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तीर्थस्थल ही नहीं, पर्यटकों के लिए भी रामनगरी में है खास आकर्षण, जानिए यहां के दर्शनीय स्थल Ayodhya News

अयोध्या एक तीर्थस्थल ही नहीं पर्यटक स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Wed, 25 Sep 2019 05:51 PM (IST)Updated: Thu, 26 Sep 2019 01:38 PM (IST)
तीर्थस्थल ही नहीं, पर्यटकों के लिए भी रामनगरी में है खास आकर्षण, जानिए यहां के दर्शनीय स्थल Ayodhya News
तीर्थस्थल ही नहीं, पर्यटकों के लिए भी रामनगरी में है खास आकर्षण, जानिए यहां के दर्शनीय स्थल Ayodhya News

अयोध्या, जेएनएन। अयोध्या तीर्थनगरी के रूप में तो प्रतिष्ठित है ही, पर्यटन की भी संभावना से भरी-पूरी है। अयोध्या को शिखर का स्पर्श तो त्रेता युग में भगवान राम के जन्म से मिला पर यह भगवान राम के पीढ़ियों पूर्व से ही गौरवान्वित रही है।

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रामकथा के प्रतिनिधि ग्रंथ वाल्मीकि रामायण के अनुसार, यह नगरी अनादिकालीन है। वैदिक परंपरा की मानविकी के अनुसार, प्रथम पुरुष माने जाने वाले महाराज मनु ने इस नगरी की स्थापना की। मनु की उत्पत्ति सृष्टिकर्ता ब्रह्मा से मानी जाती है। ब्रह्मा के पुत्र मरीचि थे। मरीचि के कश्यप। कश्यप के विवस्वान और वैवस्वत मनु इन्हीं के पुत्र थे। इसी वंश में छठवीं पीढ़ी के इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया। इसी वंश की 38वीं पीढ़ी में महाराज दशरथ हुए। भगवान राम इन्हीं दशरथ के पुत्र थे। इक्ष्वाकु वंशीय नरेशों के प्रताप से सेवित-संरक्षित रामनगरी निरंतर आरोह की ओर गमन करती रही। भगवान राम की कुछ पीढ़ियों बाद अयोध्या की आभा-प्रभा भले क्षीण पड़ने लगी पर गौरवमय अतीत की विरासत अभी भी प्रवाहमान है। पुण्य सलिला सरयू भगवान राम की 33वीं पीढ़ी पूर्व महाराज इक्ष्वाकु के समय से ही हिमालय की उच्च उपत्यका से निकल कर अयोध्या को अभिसिंचित करने लगी थीं। रामकथा से ज्ञात होता है कि सरयू नदी भगवान राम को अति प्रिय थी।

युगों के सफर के बाद भी सरयू की सुरम्यता बरकरार है और इस नदी की गणना देश की चुनिंदा स्वच्छ नदियों में होती है। आज भी यदि सरयू आस्था की पर्याय है, तो पर्यटक भी सरयू की ओर बरबस खिंचे चले आते हैं। समय के चक्र में यदि रामनगरी की प्राचीनता-पौराणिकता धूमिल पड़ी, तो भारतीय लोककथाओं के नायक महाराज विक्रमादित्य ने दो हजार वर्ष पूर्व रामनगरी का जीर्णोद्धार कराया। कनकभवन, हनुमानगढ़ी, नागेश्वरनाथ, छोटी देवकाली जैसे पौराणिकता के प्रतिनिधि मंदिर विक्रमादित्य के समय के ही माने जाते हैं, जो अपनी प्राचीनता और विरासत के साथ स्थापत्य की सृृष्टि से भी अहम हैं। रामनगरी में पांच दर्जन से अधिक कुंडों का भी वजूद है। उपेक्षा के बावजूद वे गौरवमय अतीत के संवाहक और पर्यटन की संभावना से युक्त हैं। जैन धर्म के संस्थापक भगवान ऋषभदेव सहित पांच तीर्थंकरों की जन्मभूमि होने के गौरव से विभूषित अयोध्या कालांतर में संत रामानुज एवं संत रामानंद परंपरा के अचार्यों सहित सिख गुरुओं एवं सूफी संतों की पंरपरा से भी अनुप्राणित है। यह परंपरा नगरी की साझी विरासत के साथ पर्यटन के क्षितिज पर भी चार-चांद लगाती है। 

 

