राउंडटेबल कॉन्फ्रेंस लखनऊः शिक्षा में गुणवत्ता पर हो फोकस, तभी सुधरेंगे हालात
विधायक (एंग्लो इंडियन) डॉ. डेंजिल. जे. गोडिन ने कहा कि स्कूलों में पढ़ाई के साथ-साथ विद्यार्थियों को जीवन जीने की कला भी सिखानी होगी।
लखनऊ में शैक्षिक संस्थानों की तो भरमार है, लेकिन कमी है तो शैक्षिक गुणवत्ता की। शिक्षा में गुणवत्ता पर फोकस किया जाए, तभी हालात सुधारेंगे। यह गुणवत्ता हर स्तर पर होनी चाहिए। क्लास में गुणवत्तापरक टीचिंग के साथ-साथ उच्च कोटि के रिसर्च की बहुत जरूरत है। यह गुणवत्ता मूलभूत संसाधनों की उपलब्धता और शिक्षा के लिए जरूरी अन्य मानकों में भी परिलक्षित होनी चाहिए। शिक्षक व छात्र अनुपात बिगड़ा हुआ है।
प्राइमरी स्कूलों से लेकर डिग्री कॉलेज और विश्वविद्यालय तक शिक्षक सिर्फ कोर्स पढ़ाने के बोझ तले दबे हुए हैं। एक-एक शिक्षक पांच से छह क्लास के विद्यार्थियों को पढ़ा रहा है। ऐसे में इनोवेशन जो कि इस समय सबसे बड़ी मांग है, उस दिशा में कोई ठोस काम नहीं हो पा रहा। अगर इन सभी कमियों को दूर किया जाए तो एजुकेशन हब बन चुका लखनऊ गुणवत्तापरक शिक्षा व शोध का केंद्र बन सकता है और विद्यार्थी भी दूसरे राज्यों में पलायन नहीं करेंगे।
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दैनिक जागरण के माय सिटी माय प्राइड अभियान के तहत शनिवार को राउंड टेबल कांफ्रेस का यही निष्कर्ष निकला। कांफ्रेंस का आयोजन दैनिक जागरण कार्यालय में किया गया, जिसकी अध्यक्षता डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा सहित चार विश्वविद्यालयों के कुलपति रह चुके प्रो. भूमित्र देव ने की। कार्यक्रम में बतौर विशिष्ट अतिथि निदेशक बेसिक शिक्षा सर्वेंद्र विक्रम सिंह और विधायक (एंग्लो इंडियन) डॉ. डेंजिल.जे.गोडिन मौजूद रहे।
इसके अलावा डिग्री कॉलेजों के प्राचार्य व विश्वविद्यालयों के शिक्षकों और शिक्षक संघ के पदाधिकारियों के साथ-साथ निजी स्कूलों के नुमाइंदे भी कांफ्रेंस में शामिल हुए। रेडियो जॉकी विक्रम ने भी कार्यक्रम में शिरकत की। राजधानी की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए सभी ने सुझाव पूरी बेबाकी के साथ रखे।
हर जिले में गरीब मेधावियों के लिए खुले स्कूल
कांफ्रेंस की अध्यक्षता कर रहे डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा समेत चार विश्वविद्यालयों के कुलपति रहे प्रो. भूमित्र देव ने कहा कि हर जिले में गरीब मेधावियों के लिए एक अच्छा स्कूल अलग से बनाया जाए। यहां से पढ़ाई करके निकले बच्चे उच्च शिक्षा अच्छे ढंग से हासिल करें, इसकी भी व्यवस्था
होनी चाहिए।
क्रेडिट बेस्ड वैल्यू एजुकेशन की व्यवस्था हो। वोकेशनल कोर्स जबरन न थोपे जाएं, क्योंकि इसकी सफलता का प्रतिशत सिर्फ 13 है। ऐसे में मुख्य कोर्स के साथ ही वैकल्पिक रूप से इसे पढऩे की छूट दी जाए। सरकारी तंत्र फैसिलिटेटर की भूमिका में हो। विश्व स्तर पर ज्ञान की पैदावार ज्यादा है, लेकिन मांग और खपत कम है। नॉलेज की जीएसटी यानी जनरेशन, स्टोरेज और ट्रांसफॉर्मेशन पर जोर हो। अच्छा शिक्षक वही है, जो विद्यार्थियों को कठिन बात सरलता से सिखा सके।
