Independence Day Special: 'माझा प्रवास' क्रांतिकारियों के साथ खड़ा था भिक्षु ब्राह्मण Lucknow News
उत्तर की यात्रा करने निकला ब्राह्मण पहुंचा लखनऊ।अपनी मराठी पुस्तक माझा प्रवास में किया गदर का उल्लेख।
लखनऊ, जेएनएन। करीब 150 वर्ष पहले एक मराठा ब्राह्मण की उत्तर की यात्रा करने निकला था, लेकिन शास्त्र संपन्न भिक्षु ब्राह्मण यह नहीं जान सका कि नियति उसे सैकड़ों किलोमीटर दूर गदर का गवाह बनाने ले जा रही है। पुणे से ग्वालियर के लिए चला, यह बाह्मण इंदौर होते हुए महु पहुंचा ही था कि विद्रोह की आग भड़क उठी। अब तक अपने अनुसार स्थितियां चुन रहा यह ब्राह्मण अचानक परिस्थितियों के हवाले हो गया। तीव्र स्मरण शक्ति का धनी यह ब्राह्मण लखनऊ, कानुपर व झांसी के गदर का गवाह बना। बाद में उस ब्राह्मण ने इसका उल्लेख अपनी मराठी पुस्तक 'माझा प्रवास' में किया।
पुणे निवासी ब्राह्मण विष्णु भट्ट गोडशे वरसईकर जब ग्वालियर के लिए रवाना हुए तो लक्ष्य सिर्फ यही था कि वहां की महारानी के यज्ञ में शामिल होने से धन मिलेगा। जिसमें लौट कर कर्ज अदा किए जा सकेंगे। गोडशे अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि कहीं यह गुमान तक न था कि यह लंबी यात्रा उन्हें गदर के नायकों के बीच ले जाकर खड़ा कर देगी। यात्रा की दिशा तब बदली जब महू छावनी में विद्रोह भड़कते ही क्रांतिकारियों ने उन्हें अपने साथ ले लिया। यज्ञ करने जा रहे गोडशे को मजबूरी में कई दिन मारकाट करने वाले दल के साथ रहना पड़ा। बाद में किसी तरह विद्रोहियों से पीछा छुड़ाकर वह ग्वालियर पहुंचे, लेकिन तबतक गदर की वजह से यज्ञ का कार्यक्रम स्थगित हो गया था।
मरता क्या न करता की स्थिति में फंसे गोडशे ने अंतत: खुद को समय की बहती धारा के हवाले कर दिया। वहां ग्वालियर से निकले, तो झांसी की रानी के पास पहुंच गए। यहां वह गदर के केंद्र में थे, क्रांतिकारियों ने झांसी के साथ कानपुर व लखनऊ को भी संपर्क सूत्र में पिरो दिया था। पुस्तक में लिखा है कि लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह की मौत के बाद बेगम हजरत महल ने अपने पुत्र शहजादा बिरजिस कद्र को गद्दी पर बिठा कर स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई। वहीं, कानुपर में तीन भाई नाना साहब, बाला साहब व राय साहब ने तात्या टोपे के साथ मिलकर अंग्रेजों को खदेडऩे कर उनकी परिवार को बंदी बना लिया था। मराठा भिक्षु ब्राह्मण अपने मूल्य लक्ष्य में तो निराशा हाथ लगी, लेकिन उन्होंने अपनी इस यात्रा को व्यर्थ नहीं जाने दिया। उन्होंने अपने संस्मरणों को पुस्तक का रुप दिया।