जानिए कौन हैं समाजसेविका डा.वंदना मिश्रा, इनकी एक छोटी सी पहल से संवर रहा बेटियों का जीवन
बालिका शिक्षा को लेकर लखनऊ की डा.वंदना मिश्रा ने जो सपना देखा था उसे उन्होंने पत्नी और मां बनकर बखूबी अंजाम दिया। लखनऊ समेत प्रदेश की 1800 से अधिक ग्रामीण व स्ट्रीट बालिकाओं को शिक्षा में समानता का अधिकार दिला कर उनके जीवन को संवारने का काम किया है।
लखनऊ, [जितेंद्र उपाध्याय]। आपके अंदर यदि कुछ करने का जज्बा है तो मंजिल मिल ही जाती है। मंजिल के लिए कोई उम्र और कोई बंधन नहीं होता है। शादी से पहले बालिका शिक्षा को लेकर जो सपना लखनऊ की डा.वंदना मिश्रा ने देखा था उसे उन्होंने पत्नी और मां बनकर बखूबी अंजाम दिया। उन्होंने अब तक लखनऊ समेत प्रदेश की 1800 से अधिक ग्रामीण व स्ट्रीट बालिकाओं को शिक्षा में समानता का अधिकार दिला कर उनके जीवन को संवारने का काम किया है।
बालिका शिक्षा को लेकर सामाजिक कुरीतियों के मिथक को तोडऩे की चुनौती जहां उनके सामने खड़ी थी वहीं चहार दीवारी के अंदर रहने वाली औरत के अंदर बेटी को पढ़ाने का जज्बा पैदा करने की कठिनाई भी उनके सामने थी। पति दो बच्चों के साथ सशक्त सपनों को मजबूत आधार देने के उनके मकसद को पति संजय मिश्रा का सहारा मिला तो परिवार के लोगों ने उनका हौसला बढ़ाया। सरोजनीनगर के कल्ली गांव में बालिकाओं की शिक्षा को लेकर उनके संघर्ष को ग्रामीणों ने भी काफी सराहा। केयर फाउंडेशन की प्रोजेक्ट मैनेजर के तौर पर उन्होंने उच्च प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षा के स्तर को न केवल सुधारने का प्रयास किया बल्कि बालिकाओं के अंदर अपनी बात रखने का जज्बा भी जगाने का काम किया।
शादी बाद की पीएचडी : 1995 में वंदना मिश्रा की शादी तो हो गई, लेकिन उन्होंने अपने सपने को साकार करने के जज्बे को बरकरार रखा। पति और परिवार के साथ समन्वय स्थापित करने के बाद उन्होंने अपने मकसद को पूरा करने का संकल्प ले लिया। 2008 में नेट पास किया। एम फिल के साथ 2010 में पीएचडी में इनरोल कराया। केयर फाउंडेशन से जुड़ीं और प्राथमिक शिक्षा के साथ ही लड़कियों के कौशल का विकास कर रही हैं। राजधानी समेत प्रदेश के 19 जिलों में बालिका शिक्षा को लेकर काम करने वाली डा.वंदना मिश्रा कोरोना संक्रमण काल में भी शिक्षा और रोजगार से जोड़ने में लगी रहीं।