अयोध्या में मंदिर के पक्ष में मुस्लिम बुद्धिजीवी, कहा- मुसलमान मर्जी से दें राम मंदिर के लिए जमीन
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल व एएमयू के पूर्व कुलपति जमीरुद्दीन शाह ने कहा कि लड़ाई से केवल नुकसान होता है फायदा नहीं। अयोध्या मसले का हल कोर्ट से बाहर होना चाहिए।
लखनऊ, जेएनएन। देश के मुस्लिम बुद्धिजीवी अयोध्या मसले का हल कोर्ट से बाहर चाहते हैं। इससे दोनों पक्षों की जीत होगी। बुद्धिजीवियों ने कहा कि यदि मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट से मुकदमा जीत भी जाते हैं तो उन्हें यह जमीन हिंदुओं को दे देनी चाहिए।
मुस्लिम बुद्धिजीवी गुरुवार को इंडियन मुस्लिम फॉर पीस संस्था के बैनर तले लखनऊ में एकत्र थे। इनमें नामचीन डॉक्टर, इंजीनियर, प्रशासनिक अफसर, शिक्षाविद्, रिटायर्ड जज शामिल थे। इसमें मशहूर अभिनेता नसीरुद्दीन शाह के बड़े भाई लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह, मशहूर कार्डियोलाजिस्ट पद्मश्री डॉ मंसूर हसन, ब्रिगेडियर अहमद अली, पूर्व आईएएस अनीस अंसारी, रिज़वी, पूर्व आईपीएस पूर्व जज बीडी नकवी, डॉ कौसर उस्मान समेत बड़े मुस्लिम बुद्धिजीवी शामिल हुए। इसमें मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने मांग की कि अयोध्या में विवादित जमीन भगवान राम का मंदिर बनाने के लिए दे दी जाए। इससे देश में सद्भावना का माहौल बनेगा। दूसरों के जज़्बात का ख़याल रखने पर ही वे आपके जज़्बात का ख़याल रखेंगे। बुद्धिजीवियों ने संकल्प पत्र पास कर उसे सुन्नी वक्फ बोर्ड व ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के पास भेजने का निर्णय लिया है। उन्होंने सुझाव दिया है कि अयोध्या में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की 2.77 एकड़ जमीन हिंदुओं को गिफ्ट करने के लिए सरकार को सौंप दी जाए। मस्जिद बनाने के लिए मुस्लिमों को वैकल्पिक जगह दे दी जाए।
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल व एएमयू के पूर्व कुलपति जमीरुद्दीन शाह ने कहा कि लड़ाई से केवल नुकसान होता है, फायदा नहीं। अयोध्या मसले का हल कोर्ट से बाहर होना चाहिए। कोर्ट का फैसला साफ होना चाहिए। यदि ऐसा न हुआ तो यह फसाद की जड़ बनेगा। वर्तमान में जो हालात हैं, उसमें मुसलमान वहां मस्जिद नहीं बना पाएंगे। इसलिए यह जमीन हिंदुओं को दे देनी चाहिए। लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह ने कहा कि अदालत से बाहर बैठक कर विवादित जमीन मंदिर बनाने के लिए हिंदुओं को दे देना चाहिए। अगर मुसलमानों को अदालत से वह जमीन मस्जिद के लिए मिल भी जाए तो भी उसे हिंदुओं को गिफ्ट कर देनी चाहिए।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति रहे लेफ्टिनेंट जनरल सेवानिवृत्त जमीरुद्दीन शाह ने कहा कि वे करोड़ों लोगों की आवाज को देश के सामने रखना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि यदि सुप्रीम कोर्ट से अयोध्या में जमीनी विवाद का फैसला हक मुस्लिमों के पक्ष में आ जाए तो भी मस्जिद का निर्माण मुमकिन नहीं है। बेहतर यह है कि जमीन हिंदुओं को दे दी जाए। इससे देश में अमन बना रहेगा, सांप्रदायिक फसाद नहीं होगा। मुस्लिम समाज के भविष्य के लिए भी यह बेहतर होगा। उन्होने कहा कि एक अच्छा जनरल वह होता है जो बिना जंग किए जीतता है। हम चाहते हैं कि अयोध्या विवाद का हल अदालत के बाहर निकल आए तो अच्छा रहेगा। बहुसंख्यक हिंदुओं की भावनाओं को देखते हुए उन्हें जमीन गिफ्ट कर दी जाए। इस मुद्दे पर सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड हमारे साथ है।
लेफ्टिनेंट जनरल शाह ने कहा कि वक्फ बोर्ड ने अदालत में मध्यस्थता के विवाद के समाधान के लिए अर्जी दी है। हम इंडियन मुस्लिम फॉर पीस की मीटिंग में पारित प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट की मध्यस्थता कमेटी को भेजेंगे। उन्होंने कहा कि हम अदालत से भी चाहते हैं कि वह अयोध्या विवाद में पंचायती फैसला न देकर स्पष्ट आदेश पारित करे। शाह ने कहा कि अदालत से बाहर बैठक कर विवादित जमीन मंदिर बनाने के लिए हिंदुओं को दे देना चाहिए। अगर मुसलमानों को अदालत से वह जमीन मस्जिद के लिए मिल भी जाए तो भी उसे हिंदुओं को गिफ्ट कर देनी चाहिए।
