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Foundation Day of Lucknow Zoo: सौ साल में बनारसी आम के बाग से विलायती इमली तक का सफर

चिडिय़ाघर का नाम पहले बनारसी बाग था। दरअसल यहां गोमती नदी से लेकर आसपास के इलाकों में बनारसी आम के बाग थे और हर तरफ हरियाली थी। यहां एक बहेलिया रहता था और चिडिय़ा का शिकार करता था जिससे इसे चिडिय़ाघर के नाम से जाना जाता था।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Mon, 29 Nov 2021 09:24 AM (IST)Updated: Mon, 29 Nov 2021 09:24 AM (IST)
Foundation Day of Lucknow Zoo: सौ साल में बनारसी आम के बाग से विलायती इमली तक का सफर
च‍िड़ि‍याघर में सवा सौ से अधिक प्रजातियों के दो हजार से अध‍िक पेड़ पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हैं।

लखनऊ, [अजय श्रीवास्तव]। चिडिय़ाघर सिर्फ मनोरंजन का ही केंद्र नहीं है, बल्कि करीब एक हजार से अधिक वन्यजीव को हम पास से भी देख लेते हैं लेकिन उससे अधिक खास बात यह है कि बढ़ते वायु प्रदूषण को रोकने में चिडिय़ाघर आक्सीजन का भी हब है। सवा सौ से अधिक प्रजातियों की वनस्पतियों वाले दो हजार से अध‍िक पेड़ यहां पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हैं। यही कारण है कि चिडिय़ाघर के आसपास नरही, राजभवन, पार्क और आसपास के इलाकों से कुछ अलग तापमान यहां का रहता है और गर्मी में भी तरावट बनी रहती हैं। सौ वर्ष के सफर में चिडिय़ाघर की हरियाली बढ़ती ही गई है। सौ वर्ष से अधिक उम्र के कई पेड़ उत्तर प्रदेश सरकार की विरासत के वृक्ष वाली काफी टेबल बुक में भी शामिल हो चुके हैं।

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वैसे चिडिय़ाघर का नाम पहले बनारसी बाग था। दरअसल यहां गोमती नदी से लेकर आसपास के इलाकों में बनारसी आम के बाग थे और हर तरफ हरियाली थी। 29 हेक्टेयर क्षेत्रफल वाले बनारसी बाग तक नाम तब बदला, जब 29 नवंबर 1921 को तत्कालीन गवर्नर उत्तर प्रदेश सर हरकोर्ट बटलर ने तत्कालीन प्रिंस आफ वेल्स के लखनऊ आगमन को यादगार बनाने के लिए बनारसी बाग का नाम प्रिंस आफ वेल्स जुलोजिकल गार्डेन रखा था। बताते हैं कि बनारसी बाग में एक बहेलिया रहता था और चिडिय़ा का शिकार करता था, जिससे इसे चिडिय़ाघर के नाम से जाना जाता था।

विलायती इमली भी खास है : वैसे तो यहां आम, इमली, अमरूद, पीपल, पाकड़, गुलर, शहतूत, अर्जुन समेत तमाम तरह के पेड़ हैं लेकिन विलायती इमली की अपनी पहचान है, जिसके पांच पेड़ हैं। ऊंचाई वाले इस पेड़ में खास तरह का फल होता है। मोटी परत होती हैं, जिससे हाथ के बजाय पटक कर यहां औजार से फोड़ सकते हैं, जिससे सफेद किस्म फल आपस में लिपटा होता है। फल में एक काला बीज होता है। यह फल खाने में खट्टा-मीठा होता है, इसलिए इसकी पहचान विलायती इमली के रूप में भी हुई। वैसे यह पारिजात वृक्ष है, इसे गोरख इमली, विलायती इमली, गाछ (बंगाली) कल्पवृक्ष भी कहते हैं। इसके पत्र, पुष्प, मूल, बीज और छाल सभी उपयोगी होते हैं। यह वृक्ष पित्त व गुर्दे रोग में लाभकारी होता है।


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