छुट्टी के बाद कैंपस का प्रयोग करने की हो इजाजत
बेसिक शिक्षा निदेशक सर्वेन्द्र विक्रम सिंह ने कहा कि स्कूल संचालकों को चाहिए कि वह अपने विद्यालय में छुट्टी के बाद ताला न बंद करें, बल्कि समाज
के जिम्मेदार व्यक्ति की देखरेख में आसपास के बच्चों को कैंपस प्रयोग करने की इजाजत दें। स्कूल में खेलने, सांस्कृतिक गतिविधियों व लाइब्रेरी में पढऩे की आजादी मिलने से बच्चों का न केवल समग्र विकास होगा, बल्कि उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा।
उन्होंने कहा कि सरकारी स्कूलों में अच्छी पढ़ाई नहीं होती यह गलत है। प्रदेश में कई ऐसे विद्यालय हैं, जहां के शिक्षक अपने प्रयास व समाज की मदद से स्मार्ट ढंग से टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर अपने विद्यालय में पढ़ाते हैं। उन्होंने कहा कि यह कहना गलत है कि शिक्षक के पास पढ़ाने का समय नहीं है, क्योंकि साल के 220 दिनों में अगर साढ़े पांच घंटे रोजाना की पढ़ाई जोड़ें तो यह 1166 घंटे हुई। वहीं कक्षा एक का पूरा सिलेबस सिर्फ 60 घंटे का ही है।
पढ़ाई के साथ सिखानी होगी जीवन जीने की कला
विधायक (एंग्लो इंडियन) डॉ. डेंजिल. जे. गोडिन ने कहा कि स्कूलों में पढ़ाई के साथ-साथ विद्यार्थियों को जीवन जीने की कला भी सिखानी होगी। सिर्फ
किताबी ज्ञान देने से कुछ नहीं होगा। व्यावहारिक ज्ञान और प्रायोगिक ज्ञान से ही विद्यार्थियों का भला होगा। आज की दिक्कत यह है कि विद्यार्थी थ्योरी
पढ़कर नंबर बटोरते हैं और जब डिग्री लेकर बाहर जाते हैं तो नौकरी नहीं मिलती। देश की सेवा करना सर्वोपरि है, जब हम विद्यार्थियों को यह सिखाएंगे
तो वह खुद भी नई खोज के लिए प्रेरित होंगे। आखिर कब तक कोई नया वैज्ञानिक पैदा होने का हम इंतजार करेंगे। आतंरिक मूल्यांकन की व्यवस्था मजबूत हो और विद्यार्थियों के साथ शिक्षकों का भी मूल्यांकन हो।
जनसहभागिता से हों कार्य
- अभिभावक भी अपनी जिम्मेदारी समझें सिर्फ स्कूल के भरोसे ही बच्चों को न छोड़ें। कोशिश करें कि बच्चे स्कूल में पढ़ाई के अलावा शिक्षणेत्तर गतिविधियों में भी शामिल हों।
- अभिभावक व स्कूल प्रबंधन के बीच अच्छे संबंध हों और आपस में मिलकर काम करने पर जोर दें।
- निजी स्कूल छुट्टी के बाद गरीब बच्चों को पढऩे, खेलने और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए अपने कैंपस का प्रयोग करने की इजाजत दें।
कॉरपोरेट सेक्टर से मिले मदद
- सरकारी प्राइमरी व माध्यमिक स्कूलों में मूलभूत संसाधन जैसे पंखा, डेस्क-बेंच और जरूरत के अनुसार सामग्री देने में आगे आएं। कुछ विद्यालयों को गोद लेकर उन्हें मॉडल बनाएं।
- विश्वविद्यालय और डिग्री कॉलेजों में बेहतर रिसर्च सुविधा के लिए फंड देने का काम करें।
- जो गरीब मेधावी विद्यार्थी हैं उन्हें देश-विदेश में श्रेष्ठ संस्थानों में पढ़ाने के लिए अच्छी स्कालरशिप योजना शुरू करें।
