मस्तिष्क तक वार करता है लंग कैंसर, पुरुषों के साथ महिलाओं में भी बढ़ रहा प्रकोप
केजीएमयू में आयोजित व्याख्यान हुआ। देर से पता चल रही बीमारी मरीजों की जिंदगी पर पड़ रही भारी।
लखनऊ, जेएनएन। लंग कैंसर (फेफड़ा) का प्रकोप दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। फेफड़े में कैंसर सेल्स रक्त के जरिये मस्तिष्क तक पहुंच जाते हैं। वहीं यह कैंसर मरीजों में देर से पता चलता है। ऐसे में मरीज के लिए जानलेवा बन जाता है।
केजीएमयू में शनिवार को नॉन स्मॉल सेल लंग कैंसर पर व्याख्यान हुआ। इस दौरान संस्थान के कैंसर सर्जन डॉ. शिव राजन ने कहा कि लंग कैंसर दो प्रकार का होता है। इसमें एक नॉन स्मॉल सेल है। दूसरा स्मॉल सेल है। वहीं फेफड़े के कैंसर के कुल मामलों में 70 से 80 फीसद मामले नॉन स्मॉल सेल के होते हैं। शेष स्मॉल सेल कैंसर होता है। यह सबसे घातक होता है। यह मरीज में देरी से पता चलता है। यह रक्त के जरिये व्यक्ति के मस्तिष्क तक पहुंच जाता है। इससे व्यक्ति लकवा का भी शिकार हो जाता है। साथ ही लिवर और बोन को भी चपेट में ले लेता है।
80 फीसद मरीज थर्ड स्टेज में पहुंचते हैं अस्पताल
लोहिया संस्थान के सर्जिकल आंकोलॉजी के हेड डॉ. आशीष सिंघल ने कहा कि लंग कैंसर के सिर्फ २० फीसद मरीज ही फस्र्ट व सेकेंड स्टेज में इलाज के लिए अस्पताल पहुंचते हैं। वहीं देर से बीमारी पता चलने पर 80 फीसद मरीज थर्ड व फोर्थ स्टेज में डॉक्टर के पास पहुंचते हैं। लिहाजा, मरीजों को बचा पाना मुश्किल हो जाता है।
टीबी का इलाज कराकर आते हैं मरीज
डॉ. आशीष ने बताया कि सबसे अधिक जानलेवा कैंसर का सही डायग्नोस नहीं हो पाना है। छोटे शहरों में डॉक्टर एक्स-रे में धब्बा और लक्षण देखकर टीबी का इलाज शुरू कर देते हैं। यही कारण है टीबी का इलाज करा रहे तमाम मरीजों में लंग कैंसर की पुष्टि हो रही है। ऐसे में मरीजों में समय गत बीमारी का पहचानना बहुत जरूरी है।
फायदा न हो तो कराएं सीटी स्कैन
सांस फूलना, खांसी के साथ खून आना, वजन कम होने पर लोगों को टीबी की आशंका होती है। ऐसे में व्यक्ति का एक्स-रे व बलगम की जांच कराई जाती है। वहीं यदि बलगम में की जांच निगेटिव है और दो सप्ताह दवा लेने पर भी फायदा नहीं हो रहा है तो मरीज को सीटी स्कैन कराना चाहिए।
स्मोकिंग-प्रदूषण सबसे बड़ा कारण
लंग कैंसर पुरुषों के साथ महिलाओं में भी हो रहा है। इसका सबसे प्रमुख कारण स्मोकिंग के साथ प्रदूषण का बढ़ता प्रकोप है।
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