लविवि 100 साल : मैंने पहली साइकिल लखनऊ में खरीदी, वह नीले रंग की एटलस थी - अभिनेता अनुपम खेर
लविवि 100 साल समारोह लविवि के लिटरेरी फेस्ट के दौरान वर्चुअल इंटरफेस विद अनुपम खेर में यतींद्र मिश्र और अनुपम खेर की खट्टी-मीठी बातें। अनुपम खेर ने साझा किए अपने अनुभव और लखनऊ में गुजारे कुछ पल।
लखनऊ, जेएनएन। पहली साइकिल मैंने लखनऊ में खरीदी थी। वह नीले रंग की एटलस साइकिल थी। निराला नगर से वह हजरतगंज का रास्ता मुझे अब तक याद है। मैं कभी लखनऊ विश्वविद्यालय में नहीं पढ़ा हूं, मगर लविवि के 100 साल पूरे होने की खुशी, मैं अच्छी तरह से महसूस कर सकता हूं। ये एक खास मौका है। एलयू के लिटरेरी फेस्ट के दौरान ए वर्चुअल इंटरफेस विद अनुपम खेर का आयोजन जूम मीटिंग पर किया गया। जिसमें साहित्यकार यतींद्र मिश्र ने उनसे बातचीत की।
फिल्म सारांश के वीबी प्रधान का रोल मेरी खुशकिस्मती थी : अनुपम खेर
इस दौरान दिग्गज अभिनेता अनुपम खेर ने बताया कि मुझमें सीखने की लालसा बहुत थी। ऐसा कोई मौका नहीं था जब थकावट हो। मैं समय बचा लेता था। मैंने 24 घंटे का उपयोग किया। दिल्ली का मंडी हाउस गढ़ था। मेरे अंदर आश्चर्य का भाव था। दिल्ली का तीन साल बहुत अहम था। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा का शुक्रगुजार हूं। अल काज़ी साहब हमारे टीचर थे। हमारी बातें भी अलग थीं। मैंने कभी जिंदगी को रिस्क की दृष्टि से नहीं लिया। फिल्म सारांश से पहले मैं बहुत परेशान था। आर्थिक और भावनात्मक रूप से परेशान था। मैं ऋषि कपूर नहीं बनना चाहता था। वह मुझे बहुत पसंद थे। मैं बस केवल अभिनेता बनना चाहता था। जब मैं 28 साल का था, तब 65 साल के बुजुर्ग का रोल फिल्म सारांश में किया। अगर उसकी जगह मैंने कोई हीरो का रोल किया होता तो 500 से अधिक रोल नहीं किये होते। मैंने तब सोचा था ज्यादा से ज्यादा क्या होगा फेल हो ही जाएंगे। फिल्म सारांश के वीबी प्रधान का रोल तो मेरी खुशकिस्मती थी। मेरा मुकाम मैं खुद ही था। मुझे बलराज साहनी और सुनील दत्त अच्छे लगते थे। मैं दिलीप कुमार की तरह नहीं बनना चाहता था। मुझे पता था कि मुझे मेरा काम आता था।
मैंने पहली साइकिल लखनऊ में खरीदी : अनुपम खेर
अभिनेता अनुपम खेर बताते हैं कि मेरी दूसरी फिल्म जवानी थी। एक रोल शर्मिला टैगोर के विपरीत था और एक मौसमी चटर्जी के विपरीत था। मैंने शर्मिला टैगोर को चुना। मैं उस सिस्टम का हिस्सा हूं, जहां यात्रा से अहम मंजिल होती है। अभिनय करना है, उसके बारे ज्यादा सोचना नहीं था। मुझे निराला नगर याद है। लखनऊ में मैंने नीली एटलस साइकिल याद है।
वक्त बदल रहा है : अनुपम खेर
फिल्म सारांश के बाद एक सप्ताह में 57 फिल्म साइन की थी। महामारी से पहले मैंने छुट्टी नहीं ली थी। मैं वन विभाग के क्लर्क का लड़का था। मुझे काम मिला था, इतना बहुत था। फिल्म लम्हे को आज 29 साल हो गए रिलीज हुए। अभिनेता उत्पल दत्त, भारतीय फिल्मकार ऋषिकेश मुखर्जी की कॉमेडी अच्छी थी। मगर तब समय दूसरा था। अब माहौल बदल गया। तब कुछ बोलने से पहले बहुत सोचना पड़ता था। तब कॉमेडी और समय दोनों मासूम था। अब लोगों पर बोझ है। पहले डूबते सूरज को अपनी आंखों मे समाना चाहते थे, मगर अब हम उसको मोबाइल में समाना चाहते थे। वैसी फ़िल्में भी अब नहीं बनती, क्योंकि अब वैसे लोग भी नहीं बनते हैं।
महामारी में लोगों को नए मौके मिले
महामारी में लोगों को नए मौके मिले और मैंने भी एक किताब लिखी है। फिल्म उपकार मैंने 21 बार देखी थी। बता दें, इस ऑनलाइन बातचीत में लविवि के वीसी प्रो आलोक कुमार राय और प्रो निशि पांडेय भी शामिल रहीं।