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लखनऊ : प्लेसमेंट न होना सबसे बड़ी समस्या, दूसरे राज्यों में जाकर विद्यार्थी पढ़ने को मजबूर

लखनऊ विश्वविद्यालय दो साल के बाद सौ बरस का हो जाएगा। यहां स्नातक और स्नातकोत्तर कोर्सेज में दाखिले की मारामारी रहती है ।

By Krishan KumarEdited By: Published: Sat, 28 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Sat, 28 Jul 2018 04:07 PM (IST)

आशीष त्रिवेदी, लखनऊ

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राजधानी भले एजुकेशन हब में तब्दील हो गई हो, लेकिन यहां के संस्थानों में आज भी गुणवत्तापरक शिक्षा और अच्छा रिसर्च दूर की कौड़ी है। निजी शिक्षण संस्थान प्राइमरी और माध्यमिक स्तर तक तो अच्छी पढ़ाई करवा रहे हैं, लेकिन उच्च शिक्षा देने में यह फेल साबित हो रहे हैं।

प्राइवेट इंजीनियरिंग संस्थानों की हालत सबसे खस्ता है। पढ़ाई के नाम पर सिर्फ मोटी फीस वसूली जा रही है। सरकारी शिक्षण संस्थानों में मूलभूत संसाधनों का अभाव और शिक्षकों की कमी है। अच्छा प्लेसमेंट न होने से विद्यार्थी आज दिल्ली, मुम्बई, पुणे और बंगलुरू जाने को मजबूर हैं।

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सरकारी स्कूलों में न तो संसाधन न ही शिक्षक, निजी अव्वल राजधानी में सरकारी प्राइमरी व पूर्व माध्यमिक स्कूलों की संख्या करीब 1800 है और 6000 टीचर हैं। दो लाख विद्यार्थी इन स्कूलों में पढ़ते हैं, मगर सड़क के नजदीक के स्कूलों में पांच से छह-छह टीचर तैनात हैं और दूर-दराज के इलाकों में स्थित स्कूलों में दो या तीन टीचर। इस असमानता के कारण बेहतर ढंग से पढ़ाई नहीं हो पाती।

इसी तरह माध्यमिक स्कूलों में भी स्थिति बद से बदतर है। सरकारी सहायता प्राप्त इंटर कॉलेजों में ढंग की लैब तक नहीं है। यहां पर विज्ञान के प्रयोग आज भी रटाए जाते हैं। हालांकि प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई ठीक है और एक से बढ़कर एक ग्रुप यहां पर मौजूद हैं, जो हर साल हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा में श्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं।

हर साल राजधानी के विद्यार्थी मेरिट सूची में डंका बजाते हैं। लोरेटो कान्वेंट, ला-मार्टीनियर ब्वॉयज व गर्ल्स कॉलेज, सेंट फ्रांसिस स्कूल, कैथेड्रल आदि में दाखिले के लिए लंबी-लंबी कतारें लगती हैं। स्मार्ट क्लास में पढ़ाई कर रहे यहां के विद्यार्थी कला और खेलकूद में भी अच्छा प्रदर्शन करते हैं।

लविवि में दाखिले की मारामारी, दूसरी यूनिवर्सिटी पीछे
लखनऊ विश्वविद्यालय (लविवि) दो साल के बाद सौ बरस का हो जाएगा। यहां पर स्नातक और स्नातकोत्तर कोर्सेज में दाखिले की जबरदस्त मारामारी रहती है, लेकिन दूसरी नई खुली यूनिवर्सिटी अभी उतनी पहचान नहीं बना पा रहीं। लविवि में स्नातक कोर्सेज में 3300 सीटों के मुकाबले इस बार 28 हजार आवेदन फॉर्म आए।

