पश्चिमी यूपी से पूरब तक खूब चला था मोदी-योगी मैजिक, राहुल-डिंपल समेत कई दिग्गज नेताओं को करना पड़ा था हार का सामना
Lok Sabha Election 2024 चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव 2024 की तारीखों का एलान कर दिया है। इसी के साथ ही लोकतंत्र के सबसे बड़े महापर्व की शुरुआत हो गई है। ऐसे में स्वाभाविक है कि साल 2019 का चुनाव की यादें ताजा होना। उस समय सपा-बसपा ने अपनी कटुता मिटाकर एकजुट होकर मोदी-योगी के मैजिक को रोकने की कोशिश की थी।
राजीव दीक्षित, लखनऊ। अठारहवीं लोकसभा के चुनाव की रणभेरी बजते ही जेहन में अतीत की यादें ताजा होना स्वाभाविक हैं। वर्ष 2019 में हुआ सत्रहवीं लोकसभा का चुनाव भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश से शुरू होकर पूरब की ओर गया था और सपा-बसपा ने 24 वर्ष पुरानी कटुता भुलाकर भाजपा को दोबारा सत्ता में आने से रोकने के लिए गठबंधन किया था।
अब भाजपा के साथ खड़ी रालोद तब सपा-बसपा गठबंधन का हिस्सा थी। वहीं कांग्रेस ने ‘एकला चलो रे’ की तर्ज पर अपने बूते चुनाव लड़ा था। इन परिस्थितियों में भी सपा-बसपा गठबंधन पर हावी रही भाजपा ने पहले चरण से ही जो निर्णायक बढ़त बनाई, उसने आखिरी चरण पूरा होने पर उसकी झोली में 62 सीटें डाल दी थीं जबकि दो सीटें उसके सहयोगी अपना दल (एस) के खाते में गई थीं।
भाजपा ने पश्चिमी यूपी में हासिल की थी छह सीटें
वर्ष 2019 में पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आठ सीटों पर 11 अप्रैल को चुनाव हुआ था। भाजपा ने 75 प्रतिशत स्ट्राइक रेट के साथ इनमें से छह सीटें जीती थीं, जबकि सहारनपुर और बिजनौर सीट उसके हाथ से फिसल गई थी। इन दो सीटों पर बसपा जीती थी।
भाजपा की आंधी में रालोद मुखिया चौधरी अजित सिंह को मुजफ्फरनगर सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा था तो उनके पुत्र जयंत चौधरी बागपत में पराजित हुए थे। वहीं गाजियाबाद सीट पर केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह ने पांच लाख से अधिक वोटों से जीत दर्ज की थी। दूसरे चरण में भी भाजपा का स्ट्राइक रेट 75 प्रतिशत था।
राज बब्बर को मिली थी भारी मतो से हार
भाजपा सहारनपुर और अमरोहा को छोड़ बाकी छह सीटें जीतने में कामयाब रही थी। इन दोनों सीटों पर बसपा का हाथी चिंघाड़ा था। फतेहपुर सीकरी सीट पर भाजपा के राजकुमार चाहर ने कांग्रेस उम्मीदवार राज बब्बर को 4.95 लाख मतों के भारी अंतर से पराजित किया था।
तीसरे चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की शेष सीटों को समेटे रुहेलखंड और तराई क्षेत्र की 10 सीटों में से भाजपा को छह सीटों पर जीत हासिल हुई थी। सपा को इसी चरण की मुरादाबाद, रामपुर, संभल और मैनपुरी सीट पर सफलता मिली थी।
बुंदेलखंड में भाजपा ने सूपड़ा किया था साफ
मैनपुरी का चुनाव सपा संस्थापक और सियासत के पहलवान मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक जीवन का आखिरी चुनाव साबित हुआ था। चौथे चरण में तराई क्षेत्र के अलावा अवध और बुंदेलखंड की 13 सीटों में से सभी पर भाजपा विरोधियों का सूपड़ा साफ करने में कामयाब रही थी।
इसी चरण में कन्नौज सीट पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव भाजपा के सुब्रत पाठक के हाथों पराजित हुई थीं। पांचवें चरण की 14 सीटों में से 13 पर भाजपा को विजयश्री मिली थी।
अमेठी सीट पर राहुल गांधी को मिली थी हार
कांग्रेस को इसी चरण में गहरा सदमा लगा जब गांधी परिवार की परंपरागत अमेठी सीट पर पार्टी के दिग्गज नेता राहुल गांधी भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी से पराजित हुए।
रायबरेली सीट पर जीत दर्ज कर सोनिया गांधी ने कांग्रेस की लाज बचाई थी। छठवें चरण में चुनाव पूर्वांचल पहुंचा। 14 सीटों में से भाजपा के हाथ नौ सीटें आईं जबकि चार बसपा को मिलीं। इस चरण में अखिलेश ने अपने पिता की छोड़ी आजमगढ़ सीट पर सपा की साख बरकरार रखी।
सत्रहवीं लोकसभा के चुनाव के आखिरी चरण में सबकी निगाहें भाजपा की नैया के खेवनहार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वाराणसी सीट पर टिकी थी। मोदी ने वाराणसी सीट पर अपनी जीत का अंतर बढ़ाते हुए 4.79 लाख मतों से विजय प्राप्त की थी।
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