Move to Jagran APP

Chhath-Puja 2019: गोमती तीरे छाएगी छठ की छटा, 1985 से घाट तक पहुंचा मुहल्ले का ये व्रत Lucknow News

Chhath Puja 2019 पूर्वांचल के महाव्रत छठ की बात करें तो अब यह पर्व लखनऊ की रवायत में रच बस चुका है।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Fri, 01 Nov 2019 09:36 AM (IST)Updated: Sat, 02 Nov 2019 08:24 AM (IST)
Chhath-Puja 2019: गोमती तीरे छाएगी छठ की छटा, 1985 से घाट तक पहुंचा मुहल्ले का ये व्रत Lucknow News
Chhath-Puja 2019: गोमती तीरे छाएगी छठ की छटा, 1985 से घाट तक पहुंचा मुहल्ले का ये व्रत Lucknow News

लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय]। 'मीर में मजार में, नवाबी अंदाज में गजलों की नजाकत में, बेगम अख्तर की आवाज में, आरती में अजान में, लखनवी पान में, चिकन के करिश्मे में दशहरी आम में, हर दिल नवाबी में, गोमती नदी के घाट में, शीरे सी जुबान में लखनऊ बसता है' अलका निवेदन की लखनऊ को लेकर लिखी ये पंक्तियां नजाकत व नफासत के शहर पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं। तमाम संस्कृतियों को अपने में समाहित करने की तहजीब तो सिर्फ लक्ष्मणनगरी में मिलती है। पूर्वांचल के छठ महाव्रत को भी इस शहर से न केवल अपनाया बल्कि पर्व को स्थापित करने का भी काम किया। 

loksabha election banner

पूर्वांचल के महाव्रत छठ की बात करें तो अब यह पर्व यहां की रवायत में रच बस चुका है। 50 वर्ष पहले पहले गली मुहल्लों तक सीमित रहे इस छठ को उत्सव का स्वरूप देने में भोजपुरी समाज के लोगों का खासा योगदान रहा है। संतान सुख और सुहाग की कामना के इस छठी मैया के व्रत का विस्तार जब शुरू हुआ तो प्रशासन का सहयोग भी शुरू हो गया। एक कपड़े में लिपटी व्रती महिलाओं की टोलियां नवाबी शहर को पूर्वांचल के रंग में रंगने का काम करने लगीं। छठ पर्व पर एक बार फिर गंगा-जमुनी तहजीब का नजारा आम होगा। पूर्वांचल के प्रसिद्ध इस त्योहार की छटा राजधानी में एकता और भाईचारे के संदेश के रूप में एक बार फिर गोमती के घाटों और मुहल्लों में बिखरेगी। 

घाट तक पहुंचा मुहल्ले का व्रत

महानगर पीएसी 35वीं और कानपुर रोड के 32वीं वाहिनी पीएसी और मवैया रेलवे कॉलोनी में इस त्योहार की छटा तो कई वर्ष पहले से दिखाई पड़ रही थी। 1985 से इस पर्व को मुहल्लों से घाट तक लाने का प्रयास शुरू हुआ। अखिल भारतीय भोजपुरी समाज के अध्यक्ष प्रभुनाथ राय ने भोजपुरी समाज के कुछ लोगों के साथ मिलकर इस पर्व को उत्सव का रूप देने का प्रयास किया। लक्ष्मण मेला स्थल पर 34 साल पहले पहली बार पूजा हुई और कभी नहीं रुकी। बिना प्रशासनिक सहयोग के भोजपुरी समाज के लोग लक्ष्मण मेला घाट की सफाई और छठ मइया के प्रतीक (सुसुबिता) बनाने में जुट जाते थे। कुछ वर्ष बाद नगर निगम और जिला प्रशासन ने पर्व को लेकर अपनी दिलचस्पी दिखाई और भोजपुरी समाज के साथ मिलकर पर्व को उत्सव का रंग दे दिया। कभी सिंचाई विभाग तो कभी आवास विकास के बीच छठ घाट को लेकर विवादों के बावजूद छठ मैया का यह पर्व अब लक्ष्मण मेला स्थल पर उत्सव का रूप ले चुका है। एक बार फिर दो और तीन नवंबर को यहां पूर्वांचल का नजारा नजर आएगा। 

