World Music Day 2021: आज भी ठहराव और भाव भंगिमाओं से पहचाना जाता है लखनवी कथक
विदेश तक में लखनऊ घराना अपनी इस खूबी के कारण जाना जाता है। उजबेकिस्तान का लोकनृत्य बहुत कुछ लखनऊ घराने से मिलता है। उजैक भाषा होने के बावजूद कथक सिखाना बहुत आसान हो गया। लखनऊ कथक घराने की व्यापकता और स्वीकार्यता वृहद है।
लखनऊ, जेएनएन। यूं तो कथक का हर घराना अपने आप में परिपूर्ण और तमाम विशेताओं को लिए है, अगर सिर्फ लखनऊ घराने की बात करें तो इसमें लास्य और भावों का अद्भुत समन्वय है। लखनऊ का कथक भावों के विभिन्न रंगों से सजा है। अपनी कथक शिक्षा के दौरान मैंने अपने दोनों गुरुजन से कथक घरानों की विविधता के बारे में बेहतर तरीके से जाना। गुरु डॉ. पुरु दधिची से जयपुर घराना और गुरु कपिला राज से लखनऊ घराने का कथक सीखा। गुरु कपिला राज को गतों की रानी कहा जाता था। दोनों ने ही कथक में प्रयोगधर्मिता का स्वागत किया, लेकिन उसके मूल स्वरूप के साथ छेड़छाड नहीं की। लखनऊ का कथक आज भी ठहराव और भाव भंगिमाओं से पहचाना जाता है, इसकी इस पहचान को बनाए रखना चाहिए। विदेश तक में लखनऊ घराना अपनी इस खूबी के कारण जाना जाता है। मुझे उजबेकिस्तान में कथक प्रशिक्षण का मौका मिला। वहां का लोकनृत्य बहुत कुछ लखनऊ घराने से मिलता है। उजैक भाषा होने के बावजूद कथक सिखाना बहुत आसान हो गया। लखनऊ कथक घराने की व्यापकता और स्वीकार्यता वृहद है। - अलका भट्ट, कथक कलाकार
ऐसे हुई शुरुआत : लखनऊ घराने का जनक ईश्वरी प्रसाद को मानते हैं। वह इलाहाबाद के रहने वाले थे। ऐसा माना जाता है कि सपने में भगवान कृष्ण ने इनको नृत्य ग्रंथ बनाने की प्रेरणा दी। इन्होंने ग्रंथ की रचना कर उसकी शिक्षा अपने तीनों पुत्रों अड़गू, खड़गू और तुलाराम को दी थी। पिता द्वारा प्राप्त नृत्य शिक्षा को अड़गू ने अपने तीनों पुत्रों प्रकाश, दयाल और हरिलाल को दी। इन तीनों भाइयों को लखनऊ के कला प्रेमी नवाब आसफद्दौला ने राजाश्रय और प्रोत्साहन दिया। प्रकाश जी के तीन पुत्र दुर्गा प्रसाद, ठाकुर प्रसाद और मान सिंह हुए। दुर्गा प्रसाद के तीन पुत्र हुए- बिंदादीन महाराज, कालका प्रसाद और भैरों प्रसाद। कहा जाता है कि बिंदादीन महाराज ने करीब 1500 ठुमरियों का निर्माण किया और कथक में भाव सौंदर्य को खूब विस्तार दिया। कालका प्रसाद के तीन पुत्र हुए- अच्छन महाराज, लच्छू महाराज और शम्भू महाराज। इन तीनों ने कथक को दूर-दूर तक विख्यात किया। अच्छन महाराज के पुत्र बिरजू महाराज ने कथक को विश्व भर में प्रसारित किया। बिरजू महाराज के पुत्र जयकिशन महाराज और दीपक महाराज कथक कथक साधनारत हैं। शम्भू महाराज के पुत्र कृष्ण मोहन मिश्र और श्रीराम मोहन मिश्र भी लखनऊ घराने की कीर्ति को विश्व विख्यात करने में तल्लीन हैं। - डाॅ रुचि खरे, कथक कलाकार
सुर व लौ प्रधान है वादन शैली : मैं लखनऊ का रहने वाला हूं, पर मेरी तबले की शिक्षा बनारस घराने के अनुसार हुई। गुरु स्व. डॉ भरत मिश्रा, डॉ मनोज कुमार मिश्रा और पंडित रविनाथ मिश्रा के सानिध्य में मेरी संगीत यात्रा आगे बढ़ी। चूंकि संस्थागत शिक्षण पद्धति में तबले की शिक्षा प्राप्त करने के कारण बनारस के अलावा और भी घरानों को सीखने, समझने और जानने का अवसर मिला, जिसमें लखनऊ घराना मुझे अत्यंत प्रिय है। वर्तमान समय में मैं गुरु पं रविनाथ मिश्रा के निर्देशन में शोधकार्य कर रहा हूं, जिसका विषय भी घरानों से संबंधित है।
लखनऊ घराने की वादन शैली का तबला के क्षेत्र में एक विशेष स्थान है। यहां की वादन शैली सुर या लौ प्रधान होती है। कथक नृत्य के साथ तबले की संगत का विकास लखनऊ घराने से ही प्रारंभ हुआ। इस घराने में तेटे और धेटे बोल समूह के कायदे बहुत प्रचलित हैं। लखनऊ घराने के गुरु उस्ताद इलमास हुसैन का एक विशेष कायदा, जोकि उनके शिष्य देव कुमार शर्मा जी से मुझे प्राप्त हुआ था, (धा तेटे धेट धा तेटे धाती धागे धीना तेटे । धा तेटे धेट धा तेटे धाती धागे तीना केना ) यह बहुत ही सुंदर और तेज गति में बजने वाली आकर्षक रचना है। इस रचना में ते टे और धे टे में पहले तर्जनी और फिर मध्यमा का प्रयोग होता है। लखनऊ घराने की वादन शैली में प्रयुक्त बोल समूह तबला संगति के दौरान संगीत की किसी भी विधा का अत्यंत सुंदर अलंकरण करते हैं। - हर्षित मिश्रा, तबला कलाकार।