IISF-2018: देश के परमाणु संयंत्र साफ करेंगे रोबोट, खुद समझ कर लेगें एक्शन
आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस बेसिस पर करेंगे काम, खुद समझकर लेंगे एक्शन। रेडिएशन से बच सकेगा स्टाफ, डेंजर जोन में हो सकेगी बेहतर सफाई।
लखनऊ[संदीप पांडेय]। आने वाले समय में देश के परमाणु संयंत्रों में इंसान नहीं रोबोट सफाई का जिम्मा संभालेंगे। सफाई के लिए नई पीढ़ी के रोबोट तैनात किए जाएंगे। आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस तकनीक पर आधारित रोबोट्स खुद समझ कर एक्शन लेने में समक्ष होंगे। लिहाजा, काम के लिए इन्हें बार-बार कमांड देने की आवश्यकता नहीं होगी।
यह जानकारी अंतरराष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव में आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस पर काम कर रहे वैज्ञानिकों ने दीं। आइआइटी खडग़पुर के प्रो.पीके विश्वास व आइएसआइ कोलकता के प्रो.आशीष घोष के मुताबिक देश में नई पीढ़ी का रोबोट विकसित करने पर काम चल रहा है। ये रोबोट सामान्य से हटकर होंगे। मसलन, हार्डवेयर के बजाए इनमें सॉफ्टवेयर बेस पर काम अधिक होगा। वहीं रोबोट का संचालन रिमोट कंट्रोल, ह्यूमेन बेस्ड प्रोसेसिंग के बजाए आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस के आधार पर होगा। इसके लिए ब्रेन पावर की कॉपी पर सॉफ्टवेयर तैयार हो रहा है। इस सॉफ्टवेयर की विभिन्न एप्लीकेशन में रोबोट द्वारा इंफॉर्मेशन कलेक्ट करना, उसे एनालाइज करना और फिर स्वत: एक्शन के लिए प्रेरित करना होगा। यानी कि रोबोट खुद सोच-समझकर कार्य करेगा।
टै्रफिक भी संभाल सकेगा नया रोबोट
प्रो.पीके विश्वास ने बताया कि खडग़पुर आइआइटी में इसके लिए सेंटर फॉर आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस रिसर्च का गठन किया गया है। इसमें नई पीढ़ी के रोबोट पर 40 फीसद काम हो चुका है। यह रोबोट सबसे पहले परमाणु संयंत्रों की सफाई में तैनात किए जाएंगे। कारण, इससे कर्मचारियों को रेडिएशन (विकिरण) के खतरे से बचाया जा सकेगा। वहीं संयंत्रों के चप्पे-चप्पे पर सफाई भी संभव हो सकेगी। इंटेलीजेंस रोबोट ट्रैफिक संचालन का भी काम कर सकेंगे। यह ट्रैफिक का ऑटोमैटिक नहीं बल्कि मौजूदा स्थिति के अनुसार संचालन कर सकते हैं। यानी कि वाहनों की भीड़ के हिसाब से रूट को ओपन व क्लोज करने का निर्णय ले सकेंगे।
हृदय-शुगर का जीन बेस्ड इलाज जल्द
कोलकता के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. पार्थ मजूमदार ने कहा कि देश में अधिकतर बीमारियों का जनरल इलाज किया जा रहा है। वहीं भविष्य में कैंसर की तरह हृदय रोग व डायबिटीज का भी जीन बेस्ड इलाज हो सकेगा। इससे मरीज का सटीक इलाज मुमकिन होगा। इसके लिए पैथोलॉजी की तरह जीनोमिक लैब की स्थापना करना होगी।