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टूटी बेड़ियां: काम नहीं करने पर होती थी पिटाई, मिलता था आधा पेट खाना

बुधवार सुबह विनयखंड गोमतीनगर के एक पॉश इलाके से सात साल की मासूम बच्ची को आशा ज्योति केंद्र और चाइल्ड लाइन की टीम ने बाल श्रम से छुड़ाया।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Thu, 14 Feb 2019 03:09 PM (IST)Updated: Fri, 15 Feb 2019 09:14 AM (IST)
टूटी बेड़ियां: काम नहीं करने पर होती थी पिटाई, मिलता था आधा पेट खाना
टूटी बेड़ियां: काम नहीं करने पर होती थी पिटाई, मिलता था आधा पेट खाना

लखनऊ, जेएनएन।  सर्दी में सिर्फ शर्ट और पायजामा पहने कांपती सात साल की बच्ची जिम में अपनी मालकिन के पास खड़ी हुई उनके जाने का इंतजार कर रही थी। तभी उसके पास कुछ लोग फरिश्ता बनकर आ गए। पहले तो वो घबरा गई, लेकिन जब उसे बताया गया कि उसे यहां से ले जाने आए हैं तो उसकी जान में जान आई। महज सात साल की बच्ची को बुधवार सुबह आशा ज्योति और चाइल्ड लाइन की टीम ने बाल श्रम से आजाद कराया।

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दिन भर मार खाकर काम करने के बाद भी भरपेट खाना न मिलना और रात में ठंड में ठिठुरकर सोना जैसे इस मासूम की नियति में लिख गया था। 25 जनवरी को चाइल्ड लाइन को विनयखंड गोमतीनगर स्थित एक मकान में बच्ची से घरेलू काम और ङ्क्षहसा की सूचना मिली थी। मंगलवार को आशा ज्योति केंद्र की प्रभारी अर्चना सिंह को मिली। जिसके बाद बुधवार को 181 रेस्क्यू वेन, चाइल्ड लाइन, सीडब्ल्यूसी के  साथ घर पर पहुंची जहां ताला पड़ा था। 

स्थानीय लोगों की सूचना के आधार पर पता चला कि बच्ची को लेकर मालकिन जिम गई हैं। जिसके बाद जिम में पहुंचकर बच्ची को बचाया गया और सीडब्ल्यूसी श्रम विभाग के सिपुर्द कर दिया गया। अर्चना सिंह ने बताया कि बच्ची को श्री राम औद्योगिक संस्था अलीगंज भेजा गया है। जहां उसकी काउंसिलिंग होगी और पढ़ाई-लिखाई का इंतजाम किया जाएगा।

लखीमपुर से लाई गई थी बच्ची

अर्चना सिंह ने बताया कि मकान मालकिन मीनाक्षी के पति सुरेंद्र लखीमपुर की एक शुगर मिल में काम करते हैं। बच्ची भी वहां से लाई गई थी। मां-बाप से संपर्क नहीं हो पाया, लेकिन पता चला कि उनकी आर्थिक स्थिति काफी खराब थी। बच्ची ने बताया कि उससे माता-पिता से बात भी नहीं कराई जाती थी। अर्चना सिंह ने बताया कि आगे की कार्रवाई बाल श्रम विभाग करेगा।


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