लिखना जरूरी है: अमिताभ अंकल! बच्चों के लिए केबीसी लाएं Lucknow News
संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौते की 30वीं वर्षगांठ के अवसर पर समाज में बाल अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के इस प्रयास में दैनिक जागरण और यूनिसेफ की साझा पहल।
मम्मी,
मैं थोड़ी लापरवाह जरूर हूं, लेकिन मैं नासमझ नहीं। मैं पढ़ाई में भी शायद उतनी अच्छी नहीं। मुझे चूल्हा-चौका भी पसंद नहीं। बावजूद इसके मैं आपको यह विश्वास दिलाती हूं कि मैं आपको कामयाब होकर दिखाऊंगी, क्योंकि मुझे खुद पर भरोसा है। आप और पापा इतनी मेहनत करते हो, मेरी हर ख्वाहिश का पूरा ख्याल रखते हो, इसलिए मैं इसे अपना फर्ज समझती हूं कि आपका नाम रोशन करने के लिए कुछ करूं। मैं आइएएस बनकर देश की सेवा करूंगी। इसका विश्वास मुझे आपके प्यार से ही मिला है। मैं इकलौती हूं इसलिए आपका प्यार मुङो ज्यादा मिलता है, लेकिन मैं इसका फायदा नहीं उठाऊंगी। हालांकि थोड़ी-बहुत जिद करती हूं, लेकिन अगर आप लोगों से जिद नहीं करूंगी तो फिर किससे करूंगी। इतना तो मेरा हक बनता ही है।
मम्मी, मैं आपसे एक बात कहना चाहती हूं। आप जब मेरी तुलना दूसरे बच्चों से करती हैं तो मुङो बहुत बुरा लगता है। प्लीज, आप ऐसा न किया करो। मैं जैसी भी हूं आप दोनों की लाडली हूं और हमेशा रहूंगी। मैं जैसी हूं प्लीज वैसी ही रहने दो। अगर मैं दूसरों की तरह ही हो जाऊंगी जिनकी कि आप मिसाल देती हैं, तो फिर मेरी अपनी पर्सनैलिटी कैसे डेवलप होगी। आप लोग ही मेरे लिए सबकुछ हो।
मैं किसी से खुलकर बात नहीं कर पाती, कोई सामान लेने बाजार अकेली नहीं जा पाती। आप लोग इसके लिए मुङो डांटते भी हो, पर इसका मतलब यह नहीं कि मुङो यह सब आता नहीं। मैं आप दोनों के साथ बाहर जाना चाहती हूं। मुङो कौन बनेगा करोड़पति देखना बहुत पसंद है। मैं अमिताभ बच्चन जी से कहना चाहती हूं कि एक सीजन बच्चों का भी बनाएं। उसमें हम बच्चे जो रकम जीतें वह पैसा पढ़ाई में या फिर अपने सपने पूरे करने में लगाएं।
स्वीकृति अग्रवाल
[कक्षा 11, सेंट एंथोनी इंटर कॉलेज, राम राम बैंक चौराहा]
स्कूल के पहले दिन से बनाएं डे चार्ट
चाइल्ड कॅरियर काउंसलर सुनील गुप्ता ने बताया कि अभिभावक छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखकर बच्चों में बड़ा बदलाव ला सकते हैं। इसके लिए पहले उनके साथ बढ़िया बॉन्डिंग बनानी पड़ेगी। बच्चों को सरप्राइज देने का फॉमरूला बेहतर हो सकता है। मसलन, बच्चे दोस्तों के साथ छुपकर मूवी देखने जा रहे हैं, तो मां-पिता वीकेंड पर खुद फिल्म दिखाने का उन्हें ऑफर दें। इसके साथ ही बच्चों को यदि कपड़े देने हैं तो मौके की तलाश करें। उसके टेस्ट का रिजल्ट आने पर टीशर्ट या जींस जो भी देना है, उसके स्टडी टेबल की डोर में रख दें। वह रूटीन की तरह पढ़ने जाएगा तो गिफ्ट देखकर खुश हो जाएगा। इन छोटे-छोटेतरीकों से बच्चों के स्वभाव में बड़ा बदलाव किया जा सकेगा।
बच्चों का डे चार्ट (टाइम टेबल मैनेजमेंट) स्कूल के पहले दिन से बनना चाहिए। इससे उन पर अचानक मासिक टेस्ट का बोझ नहीं पड़ेगा। साथ ही अर्धवार्षिक व वार्षिक परीक्षाओं की तैयारी भी समय से हो सकेगी। कक्षा पांच से ऊपर के बच्चों को सुबह छह बजे उठने की आदत डालें। साथ ही पंद्रह मिनट में फ्रेश होकर सुबह सवा छह बजे से सवा सात बजे तक उनमें लर्निग की आदत डालें।