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छठ का महापर्व: बेटा नहीं बेटी पैदा होने पर रखा व्रत, अवध में दिखेगा पूर्वांचल का नजारा

आज से बढ़ेगी बाजारों में रौनक, होगी खरीदारी। संतान सुख की कामना और परिवार की समृद्धि की उपासना के पर्व छठ को लेकर भी मायने बदलने लगे हैं।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sun, 11 Nov 2018 02:53 PM (IST)Updated: Sun, 11 Nov 2018 02:53 PM (IST)
छठ का महापर्व: बेटा नहीं बेटी पैदा होने पर रखा व्रत, अवध में दिखेगा पूर्वांचल का नजारा
छठ का महापर्व: बेटा नहीं बेटी पैदा होने पर रखा व्रत, अवध में दिखेगा पूर्वांचल का नजारा

लखनऊ(जेएनएन)। आधुनिकता के इस डिजिटल युग में पुरानी मान्यताओं में समय के अनुसार बदलाव का दौर भी शुरू हो गया है। संतान सुख की कामना और परिवार की समृद्धि की उपासना के पर्व छठ को लेकर भी मायने बदलने लगे हैं। कभी संतान सुख के लिए लड़के कामना करने वाली महिलाएं अब लड़की पैदा होने पर व्रत रखती हैं। 

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मूलरूप से बिहार के गोपालपुर निवासी लाडो केशवनगर में रहती हैं। पांच साल पहले छठी मइया से बेटी पैदा होने की कामना की थी। कामना पूरी होने के बाद से वह छठ मइया का व्रत रखती हैं। महानगर 35वीं वाहिनी पीएसी में व्रत के लिए सुसुबिता बनाने में लगी हैं। उनका कहना है कि बेटी-बेटा एक समान है। ऐसे में हमे अपनी पुरानी सोच को बदलना होगा। अकेली लाडो ही नहीं खदरा के शिव नगर निवासी शोभा देवी, अंजू यादव व सिंधुजा मिश्रा सहित कई महिलाएं बेटियों के सम्मान में छठी मइया का व्रत रखती हैं। अवध में चार दिवसीय व्रत का रविवार को नहायखाय से शुरुआत होगी। इस दिन से बाजारों में भी रौनक शुरू हो जाएगी।

 

क्या होता है नहाय खाय

इस दिन मुख्य रुप से घरों की सफाई होती है साथ ही व्रती महिलाएं रसोई की सफाई कर व्रत में खाये जाने वाले अन्न धोकर साफ करती हैं। मानसनगर निवासी कलावती ने बताया कि स्नानकर भोजन ग्रहण करती हैं। महिलाएं घाटों पर जाकर छठ मइया का प्रतीक सुसुबिता बनाएंगी। छोटी छठ 12 को है। इस दिन शाम से 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाएगा।

लक्ष्मण मेला स्थल पर बहेगी भोजपुरी बयार 

केरवा फरेला गवद से आहे पर सुगा मंडराय...और कांचहि बांस की बहंगिया...जैसे छठ गीतों के संग राजधानी में भी भोजपुरी बयार बहेगी । लक्ष्मण मेला स्थल पर होने वाला मुख्य आयोजन 13 से शुरू हो जाएगा। अखिल भारतीय भोजपुरी समाज के अध्यक्ष प्रभुनाथ राय ने बताया कि आयोजन को लेकर तैयारियां पूरी हो गई हैं। भोजपुरी समाज व नगर निगम की ओर से शनिवार को वृहद सफाई अभियान चलाया गया। 

