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लखनऊ के इस दम्पति का एक ही सपना, शिक्षित समाज हो अपना

इस सपने को पूरा करने के लिए वह न केवल नौनिहालों की पढ़ाई के लिए हर जतन कर रहे हैं, बल्कि 2001 से शहर में निरक्षर लोगों को तालीम भी दे रहे हैं।

By Krishan KumarEdited By: Published: Sun, 30 Sep 2018 06:00 AM (IST)Updated: Sun, 30 Sep 2018 06:00 AM (IST)

जागरण संवाददाता, लखनऊ। सब पढ़ें और आगे बढ़ें। हर शिक्षक यही चाहता है, लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद भी अध्यापन जारी रखने वाले शिक्षक कम ही मिलते हैं। इन्हीं में एक हैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय की सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. कुसुम वार्ष्णेय। उनका सपना है कि समाज का हर व्यक्ति शिक्षित हो। इसे पूरा करने के लिए वह न केवल नौनिहालों की पढ़ाई के लिए हर जतन कर रही हैं, बल्कि वर्ष 2001 से शहर में निरक्षर लोगों को तालीम भी दे रही हैं।

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अध्यापन काल के दौरान ही डॉ. कुसुम ने तय कर लिया था कि सेवानिवृत्त के बाद गरीब महिलाओं व उनकी बेटियों को शिक्षित करेंगी। इसके लिए उन्होंने मलिन बस्तियों में जाकर गरीबों की बेटियों को पढ़ने के लिए राजी किया, लेकिन दो-चार दिन आने के बाद बालिकाओं ने पढ़ना बंद कर दिया। तब उन्होंने बालिकाओं की माताओं से बात कर उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित किया। वे मान गईं और पढ़ने आने लगीं। इसके बाद धीरे-धीरे बच्चे भी पढ़ने आने लगे। पति डॉ. एमएस गुप्ता ने भी सहयोग किया और प्रतिदिन क्लास लगने लगी।

पहले किराए के मकान में पाठशाला चला रही थीं। बाद में ज्योति किरण शिक्षा संस्थान की स्थापना की और मुंशी पुलिया के पास अपने घर में ही सेंटर बनाया। पति-पत्नी दोनों अब वहां शिक्षा की ज्योति जलाकर समाज को ज्ञान से प्रकाशित करने में जुटे हैं। उम्र को दी मात, जज्बा अब भी बरकरार डॉ. कुसुम की आयु 81 वर्ष है। उनके पति डॉ. गुप्ता 83 वर्ष के हैं, लेकिन सपने को पूरा करने में उम्र आड़े नहीं आई। बेटा-बहू आइपीएस अधिकारी हैं।

अध्ययन और अध्यापन डॉ. कुसुम व उनके पति की दिनचर्या में शामिल है। वह केवल पढ़ाते ही नहीं, बल्कि पढ़ाई के खर्च में भी हाथ बंटाते हैं। उनका पढ़ाया एक छात्र इंजीनियरिंग कर रहा है और दो लड़कियां ग्रेजुएशन कर नौकरी कर रही हैं। दो और लड़कियां बीकॉम कर रही हैं।

दो पालियों में होती पढ़ाई
ज्योति किरण शिक्षा संस्थान में दो पालियों में पढ़ाई होती है। सुबह 11 बजे से दोपहर एक बजे तक महिलाओं को और शाम चार बजे से सात बजे तक बच्चों को पढ़ाया जाता है। गरीब बच्चों को पढ़ने के लिए वे निशुल्क स्टेशनरी, किताबें भी मुहैया कराते हैं। कई बच्चे स्कूल के बाद शाम को ट्यूशन पढ़ने
आते हैं। प्रारंभिक शिक्षा के बाद आगे पढ़ने के इच्छुक बच्चों का सरकारी विद्यालयों में दाखिला भी कराते हैं।


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