई व्यवस्था। उर्दू और फारसी भाषा का खत्म हुआ वजूद।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Thu, 28 Nov 2019 07:27 AM (IST)Updated: Fri, 29 Nov 2019 08:16 AM (IST)
बीते दिनों की बात हुई 'मौका मुरत्तिब' और 'बयान तहरीर'यूपी पुलिस में खत्म हो रहा उर्दू-फारसी का वजूद
बीते दिनों की बात हुई 'मौका मुरत्तिब' और 'बयान तहरीर'यूपी पुलिस में खत्म हो रहा उर्दू-फारसी का वजूद

लखनऊ, (आलोक मिश्र) । '.... बामुद्दयत श्री नरेंद्र शर्मा उपस्थित हाजा नाका एक किता तहरीर हिंदी वादी बाबत मेरे भाई सुरेंद्र शर्मा की हत्या अभियुक्त काली, माधव और जगन ने गोली मारकर कर दी। इस संबंध में तहरीर के आधार पर थाना हाजा पर मुकदमा अपराध संख्या 22/2010 दर्ज किया गया। सूचना द्वारा आरटी सेट व दूरभाष के जरिए से उच्च अधिकारीगण को दी गई। वादी को बाद प्रति दोयम देकर रवाना किया गया। तथा नकल चिक व नकल रपट वास्ते विवेचना और आवश्यक कार्रवाई हेतु बाद देने पंचायतनामा जिल्द व अन्य दीगर कागजात देकर रवाना घटनास्थल किया गया।'

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पता नहीं ऊपर लिखी भाषा को आप कितना समझे या नहीं समझे, लेकिन यह वह पुलिसिया शब्दावली है जो आज के जमाने में महकमे के लोगों के लिए भी अबूझ पहेली है। भाषाई गुलामी का आलम यह था कि किसी मुल्जिम के हवालात में खाना खाने से मना करने पर मुंशी जीडी में लिखते थे कि 'मुल्जिम मुनकिर है। हश्त ख्वाहिश खुराक दी जाएगी'। वैसे इसका आशय यह है कि 'आरोपित ने खाना खाने से मना कर दिया, मांगने पर उसे भोजन दिया जाएगा।'

दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिसिया तहरीर में ऐसे ही शब्दावली से निजात पाने के लिए कहा है, हालांकि प्रदेश में इसकी शुरुआत पहले ही हो चुकी है। अब बीए, एमए, पीएचडी से लेकर कंप्यूटर कोर्स करने के बाद पुलिस सेवा में आये युवाओं ने उर्दू-फारसी के ऐसे शब्दों के चक्रव्यूह से खुद को निकालना शुरू कर दिया है। ऑनलाइन एफआइआर के सिस्टम ने तो थानों में लिखा-पढ़ी की परंपरागत शैली की रीढ़ ही तोड़ दी है। एडीजी अभियोजन आशुतोष पांडेय कहते हैैं-'यह समय की मांग है। इसके बिना हम मित्र पुलिस बन ही नहीं सकते। अदालतें भी अब सहज शब्दों को ही पसंद करती हैैं। अभियोजन विभाग में भी लिखापढ़ी सरल ङ्क्षहदी व अंग्रेजी भाषा में ही की जा रही है।' 

अंग्रेजों ने बोई थी भाषा की यह फसल

दरअसल, अंग्रेजों के जमाने से पुलिस महकमे में उर्दू-फारसी भाषा की प्रधानता रही है। थाने के सबसे अहम दस्तावेज रजिस्टर नंबर आठ (ग्राम अपराध रिकार्ड पुस्तिका) में पहले सबकुछ उर्दू में ही दर्ज होता था। इस रजिस्टर में किसी गांव, कस्बे अथवा मोहल्ले की आबादी, चौहद्दी, जातीय समीकरण, हर व्यक्ति का नाम-पता, उसके खिलाफ दर्ज किसी मुकदमें, साम्प्रदायिक घटना, मेला, तीज-त्योहार व हिस्ट्रीशीट समेत सभी जरूरी जानकारियां दर्ज होती हैं। वर्ष 1965 के बाद थाने के ऐसे दस्तावेजों में ङ्क्षहदी भाषा का चलन बढ़ा। पुलिस में उच्च शिक्षा हासिल युवाओं की भर्तियों ने भी वर्ष 2000 के बाद तस्वीर को तेजी से बदलना शुरू किया। इन युवाओं में अधिकांश को उर्दू आती भी नहीं थी। 

