लखनऊ के आशीष के सवालों पर बीसीसीआई प्रमुख गंभीर
राजधानी लखनऊ के डीएवी कॉलेज के विधि संकाय के प्रमुख आशीष शुक्ला के सवालों पर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) बैकफुट पर है। उनके सवालों के जवाब देने के साथ ही बोर्ड के बॉस शशांक मनोहर अब कार्रवाई करेंगे।
लखनऊ। राजधानी लखनऊ के डीएवी कॉलेज के विधि संकाय के प्रमुख आशीष शुक्ला के सवालों पर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) बैकफुट पर है। उनके सवालों के जवाब देने के साथ ही बोर्ड के बॉस शशांक मनोहर अब कार्रवाई करेंगे।
आशीष ने बीसीसीआइ के लोकपाल जस्टिस एपी शाह से एक याचिका में तीन सवाल किए थे। शाह ने इन्हें स्वीकार किया और अधिकार क्षेत्र का हवाला देकर मामले को शशांक मनोहर को सौंप दिया है। शाह ने उम्मीद जताई है बोर्ड प्रमुख उचित कार्रवाई करेंगे।
आशीष ने खुद को क्रिकेट का बड़ा फैन बताते हुए लोकपाल से पूछा कि बीसीसीआइ अंपायरिंग के इलेक्ट्रानिक रिव्यू डीआरएस के खिलाफ है जबकि इससे फैसलों में मदद मिलती है। तमाम देशों ने इसके फायदे देखते हुए इसे स्वीकृत किया है तो फिर भारत ने क्यों नहीं किया। क्या यह सही नहीं है कि कई पूर्व क्रिकेटरों को बीसीसीआइ डीआरएस के खिलाफ बोलने के लिए धन भी देता है। क्या यह किसी प्रकार से हितों का टकराव नहीं है, क्यों पूर्व क्रिकेटर मीडिया में इसके खिलाफ बयान देते हैं।
आशीष ने अपने दूसरे सवाल में पूछा कि वल्र्ड एंटी डोपिंग एजेंसी (वाडा) के तहत भारतीय खिलाड़ी क्यों नहीं आते हैं। इसके पीछे क्या कारण और उनके पीछे क्या तर्क हैं। तीसरे सवाल में आशीष ने पूछा कि बोर्ड भारतीय क्रिकेट टीम के लिए पूर्णकालिक पेशेवर कोच को नियुक्त नहीं करता है जबकि इतने पेशेवर समय में बहुत पैसा क्रिकेट पर लगा है। साथ ही बेहद कठिन प्रतिस्पर्धा है। टीम का हारना किसी को रास नहीं आता है। राष्ट्रीय टीम के कोच की नियुक्ति का क्या प्रोटोकॉल है। अगर नहीं है तो आखिरी फैसला कौन करता है।
लोकपाल जस्टिस एपी शाह ने आशीष शुक्ला के सवालों को वाजिब माना। लोकपाल ने आशीष को भेजे जवाबी पत्र में कहा कि आपके सवाल जनहित में हैं और क्रिकेट को चला रहे लोगों के सामने गंभीर सवाल उठा रहे हैं, लेकिन ये लोकपाल के दायरे से बाहर हैं। जस्टिस एपी शाह ने याचिका को खारिज कर दिया लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए बीसीसीआइ के बॉस शशांक मनोहर को बढ़ा दिया है। यह अहम है कि मनोहर ने ही बोर्ड में सफाई अभियान के तहत लोकपाल की नियुक्ति का प्रस्ताव एजीएम से पास करवा लिया था जबकि तमाम ताकतवर पदाधिकारी इसके खिलाफ थे।