दूषित जलापूर्ति पर नौकरशाहों की बेफिक्री से NGT नाराज, पूछा- आखिर कब देंगे साफ पानी
सीपीसीबी के पास जमा करें गारंटी के पांच करोड़ रुपये।
लखनऊ, [रूमा सिन्हा]। सूबे में जहर उगलते हैंडपंपों, प्रदूषित नदियों, सीवेज, औद्योगिक प्रदूषण से दांव पर लगी आम आदमी की सेहत के मुद्दे को एनजीटी ने प्रदेश सरकार की घोर विफलता मानी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की हिंडन, काली, कृष्णनी नदियों के इर्द-गिर्द विषाक्त भूजल, नदी प्रदूषण, दूषित जलापूर्ति से जुड़े मामलों में जिम्मेदार तंत्र द्वारा चार वर्षों से कोई कार्रवाई न करने से खफा एनजीटी ने नौकरशाहों एव जिम्मेदार तंत्र को जमकर लताड़ लगाई है। पूछा है कि आखिर लोगों को साफ पानी कब तक मुहैया कराएंगे।
कमेटी ने जांच में पाया कि विषाक्त पानी उगलते हैंडपंपों को अभी तक सील नहीं किया गया है। वहीं, प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षित जलापूर्ति के भी कोई प्रयास नहीं किए गए हैं। दूषित पानी पीने से बीमार पीडि़तों को राहत देने के लिए चिन्हित भी नहीं किया गया है। यही नहीं, कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि मुजफ्फरनगर, शामली, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर में गैर शोधित सीवेज व औद्योगिक कचरा आज भी भी ङ्क्षहडन, काली को मैला कर रहे हैं।
ट्रिब्यूनल ने कड़े आदेश दिए हैं कि राज्य सरकार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के पास तुरंत पांच करोड़ की राशि बतौर गारंटी जमा करें। अगले छह माह में यदि कार्ययोजना लागू नहीं हुई तो गारंटी राशि जब्त कर ली जाएगी। मुख्यसचिव खुद देखें कि प्रभावित क्षेत्रों में लोगों को साफ पानी मुहैया हो। कमेटी के प्रति सरकारी तंत्र के लापरवाह रवैये से नाराज ट्रिब्यूनल ने इसके संचालन से जुड़ी एक्शन रिपोर्ट को भी एक माह के भीतर मांगा है।
उद्योगों की बंदी पर मॉनीटरिंग कमेटी ने उठाए सवाल
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के विरुद्ध वाटर एक्टके दुरुपयोग का मामला गरमा गया है। एनजीटी द्वारा पर्यावरण संरक्षण के लिए गठित मॉनीटरिंग कमेटी ने कहा है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जल प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण एक्ट 1974 की धारा 32 का दुरुपयोग करते हुए प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में उद्योगों को बंद करा दिया। उद्योगों की बंदी की कार्रवाई गैरकानूनी व जल्दबाजी भरी ही नहीं, बल्कि अधिकारों का सीधा दुरुपयोग है। इससे सूबे में औद्योगिकरण प्रभावित होगा।
रिपोर्ट के अनुसार, बीते महीनों में करीब 15 उद्योगों को धारा 32 के प्रावधानों के तहत बंद करने के आदेश बोर्ड ने जारी किए हैं। यह धारा आपातकालीन स्थिति में तभी लागू होती है। कमेटी ने कहा है कि बोर्ड ने बिना ऐसे हालातों का हवाला दिए उद्योगों को सीधे बंद कर दिया। दिलचस्प यह भी है कि बोर्ड ने कई उद्योगों को धारा 32 के तहत बंद किया और कार्रवाई सामान्य मानी जाने वाली धारा 33 के तहत की जा रही है जो विरोधाभासी है। बेहतर होता कि एनजीटी के आदेशों के अनुसार बंदी के बजाय उद्योगों से पर्यावरण क्षतिपूर्ति वसूली जाती।