वहीं ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती उर्दू, अरबी-फारसी यूनिवर्सिटी में भले ही प्रोफेशनल कोर्स पढ़ाए जाते हों और अच्छे ऑनर्स कोर्स चलाए जा रहे हों, लेकिन विद्यार्थियों को रिझाने में यह अभी कामयाब नहीं हो पा रही है। इसी तरह डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास यूनिवर्सिटी में दिव्यांगों को बेहतर शिक्षा देने के साथ-साथ सामान्य छात्रों के भी पढऩे की व्यवस्था है।

यहां श्रेष्ठ संसाधनों के साथ-साथ आर्टिफिशयल लिंब सेंटर, साइन लैंग्वेज सेंटर भी है, फिर भी यहां सीटें भरना मुश्किल होता है।

प्लेसमेंट न होने से प्रोफेशनल कोर्स नहीं बना पा रहे पहचान
राजधानी में लविवि, बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय से संबद्ध इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट कॉलेजों में बीटेक, बीबीए, एमबीए, एमसीए, एमएससी नैनो टेक्नोलॉजी, एमएससी अक्षय ऊर्जा सहित तमाम प्रोफेशनल कोर्स चल रहे हैं, लेकिन इनमें अच्छा प्लेसमेंट न होने के कारण विद्यार्थियों का अधिक रूझान नहीं रहता। विद्यार्थी अच्छे प्लेसमेंट के लिए तरसते हैं।

पिछले वर्ष से लविवि में काउंसिलिंग एंड प्लेसमेंट सेल काम कर रहा है तो स्थिति थोड़ी सुधरी है, लेकिन अभी प्लेसमेंट उतना अच्छा नहीं है। लविवि में पीजी के परंपरागत कोर्सेज में तो दाखिले की मारामारी है, लेकिन प्रोफेशनल कोर्सेज और डिप्लोमा कोर्सेज में अधिक प्रतियोगिता नहीं है।

रिसर्च और इनोवेशन के लिए फंड की दरकार
लविवि में बेहतर रिसर्च और इनोवेशन के लिए फंड की दरकार रहती है। यूनिवर्सिटी अपने संसाधनों से सिर्फ कर्मचारियों और शिक्षकों को वेतन ही दे पाती है। ऐसे में अच्छे संसाधन जुटाकर पढ़ाई करवाने में ही वह हांफ जाती है। ऐसे में बेहतर रिसर्च नहीं हो पाता। जंतु विज्ञान और भूगर्भ विज्ञान जैसे कुछ गिने-चुने विभाग बाहरी मदद से अच्छा रिसर्च कर रहे हैं, लेकिन बाकी स्थिति अच्छी नहीं है। यही हाल बाकी यूनिवर्सिटीज का भी है। रिसर्च के नाम पर सिर्फ खानापूरी हो रही।

ये हो तो बने बात
- सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में गुणवत्तायुक्त पढ़ाई पर फोकस हो।
- प्राइवेट स्कूलों के समकक्ष उन्हें भी तैयार किया जाए।
- सरकारी और सहायता प्राप्त माध्यमिक स्कूलों में भी शैक्षिक गुणवत्ता पर फोकस हो। संसाधन बढ़ाकर उनके परिणाम की समीक्षा की जाए।
- कम छात्र संख्या या खराब रिजल्ट वाले सरकारी, सहायता प्राप्त परिषदीय और माध्यमिक विद्यालयों की रुटीन मॉनीटरिंग की जाए। अगर नहीं चल पा रहे तो उन्हें बंद कर उनके शिक्षकों को दूसरे विद्यालयों में खाली पदों पर शिफ्ट किया जाए।
- लखनऊ विश्वविद्यालय समेत सभी विश्वविद्यालयों में पढ़ाई के साथ शोध पर जोर दिया जाए।
- मांग के अनुरूप रोजगारपरक पाठ्यक्रम चलाकर विद्यार्थियों का प्लेसमेंट सुनिश्चित कराया जाए।
- मनमानी फीस वसूली पर अंकुश लगाया जाए।
- आरटीई के तहत निर्धन बच्चों को दाखिला दिलाया जाए।

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