लिखना जरूरी है: 'मम्मी-पापा'-भाई के लिए एरोप्लेन..मेरे लिए चूड़ी क्यों? Lucknow News
संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौते की 30वीं वर्षगांठ के अवसर पर समाज में बाल अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के इस प्रयास में दैनिक जागरण और यूनिसेफ की साझा पहल।
प्यारे मम्मी-पापा,
मैं आप दोनों से बहुत प्यार करती हूं। मुझे भी आपसे बेशुमार प्यार मिलता है। मेरी हर छोटी-बड़ी फरमाइश पूरा करने वाले आप दोनों इस दुनिया के सबसे प्यारे मम्मी-पापा हो। आपने मुङो कभी किसी चीज के लिए मना नहीं किया। मेरे मन में जब भी कोई उलझन ने जन्म लिया तो मैंने आप दोनों से ही उसका जवाब खोजा। अक्सर मुङो मेरे सवालों के जवाब मिले भी मगर, कुछ सवाल ऐसे भी हैं जिनके उत्तर मैं आज तक ढूंढ रही हूं। कई बार मैंने आप लोगों से अपने ये सवाल दुहराए, पर आपने इन्हें सुनकर भी अनसुना कर दिया। आप दोनों ने ये भी नहीं कहा कि मेरे सवाल बचकाने हैं या इनका कोई जवाब आपके पास नहीं है। आज भी ये सवाल मेरे दिमाग में घूमते हैं, इसीलिए इस चिट्ठी से मैं इन सवालों को एक बार फिर आवाज दे रही हूं।
मम्मी-पापा, कुछ साल पहले का वह दिन आज भी मुङो याद है। मैं स्कूल से लौटी तो देखा अंकल आए थे, वह भाई के लिए एक बड़ा सा एरोप्लेन लाए थे और मेरे लिए छोटी-छोटी लाल चूड़ी। मैंने पूछा कि अंकल आप मेरे लिए एरोप्लेन क्यों नहीं लाएं? इस पर वो बोले, तुम उड़ा नहीं पाओगी। मुझे यह सुनकर बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा और मैंने गुस्से में अंकल को उनकी लाई हुईं चूड़ियां वापस कर दीं। मैंने यह सवाल आप दोनों से भी किया था लेकिन, आप इसे टाल गए।
जब मैं थोड़ा और बड़ी हुई तो देखा कि भाई तो हाफ पैंट पहनकर खेलने के लिए बाहर भी चला जाता है और देर रात घर आता हैं। पर, अगर मैं हाफ पैंट पहनती, तो दादी गुस्सा होने लगती थीं। कभी-कभी तो दादी मुङो अचार खाने से भी रोकती थीं, मुङो नहीं पता था कि लड़की होना और उसका बड़ा होना लोगों को क्यों अखरता है? कई बार हम लड़कियों के लिए वजन को लेकर भी बहुत समस्याएं सामने आती हैं। हमसे ज्यादा तो हमारे रिश्तेदारों को यह चिंता होती है और हिदायत देते रहते हैं कि अपना वजन कम नहीं किया तो शादी नहीं होगी। अक्सर मेरे मन में यह सवाल आता हैं कि क्यों हमेशा केवल हम लड़कियों को ही हर बात समझाई जाती है। कदम-कदम पर सिर्फ हमारे साथ ही टोका-टाकी..।
वहीं, जब हम स्कूली परीक्षाओं पर गौर करते हैं तो देखते हैं कि कई जगह लड़कियों ने लड़कों को पीछे छोड़ते हुए बाजी मार ली है। और तो और अखबारों में भी अक्सर सुर्खियां होती हैं कि शहर की बेटियों ने मारी बाजी, बेटों से कमतर नहीं हैं बेटियां..। मम्मी-पापा, जब ऐसी बातें पढ़ती हूं तो बहुत खुशी मिलती है। ऐसे बहुत से क्षेत्र हैं जहां पर हम लड़कियों का प्रदर्शन लड़कों से बेहतर नहीं तो कमतर भी नहीं है। इसके बाद भी क्यों लड़कियों को हमेशा सहना पड़ता है, उनके साथ यह अंतर क्यों होता है? बस, मेरे मन में बचपन से आज तक ये सवाल घूमा करते हैं, जिनका जवाब मैं ढूंढा करती हूं।
मैं शुक्रगुजार हूं दैनिक जागरण अखबार की, जिसने ‘लिखना जरूरी है’ कॉलम के जरिए मुङो मेरे सवालों को पूछने का मंच प्रदान किया। मुङो उम्मीद है कि ये पत्र पढ़कर मम्मी-पापा, वह अंकल और उनके जैसे दूसरे अभिभावक मेरे मन की पीड़ा समङोंगे.. और शायद मुङो इन अनुत्तरित सवालों से मुक्ति मिलेगी।
आपकी प्यारी बेटी
शिल्पी [कक्षा-12 लखनऊ पब्लिक कॉलिजिएट]
केजीएमयू की मनोरोग रिसर्च साइंटिस्ट अनामिका श्रीवास्तव ने बताया कि आज के दौर में बच्चे हर बात को समझते हैं। ऐसे में अभिभावक बेटा-बेटी के पालन पोषण में समान व्यवहार रखें। छोटी-छोटी वस्तुओं से लेकर पढ़ाई की सुविधा में भी भाई-बहन एक-दूसरे से मिलान करते हैं। कुछ बच्चे घर में मम्मी-पापा से भेदभाव पर खुलेमन से कह भी देते हैं, कई अंदर ही अंदर फील करते रहते हैैं।
यह बात उनकी सोच पर विपरीत प्रभाव डालती है। ऐसे में अभिभावक को खास ध्यान रखना होगा। बच्चों के पालन-पोषण को एक बैंक के फॉमरूला के तौर पर लेना होगा। मसलन, जैसा निवेश करोगे-वैसा ही रिटर्न हासिल होगा। दूसरी बात, यह भ्रम भी निकालना होगा कि बेटे ही उनके बुढ़ापे का सहारा बनेंगे। कई बार बेटियां ही उनके जीवन के अंतिम पड़ाव में मददगार बनती हैं।
अभिभावक दें ध्यान
बच्चों पर अपनी ज्यादा इच्छाएं न थोपें
- पहले बच्चों की क्षमताओं को पहचानें
- इच्छाओं व क्षमताओं में ज्यादा गैप न हो
- ऐसे ही इच्छाएं प्रकट करें, जिसकी बच्चे पूर्ति कर सकें
- माता-पिता समय निकालकर बच्चों के साथ समय अवश्य बिताएं
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