सरकार के स्तर से प्रयास
- सरकारी प्राइमरी स्कूलों में पढ़ा रहे शिक्षकों से गैर शैक्षणिक कार्य न करवाए। प्राइमरी और माध्यमिक स्कूलों में मूलभूत संसाधनों की कमी दूर की
जाए। शिक्षकों की कमी प्राइमरी स्तर से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक है, इसे भी दूर किया जाए। विश्वविद्यालयों को स्वायत्ता दी जाए, ताकि वह अपने स्तर पर फंड जुटाकर रिसर्च व इनोवेशन में बेहतर काम कर सकें।
यह भी मांग उठी
- कौशल विकास के कोर्स जबरन न थोपे जाएं, बल्कि विद्यार्थियों को कोर्स के साथ ही पढ़ने की च्वॉइस दी जाए।
- पेटेंट करवाने और इनोवेशन पर जोर दिया जाए। हमारा मकसद अच्छे साइंटिस्ट तैयार करना हो।
- विद्यार्थियों को जीवन जीने की कला सिखाने वाली शिक्षा भी दी जाए।
- आंतरिक मूल्यांकन विद्यार्थियों और शिक्षकों दोनों का समय-समय पर हो।
- प्राइमरी स्कूलों में कक्षा एक में अच्छे विद्यार्थी आएं, इसलिए आंगनबाड़ी को मजबूत बनाया जाए।
- विश्वविद्यालयों का हर पांच साल पर सिलेबस जरूरत के अनुसार बदले।
- डिग्री कॉलेजों को नामांकन शुल्क और परीक्षा शुल्क का कुछ हिस्सा मिले ताकि वह अपने यहां संसाधन जुटा सकें।
- निजी स्कूलों में जरूरतमंद बच्चों को दाखिला मिले, ताकि अमीर-गरीब साथ-साथ पढ़ें। इससे बदलाव आएगा।
- कॉरपोरेट से मदद लेने में सरकारी स्कूल और कॉलेज हिचक न दिखाएं, क्योंकि अकेले सरकार के भरोसे रहना ठीक नहीं।
विशेषज्ञः किसने क्या कहा?
विश्वविद्यालयों को वित्तीय स्वायत्ता दी जानी चाहिए। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में शोध को बढ़ावा देना चाहिए। खामियों पर लोग सरकार को कोसना बंद करें। आमजन पर भी सुधार के लिए दबाव बनाना होगा।
- प्रो. अरविंद मोहन, विभागाध्यक्ष, अर्थशास्त्र, लखनऊ विश्वविद्यालय
मौजूदा समय में इनोवेटिव टीचर्स की जरूरत है, जो अलग अलग मैथेडोलॉजी से बच्चों की लर्निंग स्किल को डेवलप कर सकें। बच्चों को पॉजिटिव मोटीवेशन की जरूरत है।
- गीता गांधी, अध्यक्ष, सिटी मांटेसरी स्कूल
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में यह धारणा बन चुकी है कि यह रोजगार उपयोगी नहीं रही। इस धारणा को बदलना होगा। जरूरी है कि शिक्षा छात्र केंद्रित होनी
चाहिए। शिक्षा के क्षेत्र में वैल्यू एडीशन कोर्स पढ़ाये जाने चाहिए।
- प्रो. एसडी शर्मा, प्राचार्य, श्री जय नारायण पीजी कॉलेज (केकेसी)
बेसिक शिक्षा में सुधार की अत्यंत जरूरत है। शिक्षा के क्षेत्र में कम बजट का आवंटन होना भी बड़ा सवाल है, यह भी एक बड़ा कारण है जिससे छात्र व
शिक्षण संस्थान सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं।
- डॉ. दुर्गेश कुमार श्रीवास्तव, महामंत्री, शिक्षक संघ, लखनऊ विश्वविद्यालय
परिषदीय शिक्षकों से सिर्फ पढ़ाई कराई जाए, अन्य कार्यों से मुक्त किया जाए। प्राथमिक कक्षा से पहले की पढ़ाई के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों को सुदृढ़
