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KGMU: ट्रॉमा सेंटर में 32 डॉक्टरों की टीम के साथ न्यूरो का वार्ड तैयार, फिर भी सेवा का इंतजार

केजीएमयू के न्यूरोलॉजी विभाग में 32 डॉक्टरों की टीम फिर भी नहीं मिल रही इमरजेंसी सेवा। मरीज निजी अस्पतालों में लुटने के लिए मजबूर।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Mon, 13 May 2019 08:24 PM (IST)Updated: Tue, 14 May 2019 08:39 AM (IST)
KGMU: ट्रॉमा सेंटर में 32 डॉक्टरों की टीम के साथ न्यूरो का वार्ड तैयार, फिर भी सेवा का इंतजार
KGMU: ट्रॉमा सेंटर में 32 डॉक्टरों की टीम के साथ न्यूरो का वार्ड तैयार, फिर भी सेवा का इंतजार

लखनऊ, जेएनएन। केजीएमयू के न्यूरोलॉजी विभाग में डॉक्टरों की भरमार है। इनके वेतन पर हर माह सरकार लाखों रुपये खर्च कर रही है, लेकिन इमरजेंसी में इलाज न मिलने की वजह से मरीज निजी अस्पतालों में लुटने के लिए मजबूर हैं। स्थिति ये है कि ट्रॉमा में वार्ड तैयार होने के बावजूद ताला लगा हुआ है।

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केजीएमयू के न्यूरोलॉजी विभाग में 32 डॉक्टर हैं। इसके बावजूद विभाग में इमरजेंसी सेवा शुरू नहीं की जा रही है। डॉक्टर सिर्फ ओपीडी और वार्ड में राउंड लेकर ड्यूटी पूरी कर रहे हैं। ये हाल तब है, जब ट्रॉमा सेंटर के भूतल पर इमरजेंसी रन करने के लिए छह बेड का वार्ड तैयार है। यहां बेडों के साथ-साथ ऑक्सीजन पाइप समेत अन्य संसाधन भी जुटा दिए गए हैं। 

मई के पहले सप्ताह में शुरू करने का था दावा

दैनिक जागरण द्वारा इमरजेंसी सेवा रन न करने पर सवाल उठाए गए। इसके बाद सीएमएस डॉ. एसएन शंखवार ने कुलपति से वार्ता का हवाला देकर मई के प्रथम सप्ताह में इमरजेंसी सेवा रन करने का दावा किया। मगर, अब भी छह बेडों के वार्ड पर ताला लगा हुआ है। उधर, मरीज भटकने के लिए मजबूर हैं।

सिर्फ दो संस्थानों में इलाज, भटक रहे मरीज

राजधानी में केजीएमयू, पीजीआइ, लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान मिलाकर तीन सुपर स्पेशियलिटी इंस्टीट्यूट हैं। वहीं, बलरामपुर, लोहिया संयुक्त अस्पताल, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी (सिविल), लोकबंधु राजनारायण, बीआरडी, आरएलबी, ठाकुरगंज प्रमुख जिला अस्पताल हैं। इनमें से न्यूरोलॉजी के इलाज का विकल्प सिर्फ केजीएमयू, पीजीआइ व लोहिया संस्थान में ही है। मगर, न्यूरो इमरजेंसी सिर्फ पीजीआइ व लोहिया संस्थान में ही हैं। वहीं, किसी भी जिला अस्पताल में न्यूरोलॉजी के डॉक्टर नहीं हैं। ऐसे में पैरालिसिस, नॉन इंटरवेंशनल हेड इंजरी, स्ट्रोक, कोमा, मिर्गी, बे्रन टीबी के गंभीर मरीज इलाज के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं। मरीजों निजी अस्पतालों में महंगा इलाज कराना पड़ रहा है।   

बलरामपुर में सिर्फ सर्जन, अन्य जगह सन्नाटा

बलरामपुर अस्पताल 776 बेड का है। मगर अस्पताल में एक न्यूरो सर्जन एमसीएच हैं। एक एमएस डिग्री धारक प्रशिक्षण प्राप्त हैं। वहीं, न्यूरो डीएम कोई नहीं है। यहां एमडी मेडिसिन डॉ. पीके मिश्रा न्यूरो के मरीज देखते थे। वे सीएमओ बन गए हैं। ऐसे में अब फिजीशियन ही मरीजों को देखते हैं। साथ ही 401 एक बेड के सिविल और 467 बेड के लोहिया अस्पताल में  न्यूरोलॉजी के डॉक्टर नहीं हैं। इसके अलावा बीआरडी, आरएलबी, लोकबंधु तो विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी से ही जूझ रहे हैं।

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