कैंसर पीड़ित बच्चों और तीमारदारों की सेवा में जुटी हैं राजधानी की सपना उपाध्याय
सपना उपाध्याय ने कहा कि गरीबों को अस्पतालों में इलाज के लिए तमाम दुश्वारियां उठानी पड़ती हैं।
जिंदगी की कुछ घटनाएं इंसान के जीवन की दिशा ही बदल देती हैं। कभी-कभार दूसरों की समस्याएं दिल को ऐसे छू जाती हैं कि उनका दर्द हल्का किए बिना सुकून नहीं मिलता। राजधानी में कैंसर पीड़ित बच्चों और उनके परिजनों की मदद में जुटीं सपना उपाध्याय के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। उनके द्वारा गरीबों की थोड़ी-थोड़ी मदद का शुरू किया गया सिलसिला आज व्यापक रूप ले चुका है।
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आगरा में वर्ष 1970 में जन्मीं सपना उपाध्याय का विवाह वर्ष 1992 में लखनऊ में हुआ था। आशियाना निवासी उनके पति राजीव उपाध्याय व्यवसायी हैं। वैवाहिक जीवन खुशहाल चल रहा था। इसी बीच वर्ष 2003 में छोटी बेटी को बुखार आने पर वह उसे दिखाने पति के साथ केजीएमयू के पीडियाट्रिक विभाग में गईं। सपना ने इसी दौरान एक बीमार बच्चे को घर ले जाते उसके परिजन दिखे। वह रो रहे थे, पूछने पर पैसा न होने की वजह से इलाज बंद कर घर ले जाने का हवाला दिया।
ऐसे में पति की मदद से बच्चे को दोबारा भर्ती करवाया। माह भर चले उसके इलाज का पूरा खर्च उठाया। बच्चे की मदद करके सपना को काफी सुकून मिला। इसके बाद उन्होंने इसे अपना सेवाकार्य बना लिया। वह ऐसे जरूरतमंदों की मदद के लिए अस्पताल जाने लगीं। डॉक्टरों से पूछ कर गरीब बच्चों के इलाज में दवा आदि के लिए पैसे देने लगीं।
ऐसे में इस नेक मुहिम में अधिक से अधिक लोगों को साथ लेने का ख्याल आया। उन्होंने कई लोगों को मदद के लिए प्रेरित किया, लेकिन कोई संस्था न होने से लोग मदद करने में कई बार सोचते थे। लिहाजा, वर्ष 2005 में ईश्वर चाइल्ड संस्था का गठन कर दिया।
दवा-ऑपरेशन का संभाला जिम्मा
सपना उपाध्याय की संस्था बनते ही लोग उनसे जुड़ने लगे। ऐसे में उन्होंने केजीएमयू में भर्ती कैंसर पीड़ित बच्चों को हर गुरुवार सप्ताह भर की डॉक्टर द्वारा लिखी दवा मुहैया कराने का काम शुरू किया, जो आज भी चल रहा है। उनकी संस्था इलाज कराकर घर जाने वाले बच्चों को भी दवा खरीदकर देती हैं। साथ ही गरीब बच्चों के ऑपरेशन में 30 हजार रुपए तक की मदद करती है।
राशन के साथ बना रहीं आत्मनिर्भर
सपना उपाध्याय केजीएमयू के पीडियाट्रिक आंकोलॉजी विभाग में इलाज कराने आए तीमारदारों को राशन भी बांटती हैं। इससे बच्चे का इलाज कराने आने वाले परिजन खर्च के चक्कर में जल्दी घर भागने की कोशिश नहीं करते। वहीं लोहिया संस्थान में वयस्क कैंसर रोगियों के गरीब परिजनों को भी राशन-तेल मुहैया कराती हैं, ताकि वह भूखे पेट न सोएं। अस्पतालों में इलाज के लिए आईं गरीब परिवार की महिलाओं को हैंड मेड वस्तु बनाने का प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर भी बना रही हैं।
सपना उपाध्याय ने कहा कि गरीबों को अस्पतालों में इलाज के लिए तमाम दुश्वारियां उठानी पड़ती हैं। पैसे के अभाव में कोई इलाज बीच में छोड़ देता है, तो कोई इलाज के दरम्यान सब कुछ गंवा देता है। ऐसे में गरीब परिवारों के इलाज से लेकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने तक की दिशा में मदद की जा रही है।
इलाज में सब खर्च, सिलाई मशीन से बदली तकदीर
अल्लूपुर मलीहाबाद निवासी सरला वर्ष 2006 में बेटे सनी का इलाज कराने आईं। काफी दिन तक चले इलाज के बाद बेटे की मौत हो गई। उनकी आर्थिक स्थिति भी बदहाल हो गई। अन्य चार बच्चों का पालन-पोषण मुश्किल हो गया। ऐसे में सिलाई का काम जानने वाले सरला के पति धर्मेंद्र को सपना ने दो मशीनें दीं। इसके बाद धर्मेंद्र ने कपड़ों की सिलाई शुरू की। इसके अलावा सरला को पेपर और रेशम ज्वैलरी बनाने का प्रशिक्षण दिया। अब दोनों की मेहनत से परिवार में रौनक आ गई। बच्चे भी स्कूल जा रहे हैं।
अब तक पांच हजार बच्चों की मदद
सपना उपाध्याय के मुताबिक अब तक पांच हजार बच्चों के दवा-इलाज में उनकी संस्था ने मदद की है। सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों से संपर्क कर गरीब बच्चों के इलाज का सिलसिला जारी है। इसके अलावा वयस्क कैंसर रोगियों के ऑपरेशन के बाद पुनर्वास के लिए लोहिया संस्थान में हर माह 25 एक्सरसाइज किट दी जा रही हैं। गरीब परिवारों की करीब 60 बेटियों की शादी कराने के साथ ही 150 बच्चों को पढ़ाया भी जा रहा है। इन बच्चों को बैग, कॉपी-किताब संस्था के फाउंडेशन डे पर दिया जाता है, जबकि स्कूल की वर्ष भर की एक मुश्त फीस दे दी जाती है।
सुनने पड़ते थे ताने
सपना उपाध्याय के मुताबिक उनके मन में गरीबों की मदद करने की ललक थी, लेकिन वह जब इसके लिए लोगों से मदद मांगतीं तो समाज सेवा को लेकर लोग पीठ-पीछे ताने मारते थे। इस दौरान उनके परिवार का उन्हें साथ मिला। पति के सहयोग से उन्होंने अपना मकसद नहीं छोड़ा। गरीबों की मदद से मिले सकून से और इच्छाशक्ति मजबूत होती गई। ऐसे में मदद का कारवां दिनोंदिन बढ़ता गया।
ये हो तो बने बात
- पीडियाट्रिक कैंसर के इलाज की सुविधा का विस्तार हो।
- गरीब बच्चों के परिवार वालों को भी इलाज के दौरान मदद मिले, ताकि वह अस्पताल में रूक कर इलाज करा सकें।
- कैंसर की बीमारी से उबरने के बाद बच्चे और बच्चियों के पुनर्वास की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।