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अब लखनऊ की हवा में नहीं घुलेगी मृत पशुओं की दुर्गंध, तैयार हुआ कारकस यूटिलाइजेशन प्लांट

अगले महीने शहर को एक बड़ी सौगात मिलने जा रही है। मृत पशुओं की दुर्गंध भी नहीं लगेगी तो उनका गोश्त और हड्डी भी उपयोगी हो जाएगी। बाद मोहान रोड शिवरी में कारकस यूटिलाइजेशन प्लांट तैयार हो गया है।

By Rafiya NazEdited By: Published: Tue, 23 Feb 2021 09:56 AM (IST)Updated: Tue, 23 Feb 2021 09:56 AM (IST)
लखनऊ में कारकस यूटिलाइजेशन प्लांट तैयार, संचालन के लिए होगा ग्लोबल टेंडर।

लखनऊ [अजय श्रीवास्तव]। अगले महीने शहर को एक बड़ी सौगात मिलने जा रही है। अब शहर में मरने वाले पशुओं को निस्तारण करने का सिरदर्द नहीं रहेगा। मृत पशुओं की दुर्गंध भी नहीं लगेगी तो उनका गोश्त और हड्डी भी उपयोगी हो जाएगी।एक बार मशीन में पशु का शव गया तो सब कुछ अलग-अलग हो जाएगा और उसे मुर्गी -मछली का दाना बनेगा तो वसा तक उपयोग विभिन्न वस्तुओं में उपयोग हो सकेगा।

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लंबे इंतजार के बाद मोहान रोड शिवरी में कारकस यूटिलाइजेशन प्लांट तैयार हो गया है। नगर निगम अब प्लांट का संचालन कराने के लिए ग्लोबल टेंडर करने जा रहा है। उम्मीद है कि टेंडर प्रक्रिया मार्च तक पूरी हो जाएगी और अप्रैल से प्लांट काम करने लगेगा।

हर दिन मरते हैं सौ कुत्ते-बिल्ली

नगर निगम सीमा में हर दिन सौ से अधिक कुत्ते व बिल्ली मरते हैं, जिसका सुरक्षित तरह से निस्तारण करने का कोई इंतजाम नहीं है। नगर निगम के जल्लाद (सफाई कर्मी) शिकायत मिलने पर मरे कुत्ते व बिल्ली को उठा तो लाते हैं लेकिन उसे किसी नाले या फिर सड़क किनारे किसी जंगल में फेंक देते हैं। ऐसे में कुछ दिन बाद सडऩे के बाद मृत पशुओं की दुर्गंध आने-जाने वालों की नॉक में पहुंचकर मूड खराब कर देता है। इसी तरह बड़े साइज के मृत पशुओं को ले जाने का जिम्मा ठेकेदार का होता है, जो खाल व हड्डी निकालकर खुले में अवशेष छोड़ देता है। ऐसे में आसपास के इलाकों में दुर्गंध होने लगती है।

1998 में शहर से खिसक गया था प्लांट

वैसे तो 1998 से ही लखनऊ में कारकस यूटिलाइजेशन लगाया जाना था। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की इस महत्वाकांक्षी योजना को लखनऊ में जगह नहीं मिल पाई थी। हरदोई रोड पर जिस जगह को चिंहित किया गया था, वहां आसपास आबादी होने से विरोध हो गया था और जमीन की आस में यह प्लांट लखनऊ के हाथों से खिसक गया था।

हरदोई रोड के शिवरी में बना है यूटिलाइजेशन प्लांट

  • लागत 4.10 करोड़
  • शासन ने चार करोड़ का बजट उपलब्ध करा दिया है।
  • हर दिन डेढ़ सौ मृत पशुओं का हो सकेगा निस्तारण

ऐसे होगा उपयोग

शहर के विभिन्न इलाकों से आने वाले मृत पशुओं को ऊपर से साफ करने के बाद उसकी कुकिंग की जाएगी। ऐसा इसलिए किया जाएगा, जिससे आधुनिक प्लांट में जाने के बाद उसमे दुर्गंध न आ सके। अगर पशु की किसी उपयोग में आ सकती है तो उसका चमड़ा अलग हो जाएगा। इस चमड़े को साफ करने के बाद किसी टेनरी में भेजा जाएगा। गोश्त व अन्य शेष अवशेष का चूरा बन जाएगा। जब वह सूख जाएगा तो उससे मुर्गी दाना और मछली का दाना तैयार किया जाएगा। इस दाने का उपयोग खेती में भी किया जा सकेगा। इसके अलावा वसा का उपयोग तमाम चीजों को तैयार करने में होगा।


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