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सौ साल में बसा ये शहर: माय सिटी माय प्राइड: शहरों के उत्थान-पतन से जुड़े अर्थव्यवस्था के पांच नियम!

शहर की अर्थव्यवस्थाओं पर शोध के आश्चर्यजनक निष्कर्षों में से एक यह है कि बड़े शहर बढ़ते जाते हैं और केवल दुर्लभ मामलों में ही वह अन्य शहरों से पिछड़ते हैं।

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Fri, 06 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Fri, 06 Jul 2018 01:29 PM (IST)
सौ साल में बसा ये शहर: माय सिटी माय प्राइड: शहरों के उत्थान-पतन से जुड़े अर्थव्यवस्था के पांच नियम!

नई दिल्ली (राजेश उपाध्याय)। इंदौर, पटना, सूरत, पुणे और जयपुर जैसे छोटे महानगरों की आर्थिक विकास दर वर्ष 2001 से 2011 के बीच 40 प्रतिशत से अधिक रही। मुंबई-कोलकाता जैसे महानगर इस विकास दर से काफी पीछे रहे। हालांकि ये शहर तब भी बड़े रहेंगे, लेकिन सवाल है, कुछ शहर बहुत तेज़ी से विकसित क्यों होते हैं या कोई शहर पिछड़ क्यों जाता है? कौन-सी परिस्थितियां है जो शहरों के उत्थान और पतन की कहानियां लिखती हैं।

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शहरी अर्थव्यवस्था से जुड़े इन सवालों का कोई सामान्य उत्तर नहीं है, लेकिन पिछले पचास से अधिक वर्षों में हुए विभिन्न अनुसंधानों से हमें शहरों की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले पांच प्रमुख कारणों का पता चलता है। इनमें शहर की भौगोलिक स्थिति, तीव्र और सुगम परिवहन, पानी-बिजली और सुरक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं के अलावा कुशल कर्मचारियों की उपलब्धता भी एक अनिवार्य शर्त है।

भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। पिछले वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही में यानी जनवरी से मार्च 2018 में देश की आर्थिक विकास दर 7.7 फीसदी रही। पूरा विश्व उसे आशा भरी निगाहों से देख रहा है। नीति आयोग की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आश्वस्त थे कि भारत दहाई अंक की विकास दर हासिल करने की ओर बढ़ रहा है। विकास दर वह मानक है, जिसमें हर व्यक्ति के विकास की राह छिपी है। भारत अगर दस फीसदी की विकास दर हासिल करता है। तभी गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से मुक्ति संभव है।

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केंद्र सरकार का महत्वाकांक्षी लक्ष्य भारत को पांच हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने पर है। दुनिया इस इंतजार में हैं कि भारत कब पांच हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था की श्रेणी में आता है। लेकिन यह आसान लक्ष्य नहीं है। इसके लिए हर व्यक्ति को अधिकतम योगदान देना होगा। सरकार को भी सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार देने वाले और अधिकतम लोगों की निर्भरता वाले सेक्टर पर ध्यान देना होगा। कृषि और सेवा क्षेत्र पर खास ध्यान देना होगा। गौरतलब है कि भारत में सबसे तेजी से बढ़ता सेक्टर सेवा क्षेत्र है इसके बावजूद सबसे अधिक लोग आज भी कृषि पर निर्भर हैं।

शहर की अर्थव्यवस्थाओं पर शोध के आश्चर्यजनक निष्कर्षों में से एक यह है कि बड़े शहर बढ़ते जाते हैं और केवल दुर्लभ मामलों में ही वह अन्य शहरों से पिछड़ते हैं। इसकी वजह यह है कि कोई भी बड़ा शहर अपनी भौगोलिक स्थिति और बुनियादी ढांचे के साथ बड़े संस्थानों और प्रतिभावान कर्मियों को लगातार आकर्षित करता है। मुंबई इसका उदाहरण है।

शहरी अर्थशास्त्र की दूसरी बात शहरों का विकास नाटकीय परिवर्तन के रूप में दिखता है, इसका कारण हमेशा इन्फ्रास्ट्रक्टर में बड़े परिवर्तन के रूप में होता है। अमेरिका में एरी नहर के निर्माण ने न्यूयॉर्क शहर को सबसे बड़ा बना दिया। गुरुग्राम-नोएडा को दिल्ली की छाँव में अंतरराष्ट्रीय सुविधाओं में पलने-बढ़ने का मौका मिला।

