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LDA: सामुदायिक भूखंड पर 10 सालों तक खर्च होता रहा पार्क का पैसा, नीलाम होने पर अफसरों के पैरों तले खिसकी जमीन

लखनऊ विकास प्राधिकरण के नियोजन संपत्ति और अभियंत्रण विभाग उस सामुदायिक भूखंड पर समय-समय पर लाखों रुपये खर्च करते रहे जो कागजों पर सामुदायिक भूखंड था। यह पैसा पार्क के नाम पर खर्च होता रहा। बाकायदा बाउंड्री वाल बनी हाई मास्ट प्रकाश की व्यवस्था थी आवंटी पार्क में टहलते थे।

By Rafiya NazEdited By: Published: Sun, 05 Sep 2021 01:00 PM (IST)Updated: Sun, 05 Sep 2021 01:12 PM (IST)
LDA: सामुदायिक भूखंड पर 10 सालों तक खर्च होता रहा पार्क का पैसा, नीलाम होने पर अफसरों के पैरों तले खिसकी जमीन
एलडीए में पार्क की तरह सामुदायिक भूखंड का होता रहा रखरखाव।

लखनऊ, जागरण संवाददाता। लखनऊ विकास प्राधिकरण के नियोजन, संपत्ति और अभियंत्रण विभाग उस सामुदायिक भूखंड पर समय-समय पर लाखों रुपये खर्च करते रहे, जो कागजों पर सामुदायिक भूखंड था। यह पैसा पार्क के नाम पर खर्च होता रहा। बाकायदा बाउंड्री वाल बनी थी, हाई मास्ट प्रकाश की व्यवस्था थी, आवंटी पार्क में टहलते थे। इस बार नीलामी में वही पार्क जो लविप्रा के कागजों पर गोमती नगर का भूखंड संख्या 1/243 था, वह करोड़ों में नीलाम हो गया। लविप्रा के अभियताओं को पता चला की अरे यह पार्क नहीं था, इस पर 25 लाख रुपये का टेंडर हो गया था। बाद में निरस्त किया गया। नवनियुक्त अभियंत्रण के अधिशासी अभियंता जिन्हें जिम्मेदारी चंद सप्ताह पहले मिली थी, उन्हें इसे रुकवाते हुए वरिष्ठों को जानकारी दी, अन्यथा पैसा उसी सामुदायिक भूखंड पर खर्च हो जाता। पूर्व अभियंत्रण के अभियंता इस पर बाकायदा टेंडर करते रहे हैं। वहीं सचिव लविप्रा पवन कुमार गंगवार ने बताया कि यह मामला दिखवाया जा रहा है।

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लविप्रा हमेशा से अपनी संपत्ति जैसे है वैसे की स्थिति में बेचता है। गोमती नगर विस्तार का भूखंड बिल्कुल अलग मामला है। बाकायदा भूखंड पर बाउंड्रीवाल है और फुलवारी, लाइटिंग की व्यवस्था है। ग्वारी चौराहे से उतरते ही दांए हाथ स्थित भूखंड को अभी तक पार्क के नाम पर विकसित किया जाता रहा है। सवाल खड़ा होता है कि पिछले दस सालों में पार्क के नाम पर खर्च हो रहे पैसे का हिसाब कौन देगा?

नीलामी में भूखंड खरीदा बाउंड्रीवाल लाइटिंग का पैसा ? भूखंड के चारों ओर बाउंड्रीवाल है। लाइटिंग की व्यवस्था है, इसका पैसा संपत्ति खरीदने वाले से लखनऊ विकास प्राधिकरण ने नहीं लिया है। क्योंकि भूखंड जैसा है वैसे की स्थिति में बेचा गया। संपत्ति बेचते वक्त मौके का निरीक्षण न करते हुए भूखंड की कीमत खरीददार से वसूली गई। कई हजार वर्ग फिट में फैले भूखंड पर कई लाख रुपये राजस्व में लविप्रा खर्च कर चुका है।


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