दुनिया की सांस्कृतिक राजधानी के तौर पर विकसित होगी नव्य अयोध्या, विश्व पर्यटन के क्षितिज पर छा जाने की तैयारी
Ayodhya News अयोध्या तीर्थ नगरी के रूप में तो प्रतिष्ठित है ही पर्यटन की भी संभावना से भी सज्जित है और यह संभावना श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के साथ प्रशस्त हो रही है।
लखनऊ, जेएनएन। Ayodhya News : भारत की सनातनी एवं धार्मिक धरोहर को सहेजते हुए नव्य अयोध्या को रामनगरी में स्थापित करने का जो सपना उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने देखा है, वह उस रास्ते पर चल भी पड़ी है। अब बस इंतजार है उसके साकार होने का। अयोध्या तीर्थ नगरी के रूप में तो प्रतिष्ठित है ही, पर्यटन की भी संभावना से भी सज्जित है और यह संभावना श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के साथ बखूबी प्रशस्त हो रही है। यहां प्रस्तावित नव्य अयोध्या दुनिया की सांस्कृतिक राजधानी के तौर पर विकसित होगी और इसमें विभिन्न प्रदेशों और देशों की उपस्थिति सांस्कृतिक दूतावास के रूप में होगी। नव्य अयोध्या की सांस्कृतिक विविधता मठों, अतिथि गृहों और सामाजिक संस्थाओं के केंद्रों से भी परिभाषित होगी। वैदिक और स्मार्ट के रूप में प्रस्तावित नव्य अयोध्या में भगवान श्रीराम की संस्कृति से संबंधित देश के सभी राज्यों सहित दुनिया के दो दर्जन से अधिक देशों के लिए भूमि आरक्षित की जाएगी।
वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के पहली बार प्रधानमंत्री बनने और 2017 में उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बनने के साथ वैदिक और स्मार्ट के रूप में प्रस्तावित नव्य अयोध्या बनाने की दिशा में संभावना परवान चढ़ी। दीपोत्सव इस संभावना का अहम आयाम है, तो रामकीपैड़ी का जीर्णोद्धार और दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा के तौर पर भगवान राम की प्रतिमा की स्थापना का प्रस्ताव पर्यटन को उच्चीकृत करने में निर्णायक होगा। श्रीराम मंदिर निर्माण के साथ सरकार नव्य अयोध्या विकसित करने की तैयारी में है।
उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद 740 एकड़ भूमि पर नव्य अयोध्या के विकास का खाका खींच रहा है। इसमें श्रीराम जन्मभूमि पर प्रस्तावित मंदिर आस्था के केंद्र में होगा। यूं तो रामजन्मभूमि परिसर 70 एकड़ का है, पर मुख्य मंदिर भी कम नहीं है। प्रस्तावित मंदिर 360 फीट लंबा, 235 फीट चौड़ा एवं 161 फीट ऊंचा होगा और निर्मित होने पर इसकी गणना दुनिया के चुनिंदा वास्तु के रूप में होगी। जैन धर्म के संस्थापक भगवान ऋषभदेव सहित पांच तीर्थंकरों की जन्मभूमि होने के गौरव से विभूषित अयोध्या कालांतर में रामानुजीय एवं रामानंदीय परंपरा के अचार्यों सहित सिख गुरुओं एवं सूफी संतों की पंरपरा से भी अनुप्राणित है। यह परंपरा नगरी की साझी विरासत के साथ पर्यटन के क्षितिज पर भी चार-चांद लगाती है।
योगी की परिकल्पना पर साकार होगा रामनगरी का विकास : मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की परिकल्पना के साथ साकार होने वाली नव्य अयोध्या वैदिक और स्मर्ट सिटी के समन्वय का मॉडल होगी। सबसे खास बात यह है कि इसमें पांच देश और 25 राज्यों के लिए प्रारंभिक तौर पर जमीन आरक्षित की जा रही है। करीब 740 एकड़ भूमि पर नव्य अयोध्या विकसित करने का खाका उप्र आवास एवं विकास परिषद ने खींचा है। पिछले दिनों प्रस्तावित परियोजना का प्रस्तुतीकरण भी अधिकारियों ने मुख्यमंत्री के सामने किया। श्रीराम की विश्व भर में स्वीकार्यता है, इसलिए माना जा रहा है कि यहां दुनिया भर से श्रद्धालु आएंगे। यहां स्थायी ठिकाना भी चाह सकते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए ही तय किया गया है कि यहां अन्य राज्य और देशों के लिए भी जमीन की व्यवस्था की जाए। चूंकि दक्षिण कोरिया ने इसके प्रति रुचि दिखाई है, इसलिए उसी की तरह राम में आस्था रखने वाले देशों के लिए फिलहाल पांच भूखंड, जबकि न्यूनतम 25 राज्यों के लिए जमीन आरक्षित की जा रही है। साथ ही सभी धर्मों के मठ, आश्रम, अतिथि गृह और समाजसेवी संस्थाओं के लिए सौ भूखंड रखे जाएंगे।
