National Childhood Cancer Awareness Month: समय पर हो पहचान तो बच जाएगी कैंसर से जान
National Childhood Cancer Awareness Month सितंबर माह को राष्ट्रीय बचपन कैंसर जागरूकता माह यानी चाइल्डहुड कैंसर अवेयरनेस मंथ के रूप में मनाया जाता है।
लखनऊ, (कुसुम भारती)। कभी जानलेवा कैंसर को हराने वाले कैंसर सर्वाइवर बच्चे आज कैंसर पीड़ित बच्चों और उनके माता-पिता के मार्गदर्शक बने हुए हैं। वहीं, कुछ माता-पिता भी हैं, जो अपने बच्चों को भले ही कैंसर से बचाने में नाकामयाब रहे, मगर अब वे कैंसर पीड़ित बच्चों के माता-पिता की मदद कर इलाज दिलाने में उनकी राह आसान कर रहे हैं। बच्चों में होने वाले कैंसर के प्रति माता-पिता को जागरूक करने के लिए केजीएमयू के पीडियाट्रिक ऑन्कोलॉजी यूनिट और राष्ट्रीय स्तर की संस्था कैंकिड वृहद स्तर पर मिलकर काम कर रहे हैं। किसी भी बच्चे की बिना इलाज कैंसर से मौत न हो यही इनका लक्ष्य है। वहीं, केजीएमयू के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग क्वीन मेरी हॉस्पिटल में चल रहे एडोलसेंट क्लीनिक में किशोरियों को कैंसर के प्रति जागरूक किया जा रहा है। सितंबर माह को 'राष्ट्रीय बचपन कैंसर जागरूकता माह' यानी 'चाइल्डहुड कैंसर अवेयरनेस मंथ के रूप में मनाया जाता है। इस मौके पर बच्चों में होने वाले कैंसर को लेकर विशेषज्ञों ने चर्चा की। कुसुम भारती की रिपोर्ट...
नवजात में पेट का ट्यूमर व रेटिनोब्लास्टोमा कैंसर
केजीएमयू के पीडियाट्रिक ऑन्कोलॉजी यूनिट में एसोसिएट प्रो. व इंचार्ज डॉ. निशांत वर्मा कहते हैं, हर उम्र में अलग-अलग किस्म का कैंसर होता है। नवजात में पेट का ट्यूमर व आंख का रेटिनोब्लास्टोमा कैंसर मुख्य रूप से होता है। वहीं, एक से पांच साल तक के बच्चों में ब्लड कैंसर और बड़े बच्चों में बोन कैंसर ज्यादा होता है
केजीएमयू में सबसे ज्यादा आते हैं ब्लड कैंसर के मामले
डॉ. निशांत वर्मा कहते हैं, हर साल देश में करीब 40 से 50 हजार मामले बच्चों के कैंसर जुड़े सामने आते हैं। वहीं, केजीएमयू में सबसे ज्यादा ब्लड कैंसर से पीड़ित बच्चे इलाज के लिए आते हैं। यही पूरी दुनिया में पाया जाता है। कुछ मामलों में रेटिनोब्लास्टोमा आनुवांशिक बीमारी है। जिसका यदि समय पर पता चल जाए तो इसका इलाज किया जा सकता है। बच्चों के कैंसर में 90 फीसद केस में कीमोथेरेपी की जरूरत होती है। हालांकि, बच्चे इसे अच्छी तरह से झेल लेते हैं।
ये हैं बच्चों में होने वाले कैंसर
एक्यूट मेलॉइड ल्यूकीमिया, एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक, बोन ट्यूमर, ल्यूकेमिया, ब्रेन ट्यूमर, होज्किन्ज लिम्फोमा, साकोर्मा, एंब्रायोनल ट्यूमर और रेटिनोब्लास्टोमा ये न केवल कुछ मुश्किल शब्द हैं, बल्कि बच्चों की जान को मुश्किल में डालने वाले खतरनाक कैंसर के प्रकार हैं जो बड़ी खामोशी से हंसते-खेलते मासूमों को मौत के मुंहाने पर लाकर खड़ा कर देते हैं। ऐसे में, कैंसर के प्रति जागरूकता ही इस खतरनाक रोग का बचाव है।
किशोरियां रखें मेंसुअल हाइजीन का ध्यान :
केजीएमयू में पीडियाट्रिक डिपार्टमेंट की एचओडी डॉ. शैली अवस्थी कहती हैं, किशोरियों में ब्लड कैंसर, ल्यूकोमा, बच्चेदानी, रीप्रोडक्टिव ऑर्गन के कैंसर के मामले ज्यादा देखने में आते हैं। बचाव के लिए 10-12 वर्ष की उम्र में लड़कियों को ह्यूमन पेपीलोमा वायरस (एचपीवी) वैक्सीन लगवा देनी चाहिए। इसके अलावा किशोरियां अगर मेंसुअल हाइजीन का ध्यान रखें तो इससे बचा सकता है।
किशोरियों में पेट फूलना व भूख न लगना कैंसर का गंभीर लक्षण
क्वीन मेरी हॉस्पिटल की विभागाध्यक्ष प्रो. उमा सिंह कहती हैं, एडोलसेंट क्लीनिक में खास तरह के ओवरी (अंडेदानी) के कैंसर के मामले आते हैं। खासतौर से किशोरियां पेट फूलने, भूख न लगने और वजन न बढ़ने की समस्या लेकर आती हैं। ये कैंसर के गंभीर लक्षण होते हैं जिस पर ध्यान देना जरूरी है। अगर प्री-स्टेज में कैंसर पकड़ लिया जाए तो उनको बचा लिया जाता है। महीने में दो-तीन केस इस तरह के आते हैं। हम लोग किशोरी व महिलाओं में होने वाले कैंसर से जुड़े हॉस्पिटल व फील्ड में जाकर नियमित जागरूकता कार्यक्रम करते हैं। मगर कोरोना काल में फिलहाल नहीं किए जा रहे हैं। सिर्फ हॉस्पिटल आने पर ही उनको बताया जाता है।