ब्रिगेडियर अहमद अली ने कहा कि मुल्क में बेहतर माहौल बनाने के लिए मुसलमानों को इतनी कुर्बानी जरूर देनी चाहिए क्योंकि आम हिंदू की आस्था है कि उसी जगह पर भगवान राम का जन्म हुआ था। जब आप दूसरों के जज़्बात का ख़याल रखेंगे तभी वे आपके जज़्बात का ख़याल रखेंगे।
सेवानिवृत्त आईएएस व पूर्व कुलपति डॉ. अनीस अंसारी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में कानूनी कार्यवाही चलती रहे और अदालत के बाहर विवाद के समाधान की कोशिशें भी जारी रहनी चाहिए। इंडियन मुस्लिम फॉर पीस का सुझाव है कि सुन्नी सेंट्रल वक्फ 2.77 एकड़ जमीन सुप्रीम कोर्ट में सरेंडर कर दे। इसके बदले मस्जिद बनाने के लिए वैकल्पिक जगह दे दी जाए। इंडियन मुस्लिम फॉर पीस का यह भी प्रस्ताव है कि प्रोटेक्शन ऑफ रिलीजियस प्लेसेस एक्ट 1991 में सजा को तीन माह से बढ़ाकर तीन साल कर दिया जाए। 6 दिसंबर 92 के मुकदमों का निस्तारण कर दोषियों को जल्द सजा दिलाई जाए। अयोध्या में अन्य मस्जिद, इमामबाड़ों, बारगाहों व दरगाहों की मरम्मत की इजाजत दी जाए। उन्होंने यह भी मांग की कि एएसआई की देखरेख वाली पुरानी मस्जिदों, इमामबाड़ों में नमाज की इजाजत दी जाए। उन्होंने बताया कि ये सभी प्रस्ताव सर्वसम्मति के पारित किए गए हैं।
सेवानिवृत्त जज बीडी नकवी ने कहा कि बहुसंख्यक हिंदुओं की धारणा बन गई है कि अयोध्या में मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी। हम हिंदुओं को जमीन गिफ्ट करके मुस्लिमों के प्रति उनकी धारणा बदलना चाहते हैं। उन्होंने कहा, वक्फ एक्ट में मुस्लिम जमीन की अदला-बदली कर सकते हैं। अयोध्या में मस्जिद नहीं भूमि है। यह मुस्लिमों की तरफ से हिंदुओं को तोहफे के रूप में दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि भारत में 90 फीसदी मुस्लिम कनवर्टेड हैं। भले ही धर्म बदल गए लेकिन हिंदू और मुस्लिम भाई हैं फिर वे दुश्मनों की तरह क्यों रहें। उन्होंने कहा कि इस प्रस्ताव पर एक साल के काम चल रहा है। अदालत 1995 में ही कह चुकी है कि कोर्ट के आदेश के बजाय अदालत के बाहर समाधान बेहतर है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक मध्यस्थता की कोशिश चलनी चाहिए।
रिटायर्ड आइपीएस अफसर सीआरपीएफ के पूर्व एडीजी निसार अहमद कहते हैं कि यह पूरा मामला राजनीतिक व धार्मिक नेताओं का है। मजहब के नाम पर हमें लड़ाया जा रहा है। दंगों में आम लोग मरते हैं, बड़े लोग सुरक्षित रहते हैं। कोर्ट का जो भी फैसला आए, उसका असर अपने जीवन पर न होने दें। रिटायर्ड आइएएस अफसर अनीस अंसारी ने कहा कि ये जमीन मुस्लिम समाज के पास है जिसे सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के जरिए सरकार को वापस कर देना चाहिए। इसकी जगह कहीं और मस्जिद बनाने की जमीन दी जाए।
कार्यक्रम के सह संयोजक रिटायर्ड जज बीडी नकवी ने कहा की हम सुन्नी वक्फ बोर्ड के संपर्क में हैं। अब वहां मस्जिद नहीं है इसलिए जमीन का एक्सचेंज हो सकता है। बैठक में हृदय रोग विशेषज्ञ पद्मश्री डॉ. मंसूर हसन, पूर्व मंत्री मोइद अहमद, रिटायर्ड आइपीएस वीएन राय, लव भार्गव सहित कई ने विचार रखे।
यह प्रस्ताव भी हुए पास
- बाबरी मस्जिद शहीद करने वाले या साजिश में शामिल लोगों को जल्द सजा दी जाए।
-अयोध्या में अन्य मस्जिद, दरगाह व इमामबाड़े हैं, उनके रखरखाव की अनुमति दी जाए।
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंडर में जितनी मस्जिदें हैं, जहां संभव हो वहां नमाज पढऩे की इजाजत दी जाए।
-प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट में सजा तीन माह है, इसे बढ़ाकर तीन साल किया जाए।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या केस की सुनवाई चल रही है। सुनवाई 17 अक्टूबर तक होगी और नवंबर में फैसला आएगा। इससे पहले मुस्लिम बुद्धिजीवियों की यह पहल काफी अहमियत रखती है।