यहां भी होगा आयोजन

मनकामेश्वर उपवन घाट पर भी छठ पूजा होगी। मनकामेश्वर मंदिर की महंत देव्यागिरि ने बताया कि छठ उत्सव को लेकर तैयारियां शुरू हो गई हैं। सामाजिक समरसता के इस कार्यक्रम में पूर्वांचल के साथ ही यहां के लोग भी हिस्सा लेंगे। कृष्णानगर के मानसनगर स्थित संकट मोचन हनुमान मंदिर (नई पानी की टंकी पार्क) में छठ पूजा होगी। इंद्रलोक कॉलोनी के सेहसेवीर मंदिर, पीएसी महानगर, छोटी व बड़ी नहर आलमबाग, मवैया रेलवे कॉलोनी, शिव मंदिर घाट खदरा, झूलेलाल घाट, कुडिय़ा घाट व अग्रसेन घाट सहित के सभी घाटों पर भी विशेष पूजा होगी। 

खास होते हैं छठ गीत

गायिका रंजना मिश्रा कहती हैं कि नंगे पर घाट तक महिलाएं व पुरुष परिवार के साथ जाते हैं। शाम को डूबते और सुबह उगते सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। छठी मइया से सबके मिलत बा दुलार..., छठी मइया तोहरे पर लागल बा परनवा...,केरवा फरेला घवद से ओहे पे सुगा मंडराय...और कांचहि बांस की बहंगिया...जैसे छठ गीतों के संग महिलाओं का समूह घाट तक जाता है। इन गीतों के माध्यम से पूरा घाट गुंजायमान हो उठता है।

 

पानी में खड़े होकर होती है पूजा

(इंडस्ट्रीज) वन निगम के जीएम ईवा शर्मा बताती हैं, नदी व सरोवरों के किनारे मिट्टी की बनी सुसुबिता (छठी मइया का प्रतीक) की विधि विधान से पूजा की जाती है। स्नानकर महिलाएं पानी में खड़े होकर डूबते और उगते सूर्य को अघ्र्य देकर संतान की सुख की कामना करती हैं। छठी मइया के गीतों के साथ पति या बेटा सिर पर बास की टोकरी में सभी मौसमी फल रखकर घाट तक जाते हैं। महिलाएं सूप में जलते दीपक और गंगाजल के साथ छठ गीतों के संग पीछे-पीछे चलती हैं।

साड़ी में नहीं होता काला रंग

सर्वोदय नगर की गीता वर्मा का कहना है कि छठ पर्व पर परिवार में जितने पुरुष होते हैं उतने सूप से पूजा की जाती है। गाय का दूध, गन्ना, सिंघाड़ा, संतरा, सेब, मूली, नींबू, कच्ची हल्दी व चावल का बना लड्डू और रक्षा सूत्र के पुरोहित व पूज्यनीय विधि विधान से पूजन कराते हैं। महिलाएं ऐसी साड़ी या धोती पहनती हैं जिसमे काले रंग का प्रयोग न हो।

सबसे पहले व्रती करतीं हैं भोजन

रहीमनगर विमला चौहान ने बताया कि कार्तिक मास की चतुर्थी को नहाय खाय से व्रत की शुरुआत होती है। लौकी-भात (अरवा चावल) व दाल बनाई जाती है। इन दिन रसोई को पूरी तरह साफ करके व्रती महिलाएं अलग चूल्हे पर इसे पकाती हैं। दिनभर व्रत रखने के साथ ही देर शाम इसका सेवन करती हैं। परिवार का कोई भी सदस्य तब तक भोजन नहीं करता है जब तक व्रती महिलाएं भोजन कर लें।

 

नहाय-खाय आज से शुरू 

व्रती सुबह स्नान-ध्यान के बाद अरवा चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी का प्रसाद ग्रहण करेंगे। सोमवार को खरना है। इस दिन शाम में गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण किया जाता है। इसके बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाएगा। मंगलवार की शाम अस्ताचलगामी सूर्य और बुधवार की सुबह उगते सूर्य को अघ्र्य दिया जाएगा। 

छठ अनुष्ठान  

11 नवंबर - रविवार  - नहाय-खाय

12 नवंबर - सोमवार   - खरना

13  नवंबर - मंगलवार - प्रथम अघ्र्य

14 नवंबर - बुधवार - उगते सूर्य को अघ्र्यदान और पारण  


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