बिना कर्ज में डूबे बाबुल ने बेटी के हाथ किए पीले, दुल्हेराजा जीवन संगिनी पाकर खुश
लखनऊ में लाॅकडाउन का पालन कोरोना संकट ने सिखा दी शादी में सादगी बिना दहेज के हुई शादी।
लखनऊ [राजेश रावत]। भले ही कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने दुनियाभर में त्रहि मचा रखी है। लेकिन उसने मानव को जीवन की वास्तविक परिभाषा याद दिला दी है। इसे कुदरत का इंसाफ ही कहेंगे। जिसने आडंबर में फंसे शादी की रस्मों को मुक्त कर दिया है। दिखावे के ताम-झाम में होने वाले फिजूल खर्च पर लगाम लगी है, तो वहीं बेटियों के हाथ पीले करना बाबुल के लिए आसान हो गया है। लॉकडाउन के कारण वर-वधू दोनों पक्ष के लोग अब रस्मों की डोर से बंध रहे हैं। न सिर्फ सादगी से शादियां हो रही हैं बल्कि रिश्तों में मिठास बढ़ रही है।
लॉकडाउन ने कम किया बाबुल का दर्द
आधुनिकता की चकाचैंध में लाडले की शादी में डेकोरेशन, डीजे, लाइटिंग, गाड़ियों के काफिले समेत अन्य दिखावे के पीछे पानी की तरह पैसा बहाना लोग अपनी शान समझते हैं। यही नहीं बरातियों के भीड़ की खातिरदारी व विदाई के समय भेंट में कोई कसर न रहे इसका दबाव भी बेटी के पिता पर रहता है। लॉकडाउन में बंदिशों के बीच हो रही शादियों ने रस्मों का महत्व बढ़ा दिया है। अब दूल्हेराजा बिना बैंडबाजा व धूमधड़ाका के सादगी से दुल्हन लेकर आ रहे हैं। दो से तीन वाहनों में अधिकतम दस बरातियों के शामिल होने की अनुमति है।
दूल्हेराजा संग आए पांच बराती और हो गई शादी
सोमवार को आलमबाग के तालकटोरा रोड काटन मिल चैराहा अशोक कुमार शुक्ला की बेटी का विवाह सादगी के साथ हो गया। जिसमें दूल्हेराजा अशोक त्रिवेदी, पिता राजकुमार त्रिवेदी, भाई बबलू, बहनोई नीरज व अरूण और चचेरे भाई दुर्गेश ही शामिल हुए। बिना बैंडबाजा के एक वाहन से आए पांच बरातियों ने लॉकडाउन व शारीरिक दूरी के नियमों का पालन कर सभी रस्में अदा कीं। अशोक ने बताया कि उसे दान दहेज का लोभ नहीं है। वह अपनी जीवनसंगिनी को पाकर खुश है।