कनकभवन- श्वेत संगमरमर से निर्मित कनकभवन स्थापत्य का शानदार नमूना है। मान्यता है कि विवाह के बाद अयोध्या आईं मां सीता को रानी कैकेयी ने यह भवन मुंह दिखाई में दिया था। युगों की यात्रा में यदि कनकभवन भग्न हुआ, तो भगवान कृष्ण और महाराज विक्रमादित्य जैसी विभूतियों ने इस धरोहर का जीर्णोद्धार कराया। आज कनकभवन के जिस मनोहारी स्वरूप का दर्शन होता है, उसका निर्माण ओरछा की महारानी वृषभानु कुंवरि ने 19वीं शताब्दी के मध्य में कराया था।

हनुमानगढ़ी- मान्यता है कि भगवान राम के समय उनके राज प्रासाद रामकोट के आग्नेय कोण पर हनुमान जी की चौकी इसी स्थल पर थी। भगवान राम जब स्वधाम को गए, तब अयोध्या का प्रभार हनुमान जी को दे गए। हनुमान जी ने इसी स्थान से अयोध्या की सेवा की। 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में यह स्थान मिट्टी का ढूह बनकर रह गया था पर यहां के पुजारी बाबा अभयरामदास की आध्यात्मिक शक्तियों से प्रभावित अवध के तत्कालीन नवाब ने हनुमान जी का मंदिर किले की शक्ल में निर्मित कराया। आस्था के साथ यह मंदिर शानदार स्थापत्य का भी उदाहरण है। 

गुप्तारघाट- सरयू का यह घाट भगवान राम के स्वधाम गमन का गवाह है। सरयू के प्रशस्त प्रवाह से स्पर्शित घाट दुनियादारी से दूर किसी और लोक की खबर देता है। इन दिनों 40 करोड़ की लागत से यहां नया घाट बनाया जा रहा है। निर्माणाधीन घाट तैयार होने के साथ पर्यटन की भी संभावना प्रशस्त करेगा। 

भरतकुंड- रामकथा के प्रतिनिधि ग्रंथों के अनुसार भगवान राम जब वन को गए, तब भरत ने राजधानी के आग्नेय कोण पर निर्जन स्थान पर तपस्यारत रहते हुए राज-काज का संचालन किया। यह स्थल भरत की त्याग-तपस्या का परिचायक होने के साथ विशाल सरोवर के रूप में पर्यटकों को भी आकृष्ट करता है। 

विश्व पर्यटन के क्षितिज पर स्थापित होने की साध पूरी होने की ओर- रामनगरी की विरासत से न्याय का वास्ता देकर 1991 में पहली बार प्रदेश की सत्ता पाने वाले भाजपा नेतृत्व ने नगरी को विश्व पर्यटन के मानचित्र पर स्थापित करने का नारा दिया। इस दिशा में छिटपुट प्रयास भी हुए पर सत्ता से वंचित हो जाने के कारण भाजपा नेतृत्व इस नारे से न्याय नहीं कर सका पर 2014 में नरेंद्र मोदी के पहली बार प्रधानमंत्री बनने और 2017 में प्रदेश में योगी सरकार बनने के साथ इस दिशा में संभावना पुन: परवान चढ़ी। दीपोत्सव इस संभावना का अहम आयाम है, तो राम की पौड़ी का जीर्णेद्धार और दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा के तौर पर भगवान राम की प्रतिमा की स्थापना का प्रस्ताव पर्यटन को दुनिया के मानचित्र पर लाने में निर्णायक साबित होगा। 

 

नवाबों की पुरानी राजधानी- रामनगरी के पर्यटन की संभावना अवध के नवाबों से जुड़ती है। अयोध्या के ही जुड़वां शहर फैजाबाद को नवाबों की पुरानी राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। यद्यपि 19वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में आसिफुद्दौला के समय नवाबों ने अपनी राजधानी फैजाबाद से लखनऊ स्थानांतरित कर ली पर उनके पीछे यहां प्रचुर मात्रा में शाही अवशेष छूट गये। गुलाबबाड़ी के रूप में नवाब शुजाउद्दौला का मकबरा नवाबों के समय की स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। शुजाउद्दौला की पत्नी बहू बेगम का मकबरा के तो कहने ही क्या। पारखियों की नजर में उसे मिनी ताजमहल का दर्जा हासिल है। 

लखनऊ से 135 किलोमीटर दूर स्थित अयोध्या तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। लखनऊ से यहां के लिए प्रत्येक 30 मिनट पर बसों का आवागमन होता है। अयोध्या एवं उससे लगे फैजाबाद रेलवे स्टेशन देश के सुदूर हिस्सों तक रेल सेवा से जुड़े हैं। 


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