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लखनऊ : कोख के कातिलों पर कसा जाए शिकंजा, प्राइवेट सेक्टर में रेगुलेशन की जरूरत

डॉ. नीलम सिंह ने लोगों को भ्रूण लिंग जांच और हत्या से सामाजिक असंतुलन के खतरे के बारे में भी आगाह किया, मगर अधिकतर लोगों को यह बात नागवार गुजरती थी।

By Krishan KumarEdited By: Published: Fri, 13 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Fri, 13 Jul 2018 10:56 AM (IST)
लखनऊ : कोख के कातिलों पर कसा जाए शिकंजा, प्राइवेट सेक्टर में रेगुलेशन की जरूरत

समाज का एक बड़ा वर्ग अभी बेटियों को बोझ ही मान रहा है। अल्ट्रासाउंड सेंटरों की मिलीभगत से भ्रूण लिंग की पहचान कर उन्हें कोख में मारा जा रहा है। ऐसे में इन कातिलों पर अब शिकंजा कसने का वक्त है। वहीं राजधानी के चिकित्सकीय ढांचे में भी काफी सुधार की जरूरत है। सरकारी में जहां मरीजों की रिस्पेक्टफुल केयर (सम्मानजक इलाज) को बढ़ावा दिया जाए। वहीं निजी सेक्टर के अस्पतालों को रेगुलेशन के दायरे में लाया जाए।

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वर्ष 1958 में जन्मीं अलीगढ़ निवासी डॉ. नीलम सिंह वर्ष 1975 में लखनऊ आईं। केजीएमयू में एमबीबीएस दाखिला लेने के बाद गाइनी एंड ऑब्स में एमडी की। वर्ष 1985 में इंदिरा नगर में बाल रोग चिकित्सक पति डॉ. एसएन सिंह के साथ प्राइवेट प्रैक्टिस शुरू की। डॉ. नीलम कहती हैं कि इस दौरान इलाज के लिए आने वाली महिलाओं की तमाम समस्या और उनके विचारों को जानने का मौका मिला।

तमाम शिक्षित महिलाएं भी भ्रूण लिंग की पहचान के लिए जोर देती थीं। खुद के पास अल्ट्रासाउंड की सुविधा न होने का हवाला देकर जांच केंद्रों का विकल्प सुझाने का जोर देती थीं। 10 वर्ष तक डॉ. नीलम सिंह महिलाओं को क्लीनिक में बेटा-बेटी समान होने की सीख देती रहीं। उन्हें भ्रूण लिंग जांच और हत्या से सामाजिक असंतुलन के खतरे के बारे में भी आगाह किया, मगर अधिकतर दंपति को यह बात नागवार गुजरती थी।

ऐसे में समाज में पैठ बना चुकी इस कुरीति के खिलाफ पति ने वृहद स्तर पर आवाज बुलंद करने की प्रेरणा दी। इस बीच पति की असमय मृत्यु भी हो गई। तब उनकी प्रेरणा को जीवंत करने और बेटियों को जीने का अधिकार देने के लिए वर्ष 1995 में वात्सल्य संस्था का गठन किया। साथ ही लोगों के बीच जाकर कन्या भ्रूण हत्या के बारे में जागरूक करना शुरू किया।

इसके अलावा वर्ष 2011 से गांवों में स्वच्छता टोली (वाश ब्रिगेड) को बनाना शुरू किया। यह टोली लोगों को स्वच्छता के जरिए बीमारी के प्रति सजग कर रही है। इसमें स्कूली बच्चों से लेकर गांव के सजग नागरिक भी शामिल हैं।

अल्ट्रासाउंड सेंटरों पर कसा शिकंजा
डॉ. नीलम सिंह ने बताया कि उन्होंने कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ यूपी के 75 जनपदों में कार्यशालाएं कीं। पीसीपीएनडीटी कानून के बारे में जन-जागरूकता लाईं। यूपी में कानून को प्रभावी तरीके से लागू न होने का मामला कोर्ट में गया। कोर्ट की सख्ती के बाद अल्ट्रासाउंड सेंटर का पंजीकरण शुरू हुआ। ऐसे में 2000 में पहली अल्ट्रासाउंड मशीन एसजीपीजीआई की पंजीकृत की गई। अब हर मशीन का पंजीकरण अनिवार्य है।

उन्होंने कहा कि यूपी में भ्रूण लिंग की जांच अभी हो रही है। हर वर्ष करीब दो लाख बेटियां कोख में ही मार दी जाती हैं। घटता लिंगानुपात असंतुलित समाज का कारक बन रहा है। इस पर सख्ती से रोक लगाई जाए।

इन क्षेत्रों में सुधार की जरूरत
- प्राइवेट सेक्टर में रेगुलेशन की जरूरत है। नॉन मेडिको और अप्रशिक्षित लोगों के अस्पताल संचालन पर रोक लगे।
- निजी अस्पतालों में मानकों को तय कर शुल्क निर्धारण भी किया जाए, ताकि मनमानी वसूली पर रोक लगे।
- सरकारी अस्पताल में डॉक्टरों की कमी है, तो पैरामेडिकल स्टाफ बढ़ाया जाए।
- स्टाफ के कार्यों का असंतुलन दूर किया जाए। कुछ स्टाफ के पास अधिक काम, तो कई खाली बैठे रहते हैं।
- महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान और हरियाणा की तरह यूपी में भी पीसीपीएनडीटी कानून को और प्रभावी किया जाए।
- बेटियों के सशक्तीकरण के लिए सरकारी कार्य योजनाएं बनाई जाएं, ताकि लोग उन्हें बोझ न समझें।
- राजनेता भी ऐसे डॉक्टर और सेंटरों की सिफारिश न करें, जिन पर पीसीपीएनडीटी के तहत कार्रवाई हो रही हो।
- घटते लिंगानुपात में सुधार किए जाए। लोगों को बेटियों के महत्व को समझाया जाए।
- बेटियों की सुरक्षा के लिए ठोस प्रबंध हों, ताकि वह भी कदम से कदम मिलाकर चल सकें।
- निजी डायग्नोस्टिक सेंटर की निगरानी को सुदृढ़ किया जाए।

- डॉ. नीलम सिंह, वरिष्ठ चिकित्सक


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