75th Independence Day: काकोरी ट्रेन एक्शन, जिसने दी थी अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती; यहीं से आजादी के आंदोलन को मिली धार
नौ अगस्त 1925 को काकोरी में अंग्रेजों के खजाने को लूट कर स्वतंत्रता आंदोलन को गति मिली थी। देश को आजादी दिलाने के लिए ब्रिटिश राज के खिलाफ छिड़ी जंग में क्रांतिकारियों को हथियार खरीदने थे जिसके लिए अंग्रेजी सरकार के खजाने को लूटने की योजना बनाई गई थी।
लखनऊ, जागरण संवाददाता। लखनऊ के निकट काकोरी ट्रेन एक्शन से क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपने आंदोलन का बिगुल फूंका। घटना ने अंग्रेजी हुकूमत को बुरी तरह हिला दिया था। यह ब्रिटिश सरकार के अस्तित्व को इतनी बड़ी चुनौती थी कि घटना को अंजाम देने वाले क्रांतिकारियों को पकडऩे के लिए हुकूमत ने अपनी पूरी ताकत झोक दी।
लखनऊ से चंद किमी दूर नौ अगस्त 1925 को काकोरी में अंग्रेजों के खजाने को लूट कर प्राप्त धन से स्वतंत्रता आंदोलन को गति मिली थी। देश को आजादी दिलाने के लिए ब्रिटिश राज के खिलाफ छिड़ी जंग में क्रांतिकारियों को हथियार खरीदने थे, जिसके लिए अंग्रेजी सरकार के खजाने (करीब 4600 रुपये) को लूटने की योजना बनाई गई थी। योजना को कामयाब बनाने के लिए शाहजहांपुर में सात अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों ने बैठक कर अपनी रणनीति तय की थी। बैठक चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खां, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, शचींद्र नाथ बक्शी, मन्मथ नाथ गुप्त सहित कई क्रांतिकारी शामिल हुए थे।
यहीं तय हुआ था कि सहारनपुर से लखनऊ आने वाली आठ डाउन पैसेंजर से रोजाना जाने वाले अंग्रेजों के खजाने को लूट लिया जाए। अगले ही दिन योजनाबद्ध तरीके से क्रांतिकारियों ने ट्रेन लूटने की कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो सके। अगर वह इस कोशिश में सफल हो जाते, तो काकोरी कांड की घटना इतिहास में आठ अगस्त को ही दर्ज हो जाती। वे करीब दस मिनट की देरी से वहां पहुंचे थे और उनके पहुंचने के पहले ही ट्रेन निकल चुकी थी। पहली बार असफल होने के बाद नए सिरे से योजना बनाई गई और फिर नौ अगस्त को पूरी ताकत के साथ क्रांतिकारियों ने सफलता पूर्वक घटना को अंजाम दिया।
लखनऊ से चंद किमी दूर नौ अगस्त 1925 को काकोरी में अंग्रेजों के खजाने को लूट कर प्राप्त धन से स्वतंत्रता आंदोलन को गति मिली थी। देश को आजादी दिलाने के लिए ब्रिटिश राज के खिलाफ छिड़ी जंग में क्रांतिकारियों को हथियार खरीदने थे, जिसके लिए अंग्रेजी सरकार के खजाने (करीब 4600 रुपये) को लूटने की योजना बनाई गई थी। योजना को कामयाब बनाने के लिए शाहजहांपुर में सात अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों ने बैठक कर अपनी रणनीति तय की थी। बैठक चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खां, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, शचींद्र नाथ बक्शी, मन्मथ नाथ गुप्त सहित कई क्रांतिकारी शामिल हुए थे। यहीं तय हुआ था कि सहारनपुर से लखनऊ आने वाली आठ डाउन पैसेंजर से रोजाना जाने वाले अंग्रेजों के खजाने को लूट लिया जाए। अगले ही दिन योजनाबद्ध तरीके से क्रांतिकारियों ने ट्रेन लूटने की कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो सके। अगर वह इस कोशिश में सफल हो जाते, तो काकोरी कांड की घटना इतिहास में आठ अगस्त को ही दर्ज हो जाती।
