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निरंतर प्रयास से लखनऊ में पेड़ों की कटान बंद करायी, सड़कों और पार्कों का कराया विकास

बीके सिंह ने पार्कों के संरक्षण की लड़ाई लड़ी है। राजधानी में बने एशिया के सबसे बड़े जनेश्वर मिश्र पार्क को व्यवस्थित रूप दिलाने में भी उन्होंने कोर्ट से निर्देश दिलाया।

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Mon, 16 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Mon, 16 Jul 2018 06:00 AM (IST)
निरंतर प्रयास से लखनऊ में पेड़ों की कटान बंद करायी, सड़कों और पार्कों का कराया विकास

वह पेशे से वकील हैं, लेकिन जनहित के मुद्दों पर जिम्मेदार नागरिक की तरह संजीदा हैं। पर्यावरण प्रेमी हैं। इसीलिए अपने आस-पास के पार्कों को सजाने-संवारने का जिम्मा खुद संभालते हैं। शहर में प्रकृति का क्षरण कर हो रहे अनियोजित विकास से व्यथित हुए तो इसकी रोकथाम के लिए जनहित याचिका (पीआईएल) को हथियार बनाया और अब तक 500 से अधिक पीआईएल हाईकोर्ट में दाखिल कर चुके हैं। इसमें से 90 फीसद मामलों में कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया। आज भी पीआईएल के जरिए राजधानी में नियोजित विकास और पर्यावरण संरक्षण की मुहिम छेड़े हुए हैं। कहते हैं शहर का विकास हो, पर प्रकृति से छेड़छाड़ नहीं होना चाहिए।

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गोमतीनगर के विरामखंड निवासी 55 वर्षीय बीके सिंह के पिता स्व. लालता प्रसाद सिंह की इच्छा थी कि उनका एक बेटा वकील बने। चार भाई अलग-अलग प्रोफेशन में थे। लिहाजा, पिता का सपना पूरा करने के लिए उन्होंने एलएलबी किया और 1991 में हाईकोर्ट लखनऊ खंड पीठ में वकालत शुरू कर दी।

प्रैक्टिस के साथ वह सामाजिक सरोकार से भी जुड़े। पर्यावरण संरक्षण के लिए उद्यान विभाग से जुड़कर बागवानी की। उन दिनों राजधानी में पार्कों को नष्ट कर अनियोजित विकास कराया जा रहा था। वह पर्यावरण को क्षति पहुंचाकर विकास करने के खिलाफ हैं। ऐसे में कई पीआईएल के जरिए कोर्ट में इस पर बहस की, जिसके बाद हाईकोर्ट ने पार्कों के संरक्षण के लिए सरकार को आदेश दिया।

गोमतीनगर में 354 पार्कों को मिला जीवनदान
बीके सिंह ने पार्कों के संरक्षण की लड़ाई लड़ी है। राजधानी में बने एशिया के सबसे बड़े जनेश्वर मिश्र पार्क को व्यवस्थित रूप दिलाने में भी उन्होंने कोर्ट से निर्देश दिलाया। बाद में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उन्हें सम्मानित भी किया था। उनकी एक जनहित याचिका पर कोर्ट के निर्देश से गोमतीनगर में ही 354 पार्कों को जीवनदान मिला। इन पार्कों में अधिकांश का जीर्णोद्धार हो चुका है। मल्हौर ओवर ब्रिज का काम सात वर्षों से लटका था। उनके प्रयास से कोर्ट के आदेश पर निर्माण शुरू कराया गया। स्वच्छता को लेकर उनकी पहल को देखते हुए नगर निगम ने उन्हें गोमतीनगर का ब्रांड एंबेसडर नियुक्त किया है।

बीके सिंह बताते हैं कि मेरे पिता जी की इच्छा थी कि बेटा वकालत करे। इसलिए मैं वकील बन गया। प्रैक्टिस के साथ जन सरोकार से जुड़ा। 90 के दशक से पार्कों को तोड़कर अवैध निर्माण देखते कष्ट होता था। इसका विरोध करने के लिए पीआईएल को हथियार बनाया। हाईकोर्ट ने मेरी याचिकाओं पर सरकार को निर्देश दिया। मुझे इस बात की खुशी है कि राजधानी में नियोजित विकास में योगदान दे पा रहा हूं।

