एल्कोहल से भी ज्यादा खतरनाक है मोबाइल और टीवी की लत Lucknow News
पाठकों ने बच्चों की परवरिश से जुड़े सवाल चाइल्ड मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट व मोटीवेटर डॉ. नेहा आनंद से पूछे।
लखनऊ, जेएनएन। ज्यादातर माता-पिता की शिकायत रहती है कि बच्चे जिद्दी हो गए हैं, जो बात मना करिए वह वही करते हैं। मोबाइल और टीवी देखने की जिद करते हैं। दैनिक जागरण द्वारा बुधवार को आयोजित प्रश्न पहर कार्यक्रम में चाइल्ड मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट व मोटीवेटर डॉ. नेहा आनंद मौजूद थीं। पेश है पाठकों द्वारा पूछे गए सवाल व उनके जवाब-
सवाल : डेढ़ साल की बेटी बहुत जिद्दी है। जिद पूरी न होने पर सामान फेंक देती है क्या करें?
[प्रदीप कुमार, काकोरी]
जवाब : बच्चे बहुत होशियार होते हैं। यदि आप उसकी जिद पूरी करेंगे तो वह बार-बार जिद कर अपनी बात पूरी कराएंगे। इसलिए उनकी जिद कतई पूरी न करें।
सवाल : बारहवीं का छात्र हूं, पढ़ाई में मन नहीं लगता है क्या करें?
[शिरीष पांडेय, अयोध्या]
जवाब : विषय आपकी पसंद के हैं। बावजूद इसके मन क्यों नहीं लग रहा है। यह आपको ही समझना पड़ेगा। कहीं आपकी खुद से अपेक्षाएं तो बहुत नहीं। हाईस्कूल व इंटर की पढ़ाई में बहुत अंतर है यदि समझ नहीं आएगा तो रुचि कम होने लगती है।
सवाल : बेटा बीए में है। सिविल सर्विसेज का मन है, ज्यादा तनाव तो नहीं हो जाएगा।
[अशोक साहू, कुर्सी रोड]
जवाब : यदि उसकी रुचि है तो उसे करने दें, लेकिन एक बी प्लान भी रखें जिससे यदि सफलता नहीं मिलती तो वह दूसरा कॅरियर अपना सके।
सवाल : तीन साल की बेटी है, बहुत जिद करती है। चिड़चिड़ाती है खाना भी नहीं खाती।
[बलवंत रावत, लखनऊ]
जवाब : ऐसा लगता है कि बच्ची में पोषण की कमी है। खाना न खाने के कारण शरीर में कैल्शियम, विटामिन, आयरन जिनकी जरूरत है उसकी पूर्ति नहीं हो पाती इसलिए वह चिड़चिड़ाती है। आप उसे खाना खिलाएं। एक हफ्ते का चार्ट बनाकर देखें क्यों और कब चिड़चिड़ाती है। कारण समझ आने पर उसे दूर करें।
सवाल : नौ साल का बेटा है। डे बोर्डिंग में जाता है, जो बात मना करें वहीं करता है।
[सीमा, लखनऊ]
जवाब : बच्चा कुछ समय बाद किशोरावस्था में आ जाएगा। यह उम्र बहुत संवेदनशील होती है। आप उससे बात करें और समझने की कोशिश करें कि उसे क्या अच्छा लगता है। संवाद बढ़ाएंगी तो वह मन की बात साझा करेगा। मोबाइल दें तो अपने सुपरविजन में। देखते रहें वह उसमें क्या कर रहा है। अकेले में मोबाइल न दें।
सवाल : पत्नी की मृत्यु के बाद 17 साल की बेटी गुमसुम सी हो गई है। प्रसन्न नहीं रहती क्या करें?
[राम बहादुर भारती, रायबरेली]
जवाब : बेटियां मां से ज्यादा करीब होती हैं। आपने बताया कि घर का सारा काम भी पढ़ाई के साथ उस पर आ गया है। उसे सहयोग करें अभी छोटी है इतने जिम्मेदारी नहीं उठा सकती। उससे बातचीत करें, समय गुजारें ताकि अकेलापन न महसूस हो।
सवाल : दो साल का बेटा है। कॉपी या कागज बहुत फाड़ता है। क्या करें?
[सुप्रिया पाठक, गोंडा]
जवाब : इस उम्र में बच्चों में कलाई व उंगलियों की मांसपेशियां डेवलप हो रही होती हैं। आप उसे पुराने अखबार या रद्दी पेपर व पेंसिल दें। वह केवल घिसेगा। इससे कलाई व उंगलियां मजबूत होंगी यह उसके शारीरिक विकास का हिस्सा है।
सवाल : मेरा बच्चा बगैर टीवी देखे खाना नहीं खाता है। टीवी देखते हुए कुछ भी खिला दें उसे फर्क नहीं पड़ता।
[सुषमा कश्यप, बस्ती]
जवाब : टीवी और मोबाइल दिखाने की आदत माता-पिता ही डालते हैं। खाना खिलाते समय बच्चों का टीवी देखना कतई उचित नहींं। खाना बच्चे बगैर चबाए निगल लेते हैं। उन्हें यह पता ही नहीं होता कि क्या खा रहे हैं। इससे खाते समय जो डाइजेस्टिव जूस सीक्रीट होते हैं वह नहीं होते। इससे पाचन प्रभावित होता है।
सवाल : बेटा पढ़ाई में अच्छा है, लेकिन उसका मन नहीं लगता। क्या करें?
[अमर यादव, सुलतानपुर]
जवाब : पढऩे में अच्छा होने का यह मतलब नहीं कि वह आइआइटी ही करे। उसकी रुचि पता करें। आजकल पढऩे में अच्छे बच्चों के लिए बहुत से विकल्प हैं। उसकी रुचि जानकर प्रोत्साहित करें।
रोने से न हों परेशान
अक्सर माता-पिता बच्चों के रोने पर परेशान हो जाते हैं और उनकी हर बात मान लेते हैं। डॉ. नेहा आनंद कहती हैं कि बच्चे बहुत छोटी सी उम्र से यह जान जाते हैं कि वह रोकर अपनी बात मनवा लेंगे। वह इसे अपनी बात मनवाने के लिए हथियार की तरह इस्तेमाल करने लगते हैं। यहां तक कि अक्सर वह इस तरह रोते हैं कि केवल आवाज ही सुनाई देती है, उनकी आंखों में आंसू दिखाई नहीं देते। इसलिए बच्चों के रोने से परेशान न हों। रोना कोई समस्या नहीं। रोते-रोते वह परेशान होकर कुछ देर बाद थक कर चुप हो जाएंगे या सो जाएंगे।
आधे घंटे से अधिक स्क्रीन देखना नुकसानदेह
बच्चों का आधा घंटे से अधिक टीवी या मोबाइल देखना बेहद नुकसानदेह है। इससे मस्तिष्क की नसें कमजोर होने लगती हैं। ब्रेन के न्यूरॉन्स प्रभावित होते हैं। बच्चे ध्यान नहीं दे पाते और एकाग्रता में कमी आती है।
बच्चों को गंदा न कहें
बच्चों को कभी गंदा न कहें। देखा गया है कि शिक्षक भी बच्चों को अक्सर डांटते समय गंदा बच्चा आदि कह देते हैं। इससे वह बहुत दुखी हो जाते हैं और घुटने लगते हैं। इसके बजाय उनसे प्यार से कहें कि तुम बहुत अच्छे हो बस तुम्हारी फलां आदत अच्छी नहीं।