15 वर्ष से ऊपर की किशोरियों को वैक्सीन की तीन डोज
क्वीन मेरी हॉस्पिटल में स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. निशा कहती हैं, एडोलसेंट क्लीनिक में हर किशोरी को एचपीवी वैक्सीन लगाने की सलाह दी जाती है। जिसे लगाने का सही समय नौ से 14 वर्ष तक होता है। छह-छह महीने के अंतराल पर वैक्सीन की दो डोज लगाई जाती है। अगर 15 वर्ष से ऊपर उम्र हो जाए तो इसकी तीन डोज लगाई जाती है। हालांकि, 26 साल तक लगा सकते हैं। इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है। जब कोई लड़की सेक्सुअली एक्टिव हो जाती है तो एचपीवी वायरस आता-जाता रहता है। अगर किशोरी को पहले कभी इन्फेक्शन हुआ है तो यह वैक्सीन काम नहीं करती है। दुनियाभर के स्कूलों में यह वैक्सीन लड़कियों को लगाई जाती है। भारत में इसे नेशनल प्रोग्राम में अभी शामिल नहीं किया गया है।
कैंकिड दे रही हर तरह का स्पोर्ट :
कैंकिड संस्था की प्रोग्राम मैनेजर प्रीति रस्तोगी कहती हैं, हमारी संस्था कैंसर पीड़ित बच्चों के अभिभावकों का इमोशनल, साइकोलॉजिकल व फाइनेंशियल सपोर्ट करती है। मैं खुद एक कैंसर सर्वाइवर बच्चे की मां हूं। मेरी तरह संगीता, सविता, संजीव भी कैंसर पीड़ित बच्चों के अभिभावक हैं। सविता व संजीव अपने बच्चों को खो चुके हैं। मगर अब संस्था के साथ जुड़कर पेशेंट नेविगेटर के तौर पर काम कर रहे हैं। ये सभी कैंसर पीड़ित बच्चों के माता-पिता को इलाज संबंधी विभागों की पूरी जानकारी देते हैं ताकि उनको केजीएमयू में भटकना न पड़े। कैंसर पीड़ित बच्चों के अभिभावक संस्था के स्टेट हेल्पलाइन नंबर 9811284406 पर कॉल करके मदद ले सकते हैं।
शेयर केयर मॉडल के जरिए कोरोना काल में भी मिल रहा बच्चों को इलाज :
प्रीति कहती हैं, बहुत से बच्चे जिनका इलाज शहर के अस्पतालों में चल रहा है। मगर कोरोना के चलते कैंसर पीड़ित बहुत से बच्चे इलाज से वंचित हैं। ऐसे में, संस्था शेयर केयर मॉडल के जरिए बच्चों को नॉन-कोविड अस्पतालों में इलाज मुहैया करा रही है। ताकि किसी भी बच्चे की बिना इलाज कैंसर से मौत न हो और कोरोनाकाल के दौरान भी उनको इलाज मिलता रहे। लखनऊ में केजीएमयू, आरएमएल, एसजीपीजीआइ सहित दिल्ली, बीएचयू, होमी भाभा जैसे देशभर के अस्पतालों के साथ जुड़कर संस्था की करीब 76 शाखाएं बच्चों को इलाज में मदद कर रही है।
कैंसर सर्वाइवर बच्चे भी जुड़े :
प्रीति कहती हैं, आकृति सिंह, तनु, शशांक जैसे कई बच्चे हैं जो कभी कैंसर का शिकार हुए थे। मगर आज सब पूरी तरह ठीक हो चुके हैं। संस्था ऐसे बच्चों को अपने साथ जोड़कर उनको जॉब भी देती है। मलिहाबाद की आकृति सिंह कैंकिड में स्टेट केयर कोऑर्डिनेटर है। बिहार की तनु ट्यूटर और लखनऊ के शशांक सोशल वर्कर हैं। ये सभी कैंसर पीड़ित बच्चों व उनके अभिभावकों की इलाज के दौरान आने वाली मुश्किलों में मदद करते हैं। साथ ही इलाज के दौरान जिन बच्चों की पढ़ाई छूट जाती है, उनको घर पर ट्यूशन देने और इलाज में कैसा खानपान होना चाहिए इसकी जानकारी भी देते हैं क्योंकि ये बच्चे उन परिस्थतियों से निकलकर आए हैं। आजकल बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाया जा रहा है।
चाइल्डहुड कैंसर अवेयरनेस मंथ की ऐसे हुई शुरुआत :
अमेरिका में एक स्कूली छात्र में कैंसर की पुष्टि होने के बाद सितंबर माह को 'राष्ट्रीय बचपन कैंसर जागरूकता माह' के रूप में मान्यता दी गई। राष्ट्रीय बचपन कैंसर जागरूकता माह को मान्यता देने वाली राष्ट्रपति घोषणा पहली बार सितंबर 2012 में राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा जारी की गई थी। अब इसे पूरी दुनिया में मनाया जाता है।