लखनऊः रोजगारपरक शिक्षा और प्लेसमेंट दिलाने वाले संस्थानों की है जरूरत
शहर में आईआईएम जैसे प्रबंधकीय संस्थान गर्व का विषय हैं, लेकिन अभी ऐसे संस्थानों की और दरकार है।
शहर की शैक्षिक व्यवस्था में सुधार के लिए शिक्षा की गुणवत्ता में भी सुधार होना जरूरी है। शिक्षा ऐसी हो, जिससे संस्था की पहचान बने। संस्थाओं की इमारतों से शिक्षा की गुणवत्ता की परख करना अनुचित है। राजधानी में ऐसी कई राज्य स्तरीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की संस्थाएं हैं, जहां शिक्षा में सुधार के बजाय भवन के विकास की बात होती है। ऐसे में सुधार कैसे होगा।
राजधानी की शिक्षा व्यवस्था पर यह चिंता जताते हुए कौशल विकास मिशन के उप निदेशक और पूर्व स्टेट करियर काउंसलर डीके वर्मा कहते हैं कि शैक्षिक संस्थाओं को रोजगारपरक पाठ्यक्रम संचालित करने और प्लेसमेंट सुनिश्चित कराने के भी प्रयास करने चाहिए।
उन्होंने कहा कि राजधानी में डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विवि और बाबा साहब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विवि सरीखे शिक्षण संस्थानों का देशभर में नाम है, लेकिन यहां शिक्षा के स्तर में सुधार की और आवश्यकता है। संस्थाओं को राजनीति और अराजकता का अड्डा बनाने से रोकना होगा।
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लखनऊ विवि में शैक्षिक सुधार के कार्यक्रम जारी हैं। उम्मीद की जाती है कि वहां गुणवत्तायुक्त शिक्षा के साथ ही शोध पर जोर दिया जाएगा। डिग्री कॉलेजों में भी शैक्षिक सुधार पर जोर देना चाहिए। यहां विश्वविद्यालय और डिग्री कॉलेजों में अंतरराष्ट्रीय स्तर के विषयों और विदेशी भाषाओं की शिक्षा में कमी है, जिसमें विस्तार होना चाहिए।
शहर में आईआईएम जैसे प्रबंधकीय संस्थान गर्व का विषय हैं, लेकिन अभी ऐसे संस्थानों की और दरकार है। शहर की संस्थाओं को ऐसी शिक्षा देनी होगी, जिससे हमारी अंतरराट्रीय स्तर पर पहचान बने।
बेंगलुरू को शिक्षा के हब के रूप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली हुई है। ऐसी पहचान बनाने के लिए आपको शहर के विकास के साथ ही शिक्षा का विकास करना होगा। उन्होंने बताया कि राजधानी के सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लास्टिक इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (सीपैट) में प्रवेश के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर की परीक्षा होती है, लेकिन इस परीक्षा में सफलता के लिए ऐसे कोचिंग संस्थान भी होने चाहिए जो शहर के युवाओं को दाखिले के लिए तैयार कर सकें।
युवाओं की मदद के लिए खोला जाए सेंट्रल प्वाइंट
राजधानी में एक ऐसा सेंट्रल प्वाइंट यानी एक केंद्र विकसित करना होगा, जहां युवाओं को सभी सवालों के जवाब मिल सकें। वहां विद्यार्थियों और बेरोजगारों को बताया जाए कि भविष्य की चुनौतियां क्या हैं? कौन सी तकनीकी शिक्षा उन्हें सशक्त करियर बनाने में योगदान कर सकती है? शिक्षण संस्थान कौन सा है जो उन्हें उनके अनुसार उत्कृष्ट शिक्षा दे सकता है? जॉब की संभावनाओं के साथ ही उसका भविष्य क्या है? ऐसे कई सवालों के जवाब इस केंद्र के जरिए दिए जाएं।
बाजारीकरण की बजाय बढ़े शिक्षा की गुणवत्ता
राजधानी में ऐसी कई निजी संस्थाएं हैं, जहां बाजारवाद हावी है। शिक्षा के नाम पर जो फीस ली जाती है, वह शिक्षा की गुणवत्ता के मुकाबले काफी अधिक है। सरकार की ओर से नई शैक्षिक संस्थाओं को मान्यता दी जाती है तो उसमें इन्फ्रास्ट्रक्चर के अलावा शिक्षा की गुणवत्ता को भी मानक के रूप में शामिल करना चाहिए। राजधानी में 40 से अधिक निजी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाएं हैं, जिनमें 90 फीसद की स्थिति चिंताजनक है। कहीं उत्कृष्ट अनुदेशक नहीं हैं, तो कहीं स्मार्ट क्लास के नाम पर कंप्यूटर धूल खा रहा है।
ऐसे होगा शिक्षा का विकास
- नई सरकारी शैक्षिक संस्थाओं को खोलने की बजाय पहले से स्थापित संस्थाओं का विकास किया जाए तो विद्यार्थियों को उत्कृष्ट शिक्षा मिल सकती है।
- प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले गरीबों जैसी हो गई है। उनके विकास के लिए भी सरकार को चरण बद्ध तरीके से योजना बनानी होगी।
- तकनीकी शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए बाहर से शिक्षक लाकर राजधानी के शिक्षकों की ट्रेनिंग दी जाय।
- मॉडर्न और ग्लोबलाइजेशन के अंतर के बारे में भी अभिभावकों को बताने के लिए शिक्षण संस्थाओं में स्थान होना चाहिए।
- तकनीकी शिक्षा ग्रहण करने बाद नोएडा की तर्ज पर यहां अंतरराष्ट्रीय स्तर की कंपनियां आएं, इसके लिए सुविधाएं बढ़ानी होंगी।
- डीके वर्मा, उप निदेशक, उप्र कौशल विकास मिशन
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