Rakesh Tikait on Farm Laws Repeal: राकेश टिकैत का एलान तत्काल वापस नहीं होगा किसान आंदोलन, संसद में रद होने तक करेंगे इंतजार
Rakesh Tikait on Farm Laws Repeal प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तीन कृषि कानून को वापस लेने की घोषणा करने के बाद भी राकेश टिकैत अभी भी किसान आंदोलन को तत्काल खत्म करने के पक्ष में नहीं है। देश भर में चल रहा किसान आंदोलन अभी तत्काल वापस नहीं होगा।
लखनऊ, जेएनएन। भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता और संयुक्त किसान मोर्चा के सह संयोजक राकेश टिकैत ने एलान किया है कि किसान आंदोलन तत्काल वापस नहीं होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शुक्रवार को सुबह ही तीन कृषि कानून को वापस लेने की घोषणा करने के साथ किसानों से घर लौटने की अपील भी की है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तीन कृषि कानून को वापस लेने की घोषणा करने के बाद भी राकेश टिकैत अभी भी किसान आंदोलन को तत्काल खत्म करने के पक्ष में नहीं है। दिल्ली-यूपी के गाजीपुर बार्डर पर किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने प्रतिक्रिया में कहा है कि तत्काल आंदोलन वापस नहीं होगा। टिकैत ने एलान किया है कि देश भर में चल रहा किसान आंदोलन अभी तत्काल वापस नहीं होगा। टिकैत ने कहा कि हम तो उस दिन तक इंतजार करेंगे जब सरकार तीनों कृषि कानून को संसद में रद करेगी। इतना ही नहीं टिकैत ने सरकार के सामने एक और मांग रख दी है।
टिकैत ने कहा है कि सरकार किसानों के साथ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के साथ ही किसानों के हित के दूसरे मुद्दों पर भी बातचीत करें। वह संसद में जाएं और जो भी कार्यवाही है (कृषि क़ानून वापस लेने की) उसको पूरा करें। आज संयुक्त किसान मौर्चा की बैठक है, उसमें सारी चीज़ें तय होगीं। हमारी एक कमेटी बनेगी जो अलग-अलग मुद्दों पर भारत सरकार से बात करेगी।
आंदोलन तत्काल वापस नहीं होगा, हम उस दिन का इंतजार करेंगे जब कृषि कानूनों को संसद में रद्द किया जाएगा ।
सरकार MSP के साथ-साथ किसानों के दूसरे मुद्दों पर भी बातचीत करें : @RakeshTikaitBKU#FarmersProtest
— Rakesh Tikait (@RakeshTikaitBKU) November 19, 2021
उत्तर प्रदेश में पश्चिमी क्षेत्र के किसानों में राकेश टिकैत की अच्छी पैठ है और इन दिनों किसानों के मुद्दों को लेकर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के साथ राष्ट्रीय लोकदल भी सरकार के खिलाफ काफी तेजी से बयानबाजी कर रहे हैं। पंचायत चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी इस आंदोलन का असर देखने को मिला था। माना जा रहा है कि सरकार ने यह फैसला पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ ही प्रदेश के तराई के क्षेत्रों के लिहाज से लिया है।