गोमतीनगर में खुलवाए बंद रास्ते
गोमतीनगर जनकल्याण महासमिति के महासचिव डॉ. राघवेंद्र शुक्ल बताते हैं कि अधिवक्ता बीके सिंह के प्रयासों से बहुत काम आसानी से हो गया। मल्हौर ओवर ब्रिज का निर्माण पूरा हुआ। आइनेक्स्ट मॉल के सामने बंद रास्ता खुलवाया गया। वर्ल्ड बैंक की स्कीम के तहत शहर में बिछाई गई पाइप लाइन की गंदगी साफ कराई गई। विवेक खंड में एक प्राइमरी स्कूल को प्रबंधक ने अवैध निर्माण कराकर इंटर कॉलेज बना दिया था, जिसके बाद बीके सिंह की पीआईएल पर निर्माण ढहाने का आदेश हुआ और सात मीटर का रास्ता बहाल हुआ।

अखबार पढ़ने से मिलती रही प्रेरणा
बीके सिंह पढ़ने के शौकीन हैं। किताबों के इतर वह अखबार जरूर पढ़ते हैं। एक दिन की बात है वह सुबह समाचार पत्र पढ़ रहे थे। तभी सीवर लाइन से जुड़ी एक खबर पर नजर पड़ी। एक बच्चा खुले मैन होल में गिरकर मर गया था। इस पर चिंतन किया कि दोष तो सिस्टम का है, बच्चे का नहीं। ऐसे में क्यों न उसके परिजन को आर्थिक मदद दिलाने का प्रयास किया जाए। इसके लिए पीआईएल दाखिल करके पांच लाख मुआवजा दिलाने की पैरवी की।

हालांकि कोर्ट ने एक लाख रुपये देने का निर्देश सरकार को दिया। खास बात यह कि बीके सिंह उस बच्चे को जानते तक नहीं थे। बाद में पुलिस की शिनाख्त में पता चला कि वह झारखंड का था। वहां उसके परिजन को मुआवजा दिलाया।

चुनौतियां: मिलीं धमकियां, मुकदमा भी हुआ
प्रकृति को बचाकर विकास की योजना लेकर निकले बीके सिंह की राह में बहुत रोड़े आए। पार्कों पर पीआईएल दाखिल करने पर ठेकेदारों ने उन्हें जानमाल के हानि की कई बार धमकियां दीं। लकिन, वह इससे विचलित नहीं हुए और कर्तव्य पथ पर बढ़ते रहे। पार्कों पर अवैध कब्जे का आरोप लगाकर उन पर एफआइआर भी दर्ज कराई।

पुलिस क्षेत्राधिकारी की जांच में आरोप निराधार पाए गए तो उनका हौसला बढ़ा। उनकी पैरवी पर 90 पार्कों को विकसित करने का आदेश हुआ। इसी क्रम में ट्रैफिक सिस्टम और फायर सेफ्टी को लेकर पीआइएल दाखिल की। हाईकोर्ट के आदेश पर यातायात व्यवस्था सुधारने के प्रयास हुए। वहीं, सरकार ने सिविल कोर्ट के लिए छह और उच्च न्यायालय के लिए चार करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत किया। इस रकम से अग्निशमन के संसाधनों को बेहतर किया गया।

ये हो तो बने बात

- राजधानी का प्रदूषण स्तर बढ़ता जा रहा है। इसके लिए सरकारी स्तर पर कठोर कदम उठाए जाने चाहिए।

- पॉलीथिन पर रोक तो लगाई गई, लेकिन प्रतिबंध का पालन नहीं हो पा रहा है। इस पर सख्ती हो। 

- पार्कों के जीर्णोद्धार की पहल हुई, लेकिन आज भी तमाम पार्क उपेक्षा के शिकार हैं। इन्हें विकसित किया जाए।

- सड़कों के निर्माण में तेजी लायी जाए। पेड़ पौधों की कटान रोकने के और प्रयास किए जाएं।

- शहर में अभी भी चोरी-छिपे ग्रीन बेल्ट पर भूखंड बेचे जा रहे हैं, इसकी सख्ती से रोकथाम किया जाए।

- अतिक्रमण की समस्या नासूर की तरह है। इसके लिए प्रशासन निरंतर अभियान चलाए।

- शहर में अधिकांश भवनों-होटलों में आग से बचाव के इंतजाम नहीं हैं। फायर सेफ्टी के संसाधन बढ़ाए जाएं।


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