नव्य अयोध्या और एयरपोर्ट से बदलेगी तस्वीर : श्रीराम मंदिर के निर्माण के साथ यूं तो संपूर्ण रामनगरी की तस्वीर बदलेगी, लेकिन इसकी शुरुआत नव्य अयोध्या और श्रीराम एयरपोर्ट के विस्तार से हो रही है। श्रीराम एयरपोर्ट के लिए जनौरा, ग्रजा तथा धर्मपुर में पहले ही 261 एकड़ भूमि अधिग्रहण की तैयारी चल रही थी, जबकि प्रस्तावित एयरपोर्ट को विस्तार देने के लिए सरकार ने अब करीब सवा तीन सौ एकड़ और भूमि लेने की तैयारी शुरू कर दी है। विशेषज्ञों के अनुसार यह विश्वस्तरीय एयरपोर्ट रामनगरी की रंगत में चार-चांद लगाएगा और बड़ी संख्या में दुनिया भर के दर्शनार्थी रामनगरी आ सकेंगे। श्रीराम एयरपोर्ट की तरह नव्य अयोध्या भी रामनगरी के लिए बेहद महती प्रकल्प के तौर पर प्रस्तुत हो रही है।
महाराज मनु ने की अयोध्या नगरी की स्थापना : अयोध्या को शिखर का स्पर्श तो त्रेता युग में भगवान राम के जन्म से मिला, पर यह नगरी भगवान राम के पीढ़ियों पूर्व से ही गौरवांवित रही है। रामकथा के प्रतिनिधि ग्रंथ वाल्मीकीय रामायण के अनुसार यह नगरी अनादिकालीन है। वैदिक परंपरा की मानविकी के अनुसार प्रथम पुरुष माने जाने वाले महाराज मनु ने इस नगरी की स्थापना की। मनु की उत्पत्ति सृष्टिकर्ता ब्रह्मा से मानी जाती है। ब्रह्मा के पुत्र मरीचि थे। मरीचि के कश्यप। कश्यप के विवस्वान और वैवस्वत मनु इन्हीं के पुत्र थे। इसी वंश में छठवीं पीढ़ी के इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया। इसी वंश की 38वीं पीढ़ी में महाराज दशरथ हुए। भगवान राम इन्हीं दशरथ के पुत्र थे। इक्ष्वाकु वंशीय नरेशों के बल-विक्रम से सेवित-संरक्षित रामनगरी निरंतर आरोह की ओर गमन करती रही।
महाराज विक्रमादित्य ने रामनगरी का कराया जीर्णोद्धार : भगवान राम की कुछ पीढ़ियों बाद अयोध्या की आभा-प्रभा भले क्षीण पड़ने लगी पर गौरवमय अतीत की विरासत आज भी प्रवाहमान है। पुण्यसलिला सरयू भगवान राम की 33वीं पीढ़ी पूर्व महाराज इक्ष्वाकु के समय से ही हिमालय की उच्च उपत्यका से निकलकर अयोध्या को अभिसिंचित करने लगी थीं। रामकथा से ज्ञात होता है कि सरयू नदी भगवान राम को अति प्रिय थी। युगों के सफर के बाद भी सरयू की सुरम्यता बरकरार है और इस नदी की गणना देश की चुनिंदा स्वच्छ नदियों में होती है। आज भी यदि सरयू आस्था की पर्याय है, तो पर्यटक भी सरयू की ओर बरबस खिंचे चले आते हैं। समय के चक्र में यदि रामनगरी की प्राचीनता-पौराणिकता धूमिल पड़ी, तो भारतीय लोककथाओं के नायक महाराज विक्रमादित्य ने दो हजार वर्ष पूर्व रामनगरी का जीर्णोद्धार कराया। कनकभवन, हनुमानगढ़ी, नागेश्वरनाथ, छोटी देवकाली जैसे पौराणिकता के प्रतिनिधि मंदिर विक्रमादित्य के समय के ही माने जाते हैं, जो अपनी प्राचीनता और विरासत के साथ स्थापत्य की दृष्टि से भी अहम हैं।
स्थापत्य का शानदार नमूना कनकभवन : श्वेत संगमरमर से निर्मित कनकभवन स्थापत्य का शानदार नमूना है। मान्यता है कि विवाह के बाद अयोध्या आईं मां सीता को रानी कैकेयी ने यह भवन मुंह दिखाई में दिया था। युगों की यात्रा में यदि कनकभवन भग्न हुआ, तो भगवान कृष्ण और महाराज विक्रमादित्य जैसी विभूतियों ने इस धरोहर का जीर्णोद्धार कराया। आज कनकभवन के जिस मनोहारी स्वरूप का दर्शन होता है, उसका निर्माण ओरछा की महारानी वृषभानु कुंवरि ने 19वीं शताब्दी के मध्य में कराया था।
हनुमानगढ़ी से हनुमानजी ने की अयोध्या की सेवा : मान्यता है कि भगवान राम के समय उनके राज प्रासाद रामकोट के आग्नेय कोण पर हनुमान जी की चौकी इसी स्थल पर थी। भगवान राम जब स्वधाम को गए, तब अयोध्या का प्रभार हनुमान जी को दे गए। हनुमान जी ने इसी स्थान से अयोध्या की सेवा की। 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में यह स्थान मिट्टी का ढूह बनकर रह गया था पर यहां के पुजारी बाबा अभयरामदास की आध्यात्मिक शक्तियों से प्रभावित अवध के तत्कालीन नवाब ने हनुमान जी का मंदिर किले की शक्ल में निर्मित कराया। इसके अलावा सरयू नदी का गुप्तारघाट घाट भगवान राम के स्वधाम गमन का गवाह है। सरयू के प्रशस्त प्रवाह से स्पर्शित घाट दुनियादारी से दूर किसी और लोक की खबर देता है। इन दिनों 40 करोड़ की लागत से यहां नया घाट बनाया गया है।