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सरकारी सेवा में रहते हुए की थी व्यवस्था पर करारी चोट: श्रीलाल शुक्ल

प्रख्यात साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल ने दस उपन्यास चार कहानी संग्रह नौ व्यंग्य संग्रह दो विनिबंध और एक आलोचना पुस्तक कालजयी उपन्यास रागदरबारी ने उन्हें हर वर्ग का पसंदीदा लेखक बना दिया। उनकी राग दरबारी 1968 में छपी थी।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Wed, 28 Oct 2020 11:19 AM (IST)Updated: Wed, 28 Oct 2020 05:34 PM (IST)
सरकारी सेवा में रहते हुए की थी व्यवस्था पर करारी चोट: श्रीलाल शुक्ल
प्रख्यात साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल (31 दिसंबर 1925 - 28 अक्टूबर 2011) पुण्यतिथि पर याद किए गए।

लखनऊ, जेएनएन। दस उपन्यास, चार कहानी संग्रह, नौ व्यंग्य संग्रह, दो विनिबंध और एक आलोचना पुस्तक...प्रख्यात साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल ने इतना कुछ रचा, पर उनके कालजयी उपन्यास 'रागदरबारी' ने उन्हें हर वर्ग का पसंदीदा लेखक बना दिया। राग दरबारी 1968 में छपा। राग दरबारी का 15 भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी में भी अनुवाद प्रकाशित हुआ। आज तक इस उपन्यास की लोकप्रियता बनी हुई है। ग्रामीण जीवन के अतरंगी अनुभव और पल-पल परिवर्तित होते परिदृश्य को उन्होंने बारीकी से विश्‍लेषित किया। श्रीलाल शुक्ल ने 1949 में राज्य सिविल सेवा से नौकरी शुरू की। 1983 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से निवृत्त हुए। उनका विधिवत लेखन 1954 से शुरू हुआ। उन्होंने सरकारी सेवा में रहते हुए ही राग दरबारी के माध्यम से व्यवस्था पर करारी चोट की थी। एक उद्देश्य के साथ व्यंग्य लेखन किया और व्यंग्य लेखन का एक अलग ही मानक स्थापित किया। भारत के गांवों और ग्रामीण जीवन के यथार्थ को बयां करते उपन्यास राग दरबारी के लिए इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित भी किया गया। बाद में इस पर दूरदर्शन धारावाहिक भी बना। श्रीलाल शुक्ल को 2008 में पद्ममभूषण से विभूषित किया गया। राग विराग श्रीलाल शुक्ल का आखिरी उपन्यास था। राग दरबारी के अलावा मकान, पहला पड़ाव, अज्ञातवास और विश्रामपुर का संत भी इनकी उल्लेखनीय कृतियां रहीं। इनका पहला प्रकाशित उपन्यास सूनी घाटी का सूरज 1957 और पहला प्रकाशित व्यंग्य अंगद का पांव 1958 है।

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श्रीलाल शुक्ल की कलम आज भी खासकर युवा लेखकों के लिए प्रेरणास्रोत बनी है। व्यंग्यकार पंकज प्रसून की किताब द लंपटगंज में भी राग दरबारी की झलक दिखती है। श्रीलाल शुक्ल को याद करते हुए पंकज प्रसून कहते हैं, उन्होंने सिर्फ ग्रामीण नहीं, नगरीय जीवन को भी उधेड़ा। हमारे सामने यथार्थ रखा, जो हर किसी को पसंद आया, आज भी उनके कद्रदानों की कोई कमी नहीं। वो एक साहसी साहित्यकार के रूप में हमारी स्मृतियों में हमेशा जीवतं रहेंगे।

अस्पताल में किया गया था ज्ञानपीठ से सम्मानित

1969 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिलने के 42 साल तक ज्ञानपीठ का इंतजार करना पड़ा। इस बीच उन्हें बिरला फ़ाउन्डेशन का व्यास सम्मान, यश भारती और पद्म भूषण पुरस्कार भी मिले। लंबे समय से बीमार चल रहे शुक्ल को 18 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे बी. एल. जोशी ने अस्पताल में ही ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया था। उन्हें 16 अक्टूबर को पार्किंसन बीमारी के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 28 अक्टूबर 2011 को वो हमेशा के लिए सबसे दूर चले गए। वह 86 वर्ष के थे।


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