किया जाए। इंफ्रास्ट्रक्चर की कमियों को दूर करना होगा। आरटीई में कमजोर बिंदुओं को हटाकर उसे ओर सशक्त बनाना होगा।
- विनय सिंह, प्रदेश अध्यक्ष, प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षित स्नातक एसोसिएशन
प्रत्येक विद्यालय में प्राथमिक स्तर पर पांच कक्ष और पांच अध्यापक होने चाहिए। साफ सुथरा विद्यालय, जिसमें पेयजल व्यवस्था, शौचालय, फर्नीचर व
बिजली उपलब्ध हो। सत्र के प्रारंभ होने से पहले ही बच्चों को पुस्तकें उपलब्ध हों।
- लल्ली सिंह, बेसिक शिक्षक नेता
प्राथमिक आवश्यकता इस बात की है कि शिक्षा तंत्र में आर्थिक या गैर आर्थिक कारकों के आधार पर भेदभाव न हो। प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा तक शिक्षकों
में स्व स्फूर्ति व स्व प्रेरणा को बढ़ाने से ही शिक्षा में सुधार हो सकता है।
- प्रो. एमके अग्रवाल, अर्थशास्त्र विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय
प्रत्येक स्तर पर शिक्षक छात्र अनुपात पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। खाली पद भरे जाएं। शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया पूरी पारदर्शिता के साथ
होनी चाहिए। पाठ्यसहगामी क्रियाओं में सहभागिता सुनिश्चित की जाए।
- प्रो. दिनेश कुमार, शिक्षाशास्त्र विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय
शिक्षकों और अभिभावकों की नियमित मुलाकात हो, जिससे दूसरे के अनुभवों से सीखने को मिले। स्कूल व कॉलेजों में पढ़ाई का रिपोर्ट कार्ड पब्लिक के बीच
भी प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
- मनीष थापा, राइट वॉक फाउंडेशन
विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों को हर पांच साल में रिवाइज किया जाना चाहिए। इंजीनियरिंग कॉलेजों के बंद होने का कारण भी यही है कि कोर्स
रीडिजाइन नहीं किए गए।
- डीके वर्मा, डिप्टी डायरेक्टर, उत्तर प्रदेश कौशल विकास मिशन
स्मार्ट क्लास से पहले अच्छी पढ़ाई पर फोकस हो। सिलेबस समय से अपडेट किया जाए। बेसिक शिक्षा में अंग्रेजी के महत्व को समझना चाहिए, ताकि सरकारी
महाविद्यालयों में सामान्य वर्ग का छात्र आकर्षित हो सके। माध्यमिक शिक्षा में वोकेशनल कोर्सों को बढ़ाया जाए।
- डॉ. मौलीन्दु मिश्रा, पूर्व अध्यक्ष लुआक्टा
क्वालिटी रिसर्च के पैरामीटर तय किए जाएं। प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। फंडिंग की पीरिओडिकल रिपोर्टिंग होनी चाहिए। हर
प्रकाशन की पुस्तकों को मान्यता देना चाहिए, जिससे एकाधिकार समाप्त हो।
- डॉ. अलका सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर, प्रवक्ता, डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय
बच्चों को स्किल बेस्ड एजुकेशन मुहैया कराना बेहद जरूरी हो चुका है। समय-समय पर ओरिएंटेशन प्रोग्राम का आयोजन भी किया जाना चाहिए। शारीरिक व
मानसिक स्तर पर शिक्षा व्यवस्था की मॉनीटङ्क्षरग होती रहनी चाहिए।
