लखनऊ हाई कोर्ट: कूटरचित प्रमाणपत्र के जरिये नौकरी हासिल करने वाली मुस्लिम महिला को राहत नहीं
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एससी (अनुसूचित जाति) के कूटरचित प्रमाणपत्र के जरिये सहायक अध्यापक पद पर 21 वर्ष से ज्यादा समय तक नौकरी करने वाली मुस्लिम महिला को राहत देने से इन्कार कर दिया। मामला संज्ञान में आने पर उसकी सेवाएं समाप्त कर दी गई थीं।
लखनऊ, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एससी (अनुसूचित जाति) के कूटरचित प्रमाणपत्र के जरिये सहायक अध्यापक पद पर 21 वर्ष से ज्यादा समय तक नौकरी करने वाली मुस्लिम महिला को राहत देने से इन्कार कर दिया। मामला संज्ञान में आने पर उसकी सेवाएं समाप्त कर दी गई थीं। यह आदेश जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने मुन्नी रानी की याचिका को खारिज करते हुए पारित किया। याचिका में हरदोई के जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के दो जुलाई 2021 द्वारा याची की अध्यापिका के पद पर नियुक्ति को निरस्त करते हुए उसकी सेवाओं को समाप्त कर दिया गया था।
सुनवाई के दौरान तलब सर्विस रिकार्ड देखने पर कोर्ट ने पाया कि याची को 30 नवम्बर 1999 को सहायक अध्यापिका के पद पर नियुक्ति मिली थी। याची ने खुद को अनुसूचित जाति से संबंधित बताते हुए जाति प्रमाणपत्र भी लगाया था। वर्ष 2004 में उसे प्रधानाचार्या के पद पर प्रोन्नति भी मिली। बाद में राजीव खरे नामक व्यक्ति ने हरदोई के जिलाधिकारी को इस संबंध में शिकायत की। जिसके बाद जांच में पाया गया कि याची को जाति प्रमाणपत्र पांच नवंबर 1995 को लखनऊ के तहसीलदार सदर द्वारा जारी किया गया है। वहीं, याची के आवेदन में उसकी जाति अंसारी लिखी हुई पाई गई। बावजूद इसके याची ने कूटरचित प्रमाणपत्र के जरिये नौकरी हासिल की थी।