जनसेवक की ये ठिठोलियां वे अठखेलियां...उफ्फ, जोशीले नेताजी की ऊर्जा देख कोरोना भी डर गया
आपदा के शुरुआती दिनों में आक्सीजन और बेड के लिए अपने मतदाताओं के सामने असहाय खड़े रहने वाले नेतागण कोरोना आचार संहिता के उल्लंघन में बहुत आगे हैं। चिकित्सा शिक्षा मंत्री सुरेश खन्ना हर सार्वजनिक कार्यक्रम में बिना मास्क देखे जाते हैं।
लखनऊ, [आशुतोष शुक्ल]। अद्भुत दृश्य है। आगे नेताजी चल रहे हैं और पीछे समर्थक। चहुंओर प्रसन्नता का वातावरण है। आनंद का सृजन हो रहा है। मंगलगीत बज रहे हैं। नेताजी के हाथ में एक लंबा पाइप है जिससे वे सैनेटाइजर का छिड़काव कर रहे हैं। मनुष्यों के साथ-साथ पेड़-पौधे, ऊंची झाडिय़ां सब सैनिटाइजर का प्रसाद पा रहे हैं। कोई रह नहीं गया है। नेताजी कृपा बरसाने वाली मुद्रा में हैं। हाथ का पाइप आसमान की ओर भी चल रहा है। सैनिटाइजर होली का रंग हो गया है। हंसते-हंसते छिड़काव करते हैं। छिड़काव करते-करते हंसते हैं। बिना मास्क वाले जोशीले नेताजी की ऊर्जा देख कोरोना की पलकें लाज से झुक गई हैं और वह भागकर हया के पर्दे में जा छुपा है। कोरोना सैनिटाइजर से नहीं, नेताजी के जोश से डर गया है। बेचारा इसी में गनीमत मान रहा है कि नेताजी अप्रैल में नहीं प्रकट हुए अन्यथा उसका आतंक धरा रह जाता। ये नेताजी हैं उन्नाव सदर के भाजपा विधायक पंकज गुप्ता।
आपदा के शुरुआती दिनों में आक्सीजन और बेड के लिए अपने मतदाताओं के सामने असहाय खड़े रहने वाले नेतागण कोरोना आचार संहिता के उल्लंघन में बहुत आगे हैं। चिकित्सा शिक्षा मंत्री सुरेश खन्ना हर सार्वजनिक कार्यक्रम में बिना मास्क देखे जाते हैं। चुनाव सामने है तो कार्यक्रम भी करना है और उनमें जाना भी है, लेकिन रोज कितनी ही तस्वीरें ऐसी देखी जा सकती हैं जिनमें विधायक और मंत्री भीड़ लेकर चल रहे हैं। जो गलती हमने पहली लहर के बाद की थी, उससे कुछ भी नहीं सीखा गया और यह तब है जबकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ वर्चुअल बैठकों में भी मास्क लगाकर बैठते हैं। सारा प्रदेश वह घूम आए, लेकिन उन्हें कभी बिना मास्क नहीं देखा गया। उधर सुरेश खन्ना हैं जो देखकर भी नहीं सीखते। विभागीय बैठकें हों या सार्वजनिक कार्यक्रम, हर जगह वह बिना मास्क रहते हैं।
केवल नेता ही नहीं आम लोग भी कोरोना को भुला बैठे हैं। किसी शहर के किसी बाजार चले जाएं, हर कोना भीड़ से पटा होगा। सहालगों की खरीदारी तो फिर समझ में आती है, लेकिन यूं ही बाजार टहल आने वाले भी कम नहीं। इतनी भीड़ देखकर विश्वास ही नहीं होता कि महज कुछ हफ्तों पहले तक यही लोग कितने परेशान थे या इनमें से बहुतों ने अपने किसी प्रिय को खोया। बेशक जीवन डर कर नहीं जिया जाता, लेकिन सावधानी बरतने में हर्ज भी नहीं। खासकर तब जबकि मालूम है कि इस घातक वायरस की काट केवल मास्क और शारीरिक दूरी है। एक-एक आदमी को वैक्सीन लग जाए, इसमें अभी समय है जबकि तीसरी लहर की आशंका सामने है। हर बात के लिए सरकार ही दोषी नहीं होती। समाज का भी उतना ही दायित्व होता है, लेकिन अप्रैल-मई में डरे हुए लोग डर और सतर्कता को आलमारी में बंदकर भूल चुके हैं। दूसरी लहर में व्यापारियों ने स्वेच्छा से बाजार बंद करके अनुकरणीय उदाहरण रखा था, परंतु उनमें से अनेक अब शारीरिक दूरी के नियमों का न खुद पालन कर रहे हैं और न करा ही पा रहे हैं।
बड़ों से अच्छे तो उनके बच्चे हैं जो सवा साल से घर में बैठे हैं, लेकिन शिकायत नहीं करते। छोटी सी चमकती स्क्रीन पर पढऩा एक बात होती है, लेकिन स्कूलों में शरारतें करते और डांट-फटकार खाते हुए पढऩे का जो आनंद है, उससे बेचारा निर्दोष बचपन वंचित कर दिया गया है। फिर भी बच्चे शिकायत नहीं कर रहे।
कोरोना कहीं गया नहीं है। वह केवल कमजोर पड़ा है। वह हमारे आसपास ही घूम रहा है। संभल जाइए। नेताओं को नहीं भूलना चाहिए कि इस समय जो भीड़ उनके साथ चल रही है, तीसरी लहर मारक निकली तो वही उन्हें क्षमा भी नहीं करेगी। अपने पीछे चलती भीड़ की सुरक्षा का जिम्मा नेताओं का ही है...! (लेखक दैनिक जागरण उत्तर प्रदेश के राज्य संपादक हैं।)