कंप्यूटरीकरण ने दिलाई जटिल शब्दों से मुक्ति

वर्ष 2011 में क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग सिस्टम (सीसीटीएनएस) की अवधारणा के बाद थानों को कंप्यूटरीकृत करने की दिशा में कदम बढ़े। उत्तर प्रदेश में वर्ष 2014 में पहली बार कंप्यूटर ऑपरेटरों की भर्ती हुई। कंप्यूटर ऑपरेटर के 2106 पद सृजित किये गये थे। वर्तमान में करीब 1900 कंप्यूटर ऑपरेटर पुलिस विभाग में काम कर रहे हैं और करीब 650 कंप्यूटर ऑपरेटरों की भर्ती इसी साल की गई है, जो जल्द पुलिस का हिस्सा होंगे। एडीजी तकनीकी सेवाएं असीम अरुण का कहना है कि उत्तर प्रदेश के सभी थानों को सीसीटीएसएन से जोड़ा जा चुका है और वर्ष 2016 से एफआइआर रजिस्ट्रेशन, केस डायरी व जीडी की लिखापढ़ी कंप्यूटर के जरिये ऑनलाइन की जा रही है। इसकी भाषा ङ्क्षहदी व अंग्रेजी है।

क्या कहता है कोर्ट 

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि एफआइआर दर्ज करने में उर्दू व फारसी शब्दों का प्रयोग बंद होना चाहिए। रिपोर्ट आसान भाषा में दर्ज की जानी चाहिए। 

1995 से उर्दू अनुवादकों की भर्ती नहीं : पुलिस में पहले उर्दू अनुवादकों की भर्ती बेहद अहम थी। हालांकि समय के साथ इनकी उपयोगिता कम होती चली गई। वर्ष 1995 में अंतिम बार पुलिस में उर्दू अनुवादकों की भर्ती हुई थी। 

यह थे पुलिसिया दस्तावेजों के अनिवार्य शब्द

  • अदम तामील - सूचित न होना। 
  • अदम तकमीला - अंकन न होना। 
  • अदम मौजूदगी - बिना उपस्थिति 
  • अहकाम - महत्वूपर्ण। 
  • गोस्वारा - नक्शा। 
  • फर्दअफराद - एक व्यक्ति। 
  • मालमसरूका - लूटी अथवा चोरी गई संपत्ति। 
  • मजरूब - पीडि़त। 
  • मुजामत - झगड़ा। 
  • मुचलका - व्यक्तिगत पत्र। 
  • रोजनामचाआम - सामान्य दैनिक। 
  • रोजनामचाखास - अपराध दैनिक। 
  • सफीना - बुलावा पत्र। 
  • हाजा - स्थान अथवा परिसर। 
  • चिक खुराक - थाने पर आरोपित के खाने पर हुआ खर्च। 
  • नकल रपट - किसी लेख की नकल। 
  • नकल चिक - एफआइआर की प्रति। 
  • मौका मुरत्तिब - घटनास्थल पर की गई कार्रवाई। 
  • बाइस्तवा - शक। 
  • तरमीम - बदलाव करना अथवा बदलना। 
  • चस्पा - चिपकाना। 
  • जरे खुराक - खुराक का पैसा। 
  • जामातलाशी - वस्त्रों की तलाशी। 
  • बयान तहरीर - लिखित कथन। 
  • नक्शे अमन - शांतिभंग। 

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