IISF-2018: पत्नी की बात मानने वाले अब जोरू के गुलाम नहीं 'पार्टनर' हैं
510 स्वयंसेवी संस्थाओं ने देश के विकास का लिया संकल्प, नारी सशक्तीकरण के केंद्र में हुई विकास पर चर्चा।
लखनऊ (जितेंद्र उपाध्याय)। यदि आप पत्नी के साथ कंधे से कंधे मिलाकर काम करते हैं तो कहने दीजिए जो 'जोरू का गुलाम' कहते हैं। ध्यान मत दीजिए ऐसे पुरुष सच्चे अर्थों में 'पार्टनर' हैं। समाज बदल रहा है, महिलाओं की भूमिका बदल रही है और मानसिकता भी। भारतीय अंतरराष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव में नारी सशक्तीकरण को केंद्र मानकर आयोजित स्वयं सेवी संस्थाओं के सम्मेलन में यह बात पुरजोर तरीके से उभरी।
सम्मेलन के चेयरमैन डॉ. रोशन लाल ने कहा कि नारी सशक्तीकरण होने की वजह से हमारा समाज आगे बढ़ रहा है। पत्नी की बात मानने वाले पुरुष जोरू के गुलाम नहीं अब 'पार्टनर' बन गए हैं। पुरुषों का जितना योगदान है, उससे कहीं कम महिलाओं का भी नहीं है। पश्चिम बंगाल से आए सदानंद चक्रवर्ती ने कहा कि सामाजिक कुरीतियों में नारी के सम्मान को शामिल नहीं किया गया जो कि समाज की आधारशिला थी। बेंगलुरु से आए रामास्वामी कृष्णन के अलावा विभव वाणी के विशेष सलाहकार ए जयकुमार, कार्यकारी निदेशक एनपी राजीव के अलावा सुनील चतुर्वेदी ने एनजीओ का नाम एनबीओ (नेशनल बिल्डिंग ऑर्गेनाइजेशन) करने पर लोगों से वोट मांगे जिसे सर्व सम्मति से पास कर दिया गया। 2022 तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सशक्त भारत बनाने के सपने को 510 संस्थाओं ने मिलकर साकार करने का संकल्प भी लिया।
फाउंडेशन स्किल का विकास हो
बहराइच समेत प्रदेश के 19 जिलों में बालिका शिक्षा को लेकर काम करने वाली वंदना मिश्रा फाउंडेशन स्किल के विकास पर काम कर रही है। उन्होंने कहाकि विज्ञान और गणित के प्रति बालिकाओं को जागरूक करने की जरूरत है तभी स्किल का सही विकास हो सकेगा। बरेली के जयप्रकाश झा पर्यावरण संरक्षण पर अपने विचार रखे तो राजस्थान से आईं प्ररेणा अरोड़ा ने सड़क सुरक्षा के मायने को आंकड़ों के साथ समझाने का प्रयास किया। पंजाब से आईं ज्योति शर्मा सहित कई संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने अपना प्रजेंटेशन दिया।
दिव्यांगता को भूल बच्चों को बना रहे सबल
विज्ञान महोत्सव में वैसे तो सभी राज्यों से स्वयं सेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि आए थे, लेकिन कोलकाता से आए वैद्यनाथ करण के हौसलों को देख सभी स्तब्ध थे। छह साल की उम्र में घर में डकैती के दौरान बम से दोनों हाथों को गंवाने वाले वैद्यनाथ दिव्यांगता को छोड़ गरीब बच्चों को शिक्षा का अधिकार दिला रहे हैं। स्वास्थ्य से लेकर भोजन और कपड़े से लेकर पढ़ाई तक का इंतजाम करने वाले वैद्यनाथ खुद ही अपना काम करते हैं। पत्नी दीप्ति मदद करने का प्रयास करती है, लेकिन वह खुद को असहाय न समझे इसके लिए वह स्वयं काम करती हैं। महोत्सव में उनकी एक झलक पाने की बेकरारी भी लोगों में नजर आई।
सम्मान मिला तो खिले चेहरे
स्वयंसेवी संस्थाओं के सम्मेलन के दौरान रमा तिवारी, दीपेश, अनुराधा गुप्ता, शैल्वी पांडेय, वीपी सिंह व राजकमल श्रीवास्तव को सम्मानित किया गया।
झलकियां : चाय की दौड़
सम्मेलन के दौरान टी ब्रेक हुआ तो प्रतिनिधि चाय की दौड़ में शामिल हुए। सब चाय पिए और खाकी वर्दी धारक देखते रहे, यह कैसे संभव है। फिर क्या था वह भी टूट पड़े। एक वर्दीधारक तो इस कदर दौड़े की महिला के हाथों की चाय गिर गई।
सेल्फी का क्रेज
परिसर में लगी प्रदर्शनी में संस्थाओं की ओर से स्टॉल लगाए गए थे, उन स्टॉलों के पास सेल्फी लेने का क्रेज भी नजर आया। फोटो प्रदर्शनी में भी लोगों की खासी दिलचस्पी नजर आई।