IIM में लगी सरकार की पाठशाला... कठिन सवाल पर बगल मेें झांकते नजर आए माननीय lucknow news
08 घंटे ली मैनेजमेंट गुरुओं ने नेताओं की क्लास। 07 सत्र की मैराथन क्लास ने खूब ली मंत्रियों के धैर्य की परीक्षा। 06 मंत्री पहले ही सत्र में टॉयलेट की लगाते रहे दौड़।
लखनऊ, (पुलक त्रिपाठी)। क्लास (कक्षा) को ऐसे ही क्लास नहीं कहते। छुटपन की हो, बड़े कॉलेज में या देश के सबसे बड़े मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट की। सिर चढ़कर बोलता है शिक्षकों के सवालों का हौवा...। फिर चाहे पढऩे वाला कोई भी क्यों न हों। सामान्य छात्र, अफसर, अभिनेता या सरकार चलाने वाले एक से बढ़कर एक नेता...। उसपर भी टेस्ट? बेहतर तैयारी वालों के लिए तो ठीक, बाकियों का काटे नहीं कटता क्लास का मुश्किल वक्त...।
रविवार को कुछ ऐसी ही क्लास से हो गया हमारे माननीयों (मंत्रियों) का सामना। फिर क्या, सामने सबकुछ वही घूम गया..., स्कूल-कॉलेजों में जो घटता रहा है। न प्रोटोकाल याद रहा न पद। आम छात्रों की तरह व्यवहार करते नजर आए सारे के सारे...। बैक बेंचर, सवालों पर ताका-झांकी, टॉयलेट के नाम पर बार-बार क्लास से बाहर की दौड़ और इंटरवल (टी ब्रेक) होते ही शरारती शिगूफे...। हां, कुछ ऐसे भी थे जो अनुशासित विद्यार्थियों की तरह लेक्चर सुनने और हल करने में डटे रहे मुश्किल सवाल...। आइए, आपको ले चलते हैं नेताओं की इसी क्लास में।
सुबह साढ़े नौ बजे शुरू हुई क्लास
कार्यक्रम पहले से तय था। इंस्टीट्यूट भी देश का सबसे बड़ा। आइआइएम। लिहाजा, उप्र सरकार चलाने वाले सभी मंत्री अच्छे छात्रों की तरह बस में सवार होकर पहुंच गए कैंपस। पढ़ाई के इतने वर्षों बाद शिक्षकों से सामना होना था तो कुछ नर्वस थे, कुछ बेफिक्र। कुछ में नया सीखने की ललक दिखी। क्लास की शुरुआत संस्थान की निदेशक प्रो. अर्चना शुक्ला ने की और पढ़ाई का माहौल बनाया।
ऐसे सजी माननीयों की क्लास
चूंकि, मैनेजमेंट का पाठ माननीयों को पढऩा था। लिहाजा क्लास का स्वरूप बदला हुआ था। बैंच की जगह राउंड टेबिल डाली गईं। सूबे के मुखिया यानी मुख्यमंत्री खुद सबसे आगे बैठे। बाकी अपनी तय सीट पर बैठ गए। स्कूल-कॉलेजों की तरह ही यहां भी कुछ बैक बेंचर नजर आए।
सीएम और निदेशक के आते हो जाते अनुशासित
क्लास के शुरुआती करीब डेढ़ घंटे तक तो मंत्री आराम की मुद्रा में दिखे लेकिन, आइआइएम निदेशक और मॉनीटर की भूमिका में नजर आ रहे सीएम के राउंड लेते ही अनुशासित छात्रों की तरह अलर्ट हो जाते। इसी बीच निदेशक प्रो. अर्चना शुक्ला, प्रो. पुष्पेंद्र प्रियदर्शी व प्रो. निशांत उप्पल ने (प्राथमिकता निर्धारण हेतु सुगम पूर्वाभ्यास) सत्र के तहत सभी मंत्रियों को प्रश्नों की एनालिटिकल शीट थमा दी। सारे सवालों के जवाब अनिवार्य थे। सवाल भी प्रोफाइल देखकर आए। न कठिन, न आसान। दरअसल, मकसद था मंत्रियों का आइक्यू टेस्ट करना।
यह आए सवाल, छूटे मंत्रियों के पसीने
सवाल कुछ यूं थे। एक गुफा से सात लोगों को प्राथमिकता के आधार पर बाहर निकालना हो तो किसे निकालेंगे? एक महिला हेमा जो दो बच्चों की मां है। दूसरी तान्या जो समाज शास्त्र की छात्रा है। तीसरा जोशी जो ज्योतिष व धर्मशास्त्र के लिए प्रसिद्ध है। चौथा अमिताभ जो थल सेना के अधिकारी रहे हैं। पांचवे पाल जो कैंसर विशेषज्ञ हैं। छठें अजमेर सिंह भूगर्भशास्त्री हैं। सातवें अहमद जो फैक्ट्री के महाप्रबंधक हैं। बारी जवाब लिखने की आई तो कई कमजोर मंत्रियों को पसीना आ गया। बगले झांकने लगे। वहीं कुछ स्मार्ट मंत्रियों ने बिना देरी किए सही उत्तर देते हुए एनालिटिकल शीट को मेज पर रखे सामान से दबा लिया।
करते रहे 'इंटरवल' का इंतजार
बच्चों की क्लास की तरह नजारा यहां का था। कुछ मंत्री पढ़ाई को लेकर गंभीर दिखे तो कुछ बार-बार बगल स्थित डाइनिंग हाल की ओर निहार रहे थे। वह घड़ी देखकर 11.30 बजने का इंतजार कर रहे थे, क्योंकि इंटरवल यानी टी ब्रेक होना था।
लगाते रहे टॉयलेट की दौड़
क्लास मॉनीटर यानी सीएम की मौजूदगी में सभी मंत्री क्लास में डटे थे। वे निर्देश के साथ राउंड लगाते रहे। मंत्रियों का हाल लिया लेकिन, कुछ शरारती बच्चों की तरह उनकी निगाहों से बचकर बार-बार टॉयलेट की दौड़ लगाते दिखे। कुछ तो ऐसे भी थे, जो हर दस मिनट बाद टॉयलेट के चक्कर लगाते रहे।
खाने के वक्त दिखा अनुशासन
लंबी क्लास के बाद दोपहर डेढ़ बजे लंच हुआ। सभी मंत्री डायनिंग हाल तुरंत पहुंच गए। क्लास की अपेक्षा यहां अनुशासन में नजर आए। लाइन में लगकर प्लेट ली और सलीके से बैठकर खाना खाया। हालांकि एक मंत्री के लाइन को ओवरटेक करने पर दूसरे ने व्यंग भी कसा, जिसके बाद वे लाइन में आ गए।