भीषण गर्मी में 48 घंटे बाद भी नहीं बिगड़ेगी दूध की सेहत, लखनऊ की पराग डेयरी में लगी लेटेस्ट मशीन
लखनऊ दुग्ध संघ के महाप्रबंधक डॉ. मोहनस्वरूप बताते हैं कि पराग में इस बार अब तक की सबसे अत्याधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे दूध की सेहत बहुत अच्छी रहेगी। अब नए प्लांट से तापक्रम इतना बेहतर हो जाएगा कि दूध की उम्र बढ़ जाएगी।
लखनऊ, [नीरज मिश्र]। दूध को पारंपरिक काल से ही संपूर्ण आहार माना गया है। इससे शरीर, मन, बुद्धि का विकास होता है। साथ ही ऊर्जा भी मिलती है। आदर्श भोजन माना जाने वाला दूध ही यदि उच्च गुणवत्ता का न हो तो फिर इसे पीने वाले सेहतमंद नहीं रह सकते। इसी बात को ध्यान में रखते हुए पराग डेयरी ने नई तकनीकी युक्त अब तक की सबसे लेटेस्ट टेक्नोलॉजी वाली मशीनों का उपयोग कर दूध का संरक्षण शुरू किया है। अब भीषण गर्मी में भी 48 घंटे से अधिक दूध की सेहत नहीं बिगड़ेगी। यानि पहले की तरह अब दूध न तो जल्दी खराब होगा और न ही फटेगा। इस तकनीकी का सबसे ज्यादा लाभ दूर-दराज के उन उपभोक्ताओं को होगा, जहां दूरी अधिक होने की वजह से अक्सर आपूर्ति पहुंचने में अधिक समय लग जाता था।
समुचित कूलिंग से तापक्रम रहेगा बरकरार
लखनऊ दुग्ध संघ के महाप्रबंधक डॉ. मोहनस्वरूप बताते हैं कि पराग में इस बार अब तक की सबसे अत्याधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे दूध की सेहत बहुत अच्छी रहेगी। बेहतरीन कूलिंग और 4 डिग्री तापक्रम बनाए रखने की वजह से दूध की सेहत और सुरक्षा दोनों में इजाफा होगा। फ्रांस, जर्मन और देशी मशीने दूध की सेहत और गुणवत्ता लंबे समय तक बरकरार रखेगी। तापक्रम नियंत्रित रखने पर दूध की उम्र छह से सात दिन की रहेगी। महाप्रबंधक का दावा है कि पराग दूध स्वस्थ पशु स्वस्थ दूध पर आधारित व्यवस्था पर चलता है। थनैलिया नियंत्रण की दवा, पशुओं को पेट में कीड़ा मारने और किलनी, जुआं आदि की दवा का समय से प्रयोग किया जाता है जिससे पशु स्वस्थ रहता है और दूध गुणवत्तायुक्त।
आरओ वाटर का होगा उपयोग
महाप्रबंधक बताते हैं कि अभी तक लाइन में दूध गाढ़ा या फिर ठोस होने पर इसमें सामान्य पानी का इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन यहां पर पानी के लिए अलग-अलग प्लांट लगाए गए हैं। आईडीएमसी के डिप्टी मैनेजर सतीश कुमार बताते हैं कि धुलाई के लिए अलग और दूध के लिए आरओ वाटर का इस्तेमाल किया जाएगा जो शुद्धता को और निखारेगा।
खराब क्वालिटी हो जाएगी रिजेक्ट
इंडियन डेयरी मशीनरी कॉरपोरेशन के असिस्टेंट मैनेजर राहुल मिश्रा बताते हैं कि चाहे वह मशीन की गलती हो या फिर लैब की जैसे ही दूध अधोमानक यानी सब स्टैंडर्ड हुआ डेंसिटोमीटर उसे रिजेक्ट करते हुए आगे पैकिंग प्वाइंट तक नहीं जाने देगा।
पांच से छह घंटे के भीतर फैक्ट्री तक पहुंचता है दूध
डाटा प्रोसेसिंग मिल्क कलेक्शन यूनिट के नीलेश कुमार बताते हैं कि समितियों और किसानों द्वारा लाया जा रहा दूध बल्क मिल्क कूलर में सुरक्षित रहता है। यहां से सुरक्षित घंटे यानी पांच से अधिकतम छह घंटे के भीतर दूध फैक्ट्री पहुंच जाएगा। वह बताते हैं कि लखनऊ दुग्ध संघ ही कैन से दूध लाए जाने की परंपरा पर विश्वास नहीं करता है। विशेष टैंकर से तापक्रम बरकरार रखते हुए दूध पहुंचता है। इसके अलावा दूध, घी, छाछ, मीठा दही, दही सादा, मक्खन, खोआ समेत सभी उत्पादों के लिए अलग मशीने और चैंबर हैं।
ट्रायल जारी, हुई दूध की लोडिंग और पैकिंग
सुलतानपुर रोड स्थित पराग डेयरी के आधुनिकतम प्लांट का ट्रायल जारी है। गुरुवार को भी प्लांट में पानी के ट्रायल के बाद दूध की लोडिंग और पैकिंग का कार्य हुआ। अब इस प्लांट की दूध उत्पादन क्षमता बढ़कर तीन लाख लीटर रोज की हो गई है। दैनिक जागरण में छपी खबर के बाद शासन ने पराग प्रबंधन से पूरा ब्योरा मांगा है। ट्रायल रन और अन्य जरूरी चीजों का सिलसिलेवार ब्योरा तत्काल उपलब्ध कराने को कहा गया है।
लखनऊ दुग्ध संघ के अध्यक्ष उमेश सिंह तोमर ने बताया कि बेहतरीन क्वालिटी के साथ पराग अब बहुत जल्द नई इबारत लिखने को तैयार हो रहा है। सिर्फ पराग ही ऐसा है जो कैन से वाहनों के जरिए दूध संग्रह नहीं करता है। किसानों के माध्यम से दूध संग्रह कर तय समय के भीतर फैक्ट्री तक पहुंचाया जाता है। अब नए प्लांट से तापक्रम इतना बेहतर हो जाएगा कि दूध की उम्र बढ़ जाएगी।
इतिहास के पन्ने
ऐसे हुआ विस्तारीकरण : 23 जनवरी 1992 में प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने जापलिंग रोड के प्लांट की 70,000 लीटर की क्षमता को बढ़ाकर 1,50,000 लीटर की थी। साथ ही अन्य सहूलियतें भी सीएम ने उपलब्ध कराई थीं। विस्तारीकरण के एक समारोह में पूर्व सीएम श्वेत क्रांति के जनक वी. कुरियन और तत्कालीन अध्यक्ष नंदकिशोर के साथ मौजूद रहे। बीते वर्ष लखनऊ के सांसद व तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने पांच अप्रैल 2019 को संघ के अध्यक्ष उमेश सिंह तोमर ने भी कार्यप्रणाली को सराहा था।
- सन् 1982 से हटने लगी बोतल की आपूर्ति
- पॉलीपैकिंग का जमाना आया
- सन् 1984 के बाद पूरी तरह आपूर्ति पॉलीपैक आधारित हो गई।