रामनगरी में विकास की संभावनाओं के बीच बंदरों की अनदेखी, जानें- क्यों दर-दर की ठोकरें खाने को हैं मजबूर
रामलला के हक में सुप्रीम फैसला आने के बाद से रामनगरी निरंतर नया कलेवर लेने की ओर अग्रसर है। नगरी के कायाकल्प से जुड़ीं कई योजनाएं संचालित हैं तो कई प्रस्तावित हैं। रामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर के निर्माण का भी काम प्रगति पर है।
अयोध्याय, [रघुवरशरण]। रामलला के हक में सुप्रीम फैसला आने के बाद से रामनगरी निरंतर नया कलेवर लेने की ओर अग्रसर है। नगरी के कायाकल्प से जुड़ीं कई योजनाएं संचालित हैं, तो कई प्रस्तावित हैं। रामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर के निर्माण का भी काम प्रगति पर है। ऐसे में रामलला के गण माने जाने वाले बंदरों को भी अच्छे दिन आने का इंतजार है। घटती वन संपदा के चलते बंदरों को सांसत का सामना करना पड़ रहा है।
कुछ दशक पूर्व तक रामनगरी प्रचुर वन संपदा से युक्त थी। यहां की पहचान माने-जाने वाले बंदरों को वनस्पतियों के झुरमुट में सहज ही आश्रय सुलभ होता था पर तीन-चार दशक में परिदृश्य बदल गया। शहरीकरण के निरंतर विस्तार के बीच एक ओर वन संपदा का सतत संकुचन हुआ, दूसरी ओर बंदरों के आश्रय का संकट शुरू हुआ। बेजुबानों के इस संकट की ओर किसी का ध्यान भी नहीं गया। आज आलम यह है कि इन बेजुबानों को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही है। आस्था के पर्याय माने जाने वाले बजरंगबली के गण दीनता के पर्याय बन कर रह गए हैं। भीषण ठंड के बीच बंदरों की दीनता त्रासदी बन कर पेश होती है। रोंगटे फुलाए बंदर सुरक्षित ठौर-ठिकाने के लिए दर-दर भटकते फिरते हैं। अंत में थक हार-कर एक-दूसरे से सटकर ठंड से मुकाबिल होने का प्रयास करते हैं।
बची-खुची वन संपदा निशाने पर: बंदर स्वभाव से ही चंचल माने जाते हैं। आश्रय का संकट उन्हें उपद्रवी भी बना दे रहा है। इसका दुष्परिणाम यह है कि नगरी की बची-खुची वनसंपदा भी उनके निशाने पर है। एक अनुमान के अनुसार रामनगरी की पंचकोसीय परिधि में 50 हजार से अधिक बंदर हैं। यह संख्या बची-खुची वन संपदा पर बहुत भारी पड़ती है। मंदिरों की फुलवारी बचाए रखने के लिए लाखों व्यय कर उसे ग्रिल से घेरना पड़ता है। वनसंपदा के साथ बंदरों के हमले से श्रद्धालुओं और स्थानीय नागरिकों के जख्मी होने की घटनाएं भी बढ़ती जा रही हैं।
बंदरों को प्यार-दुलार की दरकार: बिड़ला मंदिर एवं धर्मशाला के प्रबंधक पवन सिंह के अनुसार बंदर चंचल भले हो पर वह हिंसक नहीं होता और यदि बंदर हिंसक हुए हैं तो इसके पीछे उनकी खीझ है। विकास के नाम पर उनके प्राकृतिक ठौर-ठिकानों को लगातार उजाड़ा जाता रहा है। बंदरों के हक की बात करते हुए वे बिड़ला मंदिर के मनोरम उद्यान का उदाहरण देते हैं और कहते हैं कि बंदरों को प्यार-दुलार और आश्रय मिले तो वे वन संपदा के लिए वैसे घातक नहीं हैं, जितने माने जाते हैं।
विकसित हो बंदरों का अभयारण्य: पर्यटन विकास के पक्षधर निष्काम सेवा ट्रस्ट के व्यवस्थापक महंत रामचंद्रदास एवं कनकमहल धर्मशाला के प्रबंधक विकास श्रीवास्तव रामनगरी में बंदरों का अभयारण्य विकसित करने की वकालत करते हैं। उनका मानना है कि इससे न केवल बंदरों का पुनर्वास सुनिश्चित होगा, बल्कि बंदरों का अभयारण्य पर्यटकों को थोक के भाव आकृष्ट करने में कामयाब होगा। साथ नगरी को बंदरों के उपद्रव से निजात मिलेगी।