वे करीब दस मिनट की देरी से वहां पहुंचे थे और उनके पहुंचने के पहले ही ट्रेन निकल चुकी थी। पहली बार असफल होने के बाद नए सिरे से योजना बनाई गई और फिर नौ अगस्त को पूरी ताकत के साथ क्रांतिकारियों ने सफलता पूर्वक घटना को अंजाम दिया। क्रांतिकारी राजेंद्र नाथ लाहिड़ी ने सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन की चेन खींचकर उसको रोक दिया, फिर राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफाक उल्ला खां, चंद्रशेखर आजादी और वीर सपूतों ने ट्रेन पर धावा बोला। इसमें जर्मनी में बनी माउजर पिस्टल का इस्तेमाल किया गया था। इस घटना से बौखलाई अंग्रेजी सरकार ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी और क्रांतिकारियों पर सरकार के खिलाफ सशस्त्र युद्ध छेडऩे, सरकारी खाजाना लूटने और हत्या करने का केस चलाया। क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी पर पांच हजार रुपए का ईनाम भी घोषित किया गया। करीब दस महीने मुकदमा चला। इस मुकदमें में करीब दस लाख रुपये खर्च हुए।
किस क्रांतिकारी को मिली क्या सजा
- राम प्रसाद बिस्मिल, फांसी
- अशफाक उल्लाह खां, फांसी
- रोशन सिंह, फांसी
- राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, फांसी
- चंद्रशेखर आजाद, फरार घोषित
- (अल्फ्रेड पार्क इलाहाबाद में पुलिस संघर्ष में बलिदान)
- शचींद्र नाथ सान्याल, आजन्म कैद
- योगेश चंद्र चटर्जी, आजन्म कैद
- गोविंद चरण कर, आजन्म कैद
- शचींद्र नाथ बक्शी, आजन्म कैद
- मुकुंदी लाल गुप्त, आजन्म कैद
- मन्मथ नाथ गुप्त, 14 वर्ष कैद
- विष्णु शरण दुबलिश, 10 वर्ष
- सुरेश चंद्र भट्टाचार्य, 10 दस
- राम कृष्ण खत्री, 10 वर्ष
- राजकुमार सिन्हा, 10 वर्ष
- प्रेम कृष्णा खन्ना, पांच वर्ष
- भूपेंद्र नाथ सान्याल, पांच वर्ष
- राम दुलारे त्रिवेदी, पांच वर्ष
- प्रणवेश कुमार चटर्जी, चार वर्ष
- राम नाथ पांडे, तीन वर्ष
- बनवारी लाल, दो वर्ष
दो चरणों में चला था क्रांतिकारियों पर मुकदमाः जब देश की स्वतंत्रता के लिए महात्मा गांधी ने मुंबई में अहिंसा के साथ अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन की शरुआत की, उसी दिन नौ अगस्त 1925 को लखनऊ से चंद किमी की दूरी पर अंग्रेजों के खिलाफ एक बड़ी हिंसात्मक आंदोलन की नींव रखी गई। राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में कई क्रांतिकारियों ने मिलकर सरकारी खजाने से लदी ट्रेन को लूट लिया। जिसे बाद में काकोरी ट्रेन कांड का नाम दिया गया। खजाने लूटने से अंग्रेजी सरकार को बहुत बड़ा झटका लगा था। इसलिए सरकार ने उस कांड में शामिल क्रांतिकारियों को पकडऩे के लिए अपनी सारी शक्ति झोंक दी थी। कांड में शामिल चंद्र शेखर आजाद फरार हो चुके थे, लेकिन अन्य क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर उनपर मुकदमा चलाया गया। यह मुकदमा दिसंबर 1925 से अगस्त 1927 तक राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में कई क्रांतिकारियों ने मिलकर सरकारी खजाने से लदी ट्रेन को लूट लिया। दिसंबर 1925 से अगस्त 1927 तक लखनऊ के रोशनद्दौला कचहरी फिर बाद में ङ्क्षरक थियेटर में यह मुकदमा दो चरणों में चला।