यह भी पढ़ें: छठ : नहायखाय के साथ शुरू होगा 36 घंटे का निर्जला व्रत, ऐसे करें पूजन 

लक्ष्मणनगरी में दिखेगा छठ का उल्लास 

लक्ष्मण मेला के छठ घाट ही नहीं बल्कि गोमती के किनारे के अधिकतर घाटों पर छठ उत्सव नजर आएगा। महानगर पीएसी आवासीय परिसर में तालाब के किनारे जहां छठ मइया के गीत नजर आएंगे तो कृष्णानगर के सहसोवीर मंदिर परिसर और मानसनगर के श्री संकट मोचन हनुमान मंदिर में बनाए गए गड्ढे में व्रती अस्ताचलगामी और उदीयमान सूर्य को अघ्र्य देंगे। राजधानी का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो जहां पूजा न होती हो। गोमती नगर के पॉश इलाके से लेकर आलमबाग के आनंदनगर व बड़ा बरहा कॉलोनी में इसका नजारा आम होगा। 

 यह भी पढ़ें: Chhath Puja 2019: आज छोटी छठ से शुरू होगा 36 घंटे का निर्जला व्रत, सूर्य को अर्घ्य देकर करेंगी पारण 

बुजुर्ग महिलाओं का मिलता है सहयोग 

छठ का पहला महाव्रत या तो संतान सुख के बाद शुरू होता है या फिर व्रत रखने में असमर्थ बुजुर्ग महिलाओं द्वारा बहू को इसे दिया जाता है। मानसनगर की कलावती देवी पिछले 40 साल से व्रत रख रही हैं, लेकिन इस बार वह व्रत को बड़ी बहू रंजना सिंह और छोटी बहू काजल सिंह को अर्पित करेंगी।

इसलिए होती है पूजा

आचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी। उन्होंने महर्षि कश्यप से इसकी चिंता जाहिर की तो उन्होंने पुत्रयेष्टि यज्ञ कराने की सलाह दी। राजा ने यज्ञ में चढ़ाने के लिए जो खीर बनाई थी उसे राजा की पत्नी मालिनी को सेवन के लिए दी गई। रानी को पुत्र की प्राप्ति तो हुई, लेकिन वह मृत था। राजा प्रियवद दु:खी होकर श्मशान घाट पर प्राण त्यागने लगे। उसी समय भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा से कहा कि मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से पैदा हुई हूं। इसलिए मेरा नाम षष्ठी है। मेरी पूजा करो, कार्तिक मास की षष्ठी के दिन राजा ने पत्नी के साथ व्रत रखा और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। उस दिन से छठी मैया का पूजन शुरू हुआ। इस कथा को भी महिलाएं याद करती हैं। 

यह भी पढ़ें:  छठ उत्सव पर इस बार चढ़ेगा भगवा रंग, 36 घंटे का निर्जला व्रत रख होगी कामनाएं पूरी-ऐसे करें पूजन 

यहां दिखेगी छठ की रौनक 

  • लक्ष्मण मेला स्थल का छठ घाट
  • शिव मंदिर घाट खदरा 
  • मनकामेश्वर उपवन घाट
  • पंचमुखी हनुमान मंदिर बीरबल साहनी घाट
  • संकट मोचन मंदिर परिसर मानसनगर कृष्णानगर
  • शनि धाम मंदिर, एलडीए कॉलोनी कानपुर रोड
  • सहसेवीर मंदिर इंद्रलोक कॉलोनी
  • लक्ष्मण पार्क निशातगंज पुल
  • रेलवे कॉलोनी मवैया ऐशबाग 
  • 35वीं वाहिनी पीएसी महानगर 
  • चित्रगुप्त धाम झूलेलाल घाट
  • संजिया घाट पक्कापुल 

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.