Move to Jagran APP

Maharaja Suheldev: राजभर समाज के मान- सम्मान के प्रतीक महाराजा सुहेलदेव

Maharaja Suheldev सुहेलदेव किस जाति के थे इसकी प्रमाणिक व पुष्ट जानकारी इतिहासकारों के पास नहीं है। सयासी लोग राजा सुहेलदेव को अपनी अपनी जाति के हिसाब प्रयोग करते हैं। कुछ लोग उन्हें राजभर तो कुछ लोग उन्हेंं पासी बताते हैं।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Tue, 16 Feb 2021 04:33 PM (IST)Updated: Tue, 16 Feb 2021 04:38 PM (IST)
Maharaja Suheldev: राजभर समाज के मान- सम्मान के प्रतीक महाराजा सुहेलदेव
राजभर और पासी जाति के लोग उन्हें अपना वंशज मानते हैं।

बहराइच, जेएनएन। महाराजा सुहेलदेव के महमूद गजनवी के भांजे और सैय्यद सालार मसऊद गाजी पर ऐतिहासिक विजय की कहानी भले ही हजार साल पुरानी हो, लेकिन वसंत पंचमी पर एक बार फिर जीवंत हो उठी। राजा सुहेलदेव को राजभर समाज मान- सम्मान का प्रतीक मानती है।

loksabha election banner

महाराजा सुहेलदेव 11वीं सदी में श्रावस्ती के सम्राट थे। सुहेलदेव ने महमूद गजनवी के भांजे सालार मसूद को मारा थ। राजभर और पासी जाति के लोग उन्हें अपना वंशज मानते हैं। 15 जून 1033 को श्रावस्ती के राजा सुहेलदेव और सैयद सालार मसूद के बीच बहराइच के चित्तौरा झील के तट पर युद्ध हुआ था। लड़ाई में सुहेलदेव की सेना ने सालार मसूद की सेना को पूरी तरह नष्ट कर दिया था। इसके बाद राजा सुहेलदेव की तलवार के एक ही वार ने मसूद का काम भी तमाम कर दिया। इस युद्ध की भयंकरता का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि इसमें मसूद की पूरी सेना का सफाया हो गया।

सुहेलदेव किस जाति के थे, इसकी प्रमाणिक व पुष्ट जानकारी इतिहासकारों के पास नहीं है। सयासी लोग राजा सुहेलदेव को अपनी अपनी जाति के हिसाब प्रयोग करते हैं। कुछ लोग उन्हें राजभर तो कुछ लोग उन्हेंं पासी बताते हैं। राजा सुहेलदेव करीब हजार वर्ष पूर्व के ऐसे महानायक हैं जिनका इतिहास खोजना काफी मुश्किल है। उत्तर प्रदेश में अवध व तराई क्षेत्र से लेकर पूर्वांचल तक मिथकों-किंवदंतियों में उनकी वीरता के कई किस्से हैं। उनकी जाति को लेकर एकमत नहीं है, कोई उन्हें राजभर तो कोई पासी जाति का बताता है। पासी व राजभर समुदाय की बड़ी विरासत को संभालने वाले सुहेलदेव अपनी शक्ति और संगठन के बल वह राज स्थापित करने में कामयाब हो जाते थे। उनका राज्य भी कोई बहुत विशाल इलाके में नहीं था। 1246 से 1266 तक नसीरुद्दीन महमूद दिल्ली सल्तनत का सुल्तान था। उसी ने यहां पर मजार बनवाई थी। इसके बाद दिल्ली के सुल्तान यहां आने लगे। बंगाल का सुल्तान यहां बिना इजाजत के आया। इस पर दिल्ली के सुल्तान फिरोजशाह तुगलक ने ऐतराज जताया। हालांकि बाद में फिरोज शाह तुगलक भी वहां गया। कहते हैं कि यहां से लौटने के बाद वह कट्टर हो गया था।

यह भी पढ़ें : UP के बहराइच में PM मोदी ने कहा- कृषि कानूनों को लेकर भ्रम फैलाने की कोशिश, कुछ लोग नहीं चाहते किसानों की आमदनी बढ़े

21 पासी राजाओं की बहराइच की लड़ाई में जीत: रिसर्च पेपर के मुताबिक बहराइच की लड़ाई में सुहेलदेव ने 21 पासी राजाओं का गठबंधन बनाकर सैयद सालार मसूद गाजी को युद्ध में शिकस्त दी। इन राजाओं में बहराइच, श्रावस्ती के साथ ही लखीमपुर, सीतापुर, लखनऊ व बाराबंकी के राजा भी शामिल थे। हिंदू संगठनों के दावे के मुताबिक 1033 ईसवी में मसूद गाजी और सुहेलदेव की सेनाओं में भीषण जंग हुई। इस युद्ध में मसूद मरणासन्न अवस्था में पहुंच गया और बाद में उसकी मौत हो गई। उसके साथियों ने बहराइच में मसूद की बताई जगह पर ही उसे दफना दिया। बाद में वहां मजार बनी और दिल्ली के सुल्तानों के दौर में दरगाह के रूप में मशहूर होती चली गई।

गजनी की बर्बर सेना टूट पड़े बलिदानी, सुनिए वीर सुहेलदेव की गौरव भरी कहानी: यही वह गीत है जिसे आज महाराज सुहेलदेव की जयंती पर लोगों ने खूब पसंद किया। इस गीत के जरिए महाराज सुहेलदेव के शौर्य एवं पराक्रम शब्द को गीतकर वीरेंद्र वत्स ने दिया है।

महाराजा सुहेलदेव पर लिखे गीत के पूरे बोल

महाराजा सुहेलदेव पर लिखा गया पूरा गीत इस प्रकार है।

श्रावस्ती की भूमि पर जन्मे दिव्य नरेश, भारत के रक्षक बने.बदल दिया परिवेश।

गजनी की बर्बर सेना टूट पड़े बलिदानी, सुनिए वीर सुहेलदेव की गौरव भरी कहानी

गजनी से बहराइच तक आ पहुंचे क्रूर लूटेरे, उनके लिए सुहलेदेव ने रचे मौत के घेरे।

सभी दरिंदे फंसे व्यूह में मांगे मिला न पानी, सुनिए वीर सुहेलदेव की गौरव भरी कहानी।

बढ़े कदम वीरों के धरती डगमग डोल रही थी, हैवानों का नाम मिटा दो जनता बोल रही थी।

कटे शीश तो लाल हो गई पुण्य धरा यह धानी, सुनिए वीर सुहेलदेव की गौरव भरी कहानी। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.