Janata Curfew : नवाबी शहर ने भांपी मौके की नजाकत... जिम्मेदारी, अदब और तहजीब का सन्नाटा
Janata Curfew सन्नाटा देख बेशक दिल बैठा जा रहा था लेकिन अगले ही पल यह ख्याल दिलो-दिमाग को पूरी ऊष्मा देता कि हम कितने अनुशासित परिपक्व और जागरूक हो चुके हैं।
लखनऊ [पवन तिवारी]। Janata Curfew : उन्मादी न उपद्रवी। दंगाई न पत्थरबाज। वज्र न दंगा नियंत्रण वाहन। अर्द्धसैनिक बल न संगीनों के साए। बैरीकेड न कोई बांस बल्ली। न कोई रोक-छेंक। यह कैसा कर्फ्यू? और क्यों? जनता के लिए जनता का कर्फ्यू। जैसा कि 19 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी जी ने देशवासियों से अपील की थी। पूरी दुनिया के लिए खौफ का पर्याय बन चुके एक खतरनाक वायरस को नेस्तनाबूद करने की जंग लड़ने वाला कर्फ्यू।
लखनऊ ने मौके की नजाकत भांपी। तहजीब, अदब और जिम्मेदारी की नई इबारत लिख दी। सड़कों पर बिछी सन्नाटे की चादर इसकी मूक गवाही दे रही थी। सन्नाटा देख बेशक दिल बैठा जा रहा था, लेकिन अगले ही पल यह ख्याल दिलो-दिमाग को पूरी ऊष्मा देता कि हम कितने अनुशासित, परिपक्व और जागरूक हो चुके हैं। यह बात भी हर्षित-पुलकित करती है कि सोशल मीडिया की तमाम अफवाहों को दरकिनार कर हम जेहन में यह बात बैठा चुके हैं कि इस महासमर में विजयश्री हासिल करने को हमें सिर्फ और सिर्फ एकांत में रहने की रणनीति अपनानी होगी।
बात शुरू करते हैं राजधानी स्थित एशिया के सबसे पार्क जनेश्वर मिश्र से। संडे यानी फंडे। इस पार्क में मौज-मस्ती का सबसे मुफीद दिन। टिकट की खिड़की बंद। मुख्य द्वार बंद। 376 एकड़ एरिया में फैला यह पार्क निर्जन था। 40 एकड़ में विस्तीर्ण मानवनिर्मित झील का पानी स्थिर था। मछलियां सतह पर थीं। विस्मित भी। जिन पॉइंट्स पर पर्यटक उन्हें चारा देते थे, आज वहां कोई न था। पार्क की नीरवता ही नीरवता से पूछती -क्या हुआ?
हमारी सबसे करीबी मित्र इन वनस्पतियों को शायद यह पता नहीं कि उनके सबसे बड़े दोहनकर्ता इंसान ने खुद को कितने बड़े खतरे में फांस दिया है। पार्क से गोमतीनगर एक्सटेंशन की ओर बढ़ेंगे तो एक तिराहा पड़ता है। वहां नए जमाने और रंग-ढंग की एक चाय की दुकान है। घर में स्वादिष्ट से स्वादिष्ट चाय मिली हो, पर यहां दोस्तों के साथ खड़े होकर चाय की चुस्की और चकल्लस न की तो सब बेस्वाद। आज न पानी खौल रहा न चाय उबल रही। उबल रहा तो बस एक जज्बात कि जल्द हम इस आफत से उबर सकें।
अरे, यह शहीद पथ क्यों मौन है? गाड़ियों के फर्राटे की आवाज की जगह गूंज रही है सिर्फ एक आवाज- सांय सांय। बीच-बीच में बसें इस सन्नाटे को चीरतीं हैं। हुसैड़िया चौराहे पर कोई हलचल नहीं। गोमतीनगर का हजरतगंज कहा जाने वाला पत्रकारपुरम चौराहा भी सूनेपन की जद में है। आम दिनों में आप यहां बाइक खड़ी करने भर की जगह को तरस जाएंगे, पर अब किसी राहगीर की साइकिल भी देखने को न मिली। कैप्टन मनोज पांडेय चौराहा लोहिया पार्क, अंबेडकर पार्क, रिवर फ्रंट और 1090 चौराहे पर ऐतिहासिक सन्नाटा।
शहर की लाइफलाइन गोमती ने जैसे चुप्पी साध ली हो। बैकुंठधाम पर चिताओं की राख ठंडी है। काश, ऐसा हमेशा हो। निशातगंज में हों और जाम में न फंसें। यह कल्पना नहीं, हकीकत थी। बेगम हजरत महल पार्क, ग्लोब पार्क सब बंद। कैसरबाग में वीरानगी। घंटाघर की रौनक सिमटकर घरों के आंगन में कैद हो गई थी। चौक की चकल्लस। आलमबाग की भीड़भाड़। सब पर कफ्र्यू। यह कफ्र्यू जरूरी है। यह वीरानगी भी। सबसे खास बात-यह सब स्वत:स्फूर्त। बिना किसी जोर-जबर्दस्ती या बल प्रयोग के।
जॉन एलिया का एक शेर है-
खामोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी
कोई हंगामा बरपा क्यूं करें हम