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मन करता फिर एक बार अधरों पर गीत लिखूं

लखनऊ। लखनऊ महोत्सव-2013 का मंच लोक जीवन में रचे-बसे गीतों की आवाज बन गया का मंच। कवि सम्मेलन

By Edited By: Published: Tue, 26 Nov 2013 03:07 PM (IST)Updated: Wed, 27 Nov 2013 02:27 AM (IST)
मन करता फिर एक बार अधरों पर गीत लिखूं

लखनऊ। लखनऊ महोत्सव-2013 का मंच लोक जीवन में रचे-बसे गीतों की आवाज बन गया। कवि सम्मेलन के साथ ही लोकगीतों ने लोगों को सम्मोहित कर दिया।

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क्या हास्य-व्यंग्य और क्या श्रगार, सभी रसों के सिद्धहस्त कवि प्रेम के विभिन्न रूपों में उलझ गए। कवि कुंवर जावेद केगीत में उलझन थी-मैं तेरा कौन सा रक्खूं नाम, तो एके जड़िया की टीस-कोरा अधर मिले कोई तो गीत लिखूं। कवि मुकुल महान ने इसे कन्फ्यूजन और कंडीशनल गीत बताते हुए अपनी अनकन्डीशनल कविता सुनाई तो कवियों की जुटान में हास्य संग तरुणाई छा गई।

अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में यूं तो चंद्रसेन विराट, रामेंद्र तिवारी, शिव ओम अंबर सहित एके जड़िया जैसे पहली पीढ़ी के कवि थे तो दूसरी पीढ़ी के वरिष्ठ कवि आसकरन अटल, कुंवर जावेद, मनवीर मधुर, अनिल चौबे भी। स्थानीय कवियों में मुकुल महान, रमेश रंजन, रामकिशोर तिवारी आए तो विनय वाजपेयी नहीं आए। सर्वेश अस्थाना व पंकज प्रसून दर्शक दीर्घा से कवि सम्मेलन का आनंद ले रहे थे। कविता तिवारी देर से आईं पर मंच संचालक ने उन्हें सबसे पहले माइक थमाकर सम्मान से नवाजा। डॉ कीर्ति काले की वाणी वंदना के बाद उन्होंने एक बार फिर स्वरदाता को याद किया और फिर-जब तक सूरज चंदा चमके तब तक हिंदुस्तान रहे-कविता सुनाकर ओज के साथ देशभक्ति का संचार किया। संचालक शिव ओम अंबर ने पहले ही वादा किया था कि वे वरिष्ठता क्रम के बजाए रसक्रम में कवियों को आमंत्रित करेंगे। इसे निभाते हुए उन्होंने कुंवर जावेद को बुलाया तो कुंवर ने मजहबी एकता से सराबोर मुक्तक - कोई हिंदुत्व के इस्लाम न पूछा जाए और सियासत पर व्यंग्य-मजाक इससे ज्यादा और क्या होगा, दोरंगे लोग तिरंगे की बात करते हैं-से सीधा श्रगार पर आ गए। उनका गीत-मैं तेरा कौन सा रक्खू नाम/ सुबह बनारस रखूं या रखूं अवध की शाम.नाम तेरा राधा रख दूं तो मैं घनश्याम नहीं हूं/ नाम तेरा रखूं गजल तो मैं मीर की शाम नहीं हूं/ नाम तेरा गुलबदन रखूं तो मैं गुलफाम नहीं हूं-सुनाकर भाव व रस प्रेमियों को मुग्ध कर दिया। छतरपुर से आए वरिष्ठ कवि एके जड़िया ने प्रेम गीत-मन करता फिर एक बार अधरों पर गीत लिखूं/पर जब कोई कोरा अधर मिले तब गीत लिखूं-सुनाकर प्रेम की आतरिक भावना व सौंदर्य के आधुनिक स्वरूप पर विवशता व्यक्त की। साथ ही अलंकारपूरित छंद-नैन नए अरु बैन नए अचरा अचिरा रुचिरा भई राधा-सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। अवचेतन तक पहुंचने वाली इन भावपूर्ण रचनाओं के बाद जब कवि मुकुल महान ने माइक संभाला तो श्रोताओं को इन शब्दों में चेतना में लाये-पहले के दोनों कवियों की रचनाएं कंफ्यूजन व कंडीशन की रचनाएं हैं, अब हम अनकंडीशनल कविता सुना रहे हैं। मुहब्बत में हम अधमरे हो गए, चिकित्सा की हद से परे हो गए-जैसी कुछ क्षणिकाएं सुनाने के बाद उन्होंने आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था पर चोट करती व्यंग्य रचना-हम एक सरकारी अस्पताल में एडमिट हो गए, जनरल वार्ड के बेड नं चार में फिट हो गए.सुनाई। कवि सम्मेलन का यह दौर देर रात तक चलता रहा और देश के विभिन्न स्थानों से आए करीब दो दर्जन कवियों ने रचनाएं पेश कीं। इस मौके पर मुख्य अतिथि विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद और उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष उदय प्रताप सिंह भी मौजूद रहे।

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