परती भूमि पर लहलहा रही ‘उम्मीदों’ की फसल, जैविक खाद डालकर दूर किया खेती का कुपोषण
प्रवासियों ने कोरोना आपदा के दौर में खेती में तलाशा अवसर। समतलीकरण करके बनाया कृषि योग्य।
बाराबंकी [जगदीप शुक्ल]। लॉकडाउन के दौरान महानगरों से गांव लौटे गौरव, राजेंद्र और बृजेंद्र जैसे तमाम परिवारों ने कोरोना आपदा को भी अवसर में बदलने का काम किया है। कुछ दिनों तक इंतजार करने के बाद परती और निष्प्रयोज्य जमीन को सेहतमंद बनाने की पहल की। अपनी श्रमशक्ति और हौसले से भूमि को कृषि योग्य बनाकर उसमें धान की रोपाई कर दी। परती और निष्प्रयोज्य खेटन में अब उम्मीदों के रूप में धान की फसल लहलहा रही है। इन तीन ने ही नहीं बल्कि दर्जनों परिवार ऐसे हैं जिन्होंने आपदाकाल में खेती-किसानी को विकल्प के रूप में अपनाकर अपनी समृद्धि की इबारत लिखने की शुरुआत की है। यह किसान परंपरागत के साथ ही नई पद्धतियां अपनाकर लाभकारी खेती करने की तैयारी में हैं।
जैविक खाद डालकर दूर किया खेती का कुपोषण
दरियाबाद के सुरजवापुर मजरे तेलमा निवासी गौरव शर्मा मुंबई में एयरपोर्ट पर विदेशी से आई वस्तु को एक कंपनी के माध्यम से छोड़वाने का काम करते थे। लॉकडाउन होने पर सात मई को लौटकर गांव आ गए। हालात सामान्य न होने पर गांव के एक व्यक्ति की पांच बीघा खेती कांट्रैक्ट पर ली, जोकि पंद्रह वर्षों से परती पड़ी थी। उन्होंने अपने भाई शिवकुमार शर्मा के साथ मिलकर एक फिट मिट्टी निकाली, कीटनाशक और जैविक खाद का प्रयोग कर मिट्टी का कुपोषण खत्म किया। अब उनके खेत में धान की फसल लहलहा रही है। उन्हें उम्मीद है कि उत्पादन भी बेहतर होगा।
मेड़बंदी कर खेत में सड़ाए पुआल के डंठल
अहमदाबाद में टैक्सी चलाने वाले त्रिवेदीगंज ब्लॉक के रानीखेर मजरे लाही के राजेंद्र कुमार रावत लॉकडाउन में पांच जून को गांव पहुंचे थे। उन्होंने पिता साहेबदीन को पट्टे में मिली एक बीघा भूमि को बृजेश, रामअचल, सुरेंद्र कुमार, प्रमोद कुमार के सहयोग से मेड़बंदी कर समतल कर दिया। उसके बाद खेत की गोड़ाई कर पानी भर दिया। पुआल व मेंथा के डंठलों को सड़ाकर और पंद्रह दिन बाद यूरिया और जिंक डालकर खेती योग्य बनाया। अब उसमें धान की खेती की जा रही है।
समतलीकरण करके बनाया कृषि योग्य
बनीकोडर ब्लॉक क्षेत्र के ग्राम अवदानपुरवा निवासी बृजेंद्र द्विवेदी दिल्ली में पराग डेयरी का काम करते थे। होली में गांव में आए थे। पत्नी व बच्चे दिल्ली में ही हैं। लॉकडाउन के पहले दिल्ली नहीं जा सके और खेती में जुट गए। तीन बीघा बटाई से छुड़ाकर अपने हाथ धान की फसल लगाई। वर्षों से पड़ी परती पड़ी छह बीघा जमीन का समतलीकरण कराकर उसमें उगा कुश-गड़रा आदि साफकर उरद की फसल बोई है।