- डॉ. वंदना उप्रेती, प्राचार्य, नारी शिक्षा निकेतन
आम बच्चों के लिए शिक्षा की क्वालिटी उनके माता-पिता की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करती है, जो बहुत ही दुख की बात है। शिक्षा जैसी मूल सुविधा मार्केट
फोर्स और प्राइवेटाइजेशन पर नहीं छोड़ी जा सकती।
- समीना बानो, प्रमुख, राइट वाक फाउंडेशन
आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम 2016 को पूर्ण रूप से लागू किया जाए, जिससे कि समावेशी शिक्षा पर जोर दिया जाए। इसके तहत विकलांग बच्चों को ग्रामीण एवं
शहरी स्कूलों में दाखिला दिलाया जा सकेगा।
- डॉ. अमिताभ मेहरोत्रा, फाउंडर चेयरपर्सन, स्पार्क इंडिया
शिक्षा जगत तीन पेचों पर कसा है। प्रशासन, शिक्षक एवं छात्र। तीनों पेच कसे होने चाहिए। किसी के ढीले होने पर शिक्षा जगत नहीं टिकेगा। छात्रों की कमी
महाविद्यालयों के लिए गंभीर समस्या है।
- डॉ. एनके शर्मा, हेड (मैथ्स) लखनऊ क्रिश्चियन कॉलेज
उच्च शिक्षा में गुणवत्ता तभी आयेगी जब प्राथमिक और माध्यमिक स्तर से अच्छा बच्चा उच्च शिक्षा में आयेगा। बच्चों की संख्या बढ़ाना और उस अनुपात में
नौकरी की संख्या न बढ़ा पाना सरकार की नीतियों का फेल होना ही माना जाएगा।
- प्रो. गोविंद जी पाण्डेय, विभागाध्यक्ष, पत्रकारिता विभाग बीबीएयू
प्राइवेटाइजेशन ऑफ हायर एजुकेशन भी एक महत्वपूर्ण विषय है। सरकार को रिसर्च एंड डेवलपमेंट के लिए फंड देना चाहिए, ताकि स्टूडेंट विदेश न भागें और अपने ही देश में पीएचडी करें।
- डॉ. बिंती सिंह, लेखिका
विवि अपने संबद्ध महाविद्यालयों से परीक्षा शुल्क एवं नामांकन शुल्क के रूप में अधिकतम फीस वसूलकर अपने दायित्व को समाप्त मान लेते हैं। डीन,
महाविद्यालय विकास परिषद मात्र कागजी हाथी बनकर रह गए हैं। उन्हें सक्रिय होना होगा। कॉलेजों को स्वायत्ता दी जानी चाहिए।
- डॉ. देवेंद्र कुमार सिंह, प्राचार्य कालीचरण पीजी कॉलेज
सभी बच्चों को समान शिक्षा का अधिकार है, जिससे शिक्षा ग्रहण करने का माहौल अच्छा बने और स्टूडेंट्स की लर्निंग एबिलिटी बढ़े।
- शिप्रा श्रीवास्तव, सामाजिक कार्यकर्ता
स्कूलों की संख्या बढ़ने के साथ ही उनकी निगरानी का काम बढ़ा है, इसलिए बीएसए और डीआईओएस की संख्या भी हर शहर में बढ़ानी चाहिए। शिक्षकों की
जवाबदेही तय की जानी चाहिए।
- अनिल अग्रवाल, प्रबंधक, सेंट जोसफ स्कूल
शहर में शिक्षा माफियाओं और अधिकारियों से सांठगांठ से चल रहे करीब दो हजार फर्जी स्कूल बंद होने चाहिए। विद्यालयों में संसाधन बढ़ाने के लिए कारपोरेट सेक्टर मदद करे।
- डॉ. आरपी मिश्र, प्रदेशीय मंत्री और प्रवक्ता, उप्र माध्यमिक शिक्षक संघ
शिक्षण संस्थाओं को स्वायत्ता मिलनी चाहिए। स्कूलों की बेहतरी के लिए सरकार को प्लानिंग कर बजट आवंटन करना चाहिए। हर विद्यालय शाम को निर्धन बच्चों के लिए क्लास चलाए।
- डॉ. जेपी मिश्रा, सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य अमीनाबाद इंटर कॉलेज
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