Move to Jagran APP

एसजीपीजीआइ लखनऊ ने मेस्थेनिया ग्रेविस के मरीज को बचाया, वेंटिलेटर पर दी प्लाज्मा फेरेसिस

राजधानी के संजयगांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान ने मेस्थेनिया ग्रेविस नामक दुर्लभ बीमारी से ग्रस्त एक मरीज की जिंदगी बचाने में कामयाबी हासिल की है। डॉक्टरों ने आइसीयू में भर्ती मरीज की वेंटिलेटर पर ही शरीर के खिलाफ बन चुकी एंटीबॉडी को विशेष तकनीकि से निकाल दिया।

By Dharmendra MishraEdited By: Published: Mon, 29 Nov 2021 04:29 PM (IST)Updated: Tue, 30 Nov 2021 07:51 AM (IST)
एसजीपीजीआइ लखनऊ ने मेस्थेनिया ग्रेविस के मरीज को बचाया, वेंटिलेटर पर दी प्लाज्मा फेरेसिस
राजधानी के संजयगांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान ने मेस्थेनिया ग्रेविस नामक दुर्लभ बीमारी से ग्रस्त एक मरीज की जिंदगी बचाई।

लखनऊ, जागरण संवाददाता। राजधानी के संजयगांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान ने मेस्थेनिया ग्रेविस नामक दुर्लभ बीमारी से ग्रस्त एक मरीज की जिंदगी बचाने में कामयाबी हासिल की है। डॉक्टरों ने आइसीयू में भर्ती मरीज की वेंटिलेटर पर ही शरीर के खिलाफ बन चुकी एंटीबॉडी को विशेष तकनीकि से निकाल दिया।

loksabha election banner

इसके बाद मरीज की हालत सुधरने लगी। इससे पहले उसकी मांसपेशियां इतनी कमजोर हो गई थीं कि सांस तक लेना मुश्किल हो गया था। इसलिए मरीज को वेंटिलेटर पर रखा गया था। आइसीयू के विशेषज्ञों ने ब्लड ट्रांसफ्यूजन विभाग के विशेषज्ञों से संपर्क किया। इसके बाद तय किया गया प्लाज्मा फेरेसिस कर यदि बीमारी पैदा करने वाले दुश्मन( एंटीबॉडी) को शरीर से निकाल दिया जाय तो जिंदगी बच सकती है। वेंटीलेटर पर ही दो बार मरीज में प्लाज्मा फेरेसिस किया गया। फिर वह वेंटीलेटर से बाहर आ गए।

बेड साइड पर ही दिया गया प्लाज्मा फेरेसिसः ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रो. आरके चौधरी और प्रो. राहुल कथारिया के मुताबिक 55 वर्षीय राम शरण इस बीमारी से ग्रस्त हो कर भर्ती हुए। बेड साइड पर ही प्लाज्मा फेरेसिस और प्लेटलेट्स सेपरेशन करने से काफी फायदा हुआ। उन्होंने बताया कि हमारे पास प्लाज्मा एक्सचेंज करने की एक और प्लेटलेट्स सप्रेटर की तीन मशीनें है।

एक्यूट लिवर फेल्योर में भी काम आती है तकनीकिः मेस्थेनिया ग्रेविस के आलावा, थ्रम्बोसाइटोपीनिया, एक्यूट लिवर फेल्योर सहित अन्य में भी इसी तकनीकि से इलाज किया जाता है। थ्रोम्बोसाइटोपेनिया के मरीजों में प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ जाती है, जिससे रक्त का थक्का बनने लगता है। इसमें प्लेटलेट्स सेप्रेरटर के जरिए अतिरिक्त प्लेटलेट्स को निकाल दिया जाता है। इसी तरह एक्यूट लिवर फेल्योर के मरीजों के शरीर में बहुत अधिक टाक्सिन बन जाता है, जिससे प्लाज्मा एक्सचेंज तकनीक से निकाल देते हैं। इससे मरीज की परेशानी कम हो जाती है। इस तकनीक की जरूरत बढ़ती जा रही है।

क्या है मेस्थेनिया ग्रेविसः प्रो. राहुल ने मेस्थेनिया ग्रेविस एसीटलीन क्लीन रिसेप्टर और मसल स्पेसफेसिक काइनेज के खिलाफ एंटीबाडी बन जाती है, जिससे मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। सासं लेने के लिए काम करने वाली मांसपेशियां तक काम नहीं करती हैं। इस नवीन तकनीकि से इस बीमारी का इलाज संभव है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.