शहरी अर्थव्यवस्था का तीसरा नियम है - दुनिया भर के लिए सुलभ और तीव्र परिवहन सुविधा से जुड़े शहरों में उच्च वृद्धि दिखाई देती है। इसके साथ ही स्थानीय स्तर पर पानी, बिजली, सुरक्षा और आवासीय सुविधाएँ महत्वपूर्ण है। यूरोपीय और उत्तरी अमेरिकी शहरों के अध्ययनों ने बार-बार दिखाया है कि बेहतर पहुँच सुविधा और विकास के बीच सीधा संबंध है।

मेक्सिको का औद्योगिक महानगर मोंटेरी हो या चीन में शंघाई और गुआंगज़ौ/हांगकांग क्षेत्र, इन्हीं सुविधाओं की बदौलत ये शहर विश्व बाजार के संपर्क केंद्र बन गए हैं। हमारे शहर गुरुग्राम और नोएडा के बारे भी यही नियम लागू होता है। यह नियम हमें सिखाता है कि शहरों को नए परिवहन लिंक के अवसरों पर चौकस होना चाहिए। यह हमें चेतावनी भी देता है कि पहुंच में कमी से विकास को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकता है।

शहरी अर्थशास्त्र का चौथा नियम यह है कि हर उद्योग एक शहर पर अपनी छाप छोड़ देता है और यह हमेशा अच्छा नहीं होता है। भारी उद्योग और बड़ी असेंबली संयंत्रों की विरासत वाले शहर आम तौर पर धीमी वृद्धि दर्शाते हैं। अमेरिका में स्पष्ट उदाहरण डेट्रॉइट है। बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में वह सबसे तेज विकसित होता शहर था, लेकिन अब गिरावट के दलदल में फंस गया है। भारत के अनेक शहर इसके उदाहरण बन सकते हैं।

शहरी अर्थशास्त्र का पांचवां नियम हम सब जानते हैं। स्थानीय व्यापार, राजनीतिक और सामाजिक संस्कृति निश्चित रूप से शहर के विकास में एक भूमिका निभाती है। अच्छी शहरी नीति तैयार करना स्थानीय सरकार तक ही सीमित नहीं है, इसकी कड़ी सरकार के उच्च स्तर तक जुड़ती है।

शहरी अर्थव्यवस्था के इन पांच नियमों में एक आम शहरी बहुत कुछ योगदान कर सकता है। वह विकास की राह में आड़े आने वाले समस्याओं की पहचान कर सकता है और स्थानीय प्रशासन, राजनीतिक-आर्थिक नेतृत्व को जगा सकता है। भौगोलिक स्थिति या भारी इन्फ्रास्ट्रक्टर में बदलाव नहीं लाया जा सकता, लेकिन उपलब्ध अन्य अवसरों को भुनाने के लिए स्थानीय नेतृत्व और आमलोगों को एकजुट होना होगा। आम लोगों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है।

माय सिटी माय प्राइड के दस में से इन चार शहरों (रायपुर, देहरादून, रांची और लखनऊ) को प्रदेश की राजधानी होने का फायदा मिलता है। चाहे वो निवेश का मामला हो या फिर औद्योगिक ढांचे का। वहीं कानपुर और लुधियाना को पहले से ही जमे जमाए शहर होने का लाभ मिलता है। इन शहरों के पास बेहतर कनेक्टिविटी भी है जिससे इनका व्यापार कुंलांचे भरता है। बनारस को धार्मिक शहर होने का लाभ मिलता है। इस कारण यहां पूरे विश्व से लोग पर्यटन के लिए आते हैं। राजधानी दिल्ली के करीब होने का फायदा मेरठ को खूब मिला है। इसी के बूते शहर ने स्पोर्ट्स सिटी के रूप में पहचान बनाई है।

यहाँ आपके सामने शहरी अर्थव्यवस्था से जुड़े कुछ स्थानीय प्रश्न हैं, जिनके आधार पर आपको तय करना है कि आपका शहर इन मानकों पर कहाँ ठहरता है?

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1. आप अपने शहर में रोजगार की संभावना को कैसा मानते हैं?
2. क्या आपके शहर में कुशल कर्मचारी पर्याप्त मात्रा में हैं?
3. आपके शहर में कोई उद्यम शुरू करना कितना आसान है?
4. आपका शहर कारोबार के कितना अनुकूल है खास कर संपर्क, बिजली आपूर्ति, आर्थिक विकास के लिए जमीन आदि के मामले में?
5. रिहाइश, परिवहन और खाने-पीने के मामले मे आपका शहर कितना सस्ता या महंगा है?
6. आप अपने शहर की कार्य संस्कृति को कैसा मानते हैं?


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