बटरस्कॉच, अंगूरी और संतरी, आगरा के स्वाद आपको हमेशा रहेंगे याद
आगरा की आन और शान पेठा, यूं ही विश्वभर में प्रसिद्ध नहीं है। बिना स्वाद के एक फल में विभिन्न फ्लेवर्स का जायका मिलाकर दिया गया रूप पेठे की विशेषता और स्वाद दोनों को बढ़ा रहा है।
आगरा [तनु गुप्ता]। ताजमहल का दीदार करने वाले अपने जेहन में ताज की खूबसूरती के साथ यहां की मिठास को भी साथ लेकर जाते हैं। शहर की आन और शान पेठा, यूं ही विश्वभर में प्रसिद्ध नहीं है। बिना स्वाद के एक फल में विभिन्न फ्लेवर्स का जायका मिलाकर दिया गया रूप पेठे की विशेषता और स्वाद दोनों को दिन प्रतिदिन बढ़ा रहा है। इसे पसंद करने वालों ने आगरा की इस मिठाई को ग्लोबल मिठाई बना दिया है।
कभी खांड और केवड़े का स्वाद लिये पेठा आज 56 से भी अधिक फ्लेवर्स के कारण मिठाइयों को भी पीछे छोड़ रहा है। ग्लोबल मार्केट में बढ़ी पेठे की डिमांड के चलते आज करीब पेठे का दैनिक कारोबार दो करोड़ रुपये पहुंच चुका है। पेठे की एतिहासिकता और स्वास्थ विशेष मिठास को समझते हुए पिछले दौरे में मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने भी पेठे के कारोबार को विश्वस्तरीय पहचान बनाने की बात कही थी।
गोकुल चंद के प्रयास से पेठे में नई आई मिठास
प्राचीन पेठा के स्वामी राजेश अग्रवाल बताते हैं कि उनके पिता गोकुल चंद गोयल ने पेठे को गुड़ की मिठास से अलग खांड की मिठास दी थी। खांड की चाशनी और केवड़ा मिलाकर पेठे का नया स्वाद उन्होंने ईजाद किया था। 1940 में नूरी दरवाजा में दुकान की स्थापना की और जन जन में केवड़ा युक्त पेठा का स्वाद प्रसिद्ध हो गया।
महाभारत काल से उपयोग में आता रहा है पेठा
महाभारत काल से आयुर्वेद में पेठे को औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। आयुर्वेदाचार्य मनोज वर्मा के अनुसार सदियों से लोग अम्लावित्त, रक्तविकार, वात प्रकोप, जिगर, स्त्री रोग आदि बिमारियों में इसका प्रयोग करते थे। जलने की दशा में भी पेठे से बनी दवा का प्रयोग लाभकारी होता है। कुम्हड़ा नाम के फल से पेठा बनाया जाता है। औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण इसे संस्कृत शब्द कूष्मांड के नाम से अनेक चिकित्सीय विधियों में प्रयोग करते हैं। पेठे की मिठाई में किसी तरह की चिकनाई का प्रयोग नहीं होता है। यह मिलावट से रहित, कम वसा वाला और भरपूर फाइबरयुक्त होता है।
मिट्टी की हांडी में बिकता था अंगूरी पेठा
1945 के बाद सफेद कुम्हडा को गोदकर और खांड के स्थान पर चीनी और सुगंध का प्रयोग करते हुए सूखा पेठा के साथ रसीला पेठा भी बनाया गया जिसे अंगूरी पेठा कहा जाने लगा। इसे मिट्टी की हांडी में रखकर बेचा जाता था। जिससे इसका स्वाद और बढ़ जाता था। चीनी और सुगंध के बाद पेठे में केसर और इलाइची के साथ नए प्रयोग और स्वाद शामिल हुए।
एक- दो वैरायटी से हुईं 56 से ज्यादा वैरायटी
सूखा पेठा, अंगूरी पेठा और केसर युक्त पेठे के स्वाद में वर्ष 2000 के बाद नई क्रांति आई। राजेश बताते हैं कि दो से चार प्रकार के पेठे की वैरायटी में नये प्रयोग करके 56 से ज्यादा पेठे के नये स्वाद शामिल किए गए। कारण बना नई पीढ़ी को परंपरागत मिठाई के स्वाद के करीब रखना और चॉकलेट, मिठाई, फास्ट फूड की रेस में पेठे की वैरायटी और क्वालिटी को आगे लाना। इसी विचार के साथ शालीमार, रसभरी, बादाम गडेली, पाइनेप्पल लड्डू, मेवावाटी, सैंडविच, शाही अंगूर, जैली, गुजिया पेठा, दिलकश पेठा, गुलाब लड्डू, पान पेठा आदि नये फ्लेवर शामिल किए गए।
इनमें पान पेठा और गुलाब लड्डू को युवा पीढ़ी सबसे ज्यादा पसंद करती है। गुलाब लड्डू पेठे को घिसकर पेस्ट बनाकर गुलकंद और मेवा भरकर बनाया जाता है। पान पेठा सबसे महंगा बिकता है। इसकी कीमत 180 से लेकर 220 रुपये प्रति किलो तक होती है। यह पेठा सिर्फ एक या दो दिन ही रखा जा सकता है। अब मधुमेह के रोगियों के लिए भी शुगर फ्री पेठा बनने लगा है।
मशीन ने काम किया आसान फिर भी जटिल है पेठा बनाने का काम
जिस स्वाद को हम मिनटों में चट कर जाते हैं, पेठा का वो स्वाद जुबान पर चढ़ा रहे इसके किए खासी मेहनत लगती है। सफेद कुम्हडे को धोकर उसके चार टुकड़े कर लिए जाते है। बीज वाला हिस्सा और छिलकों को अलग कर जो गूदा बचता है उसे एक विशेष प्रकार की गोदनी मशीन से गोदा जाता है। दस वर्ष पहले तक पेठा गोदने का काम हाथ से किया जाता था, अब मशीन के कारण इंसानी मेहनत आधी रह गई है। गोदन प्रक्रिया के बाद पेठे के टुकड़ों को लगभग एक घंटे तक चूने के पानी में डाला जाता है।
इसके बाद सांचों की मदद से छोटे छोटे टुकड़े काटकर 100 किलो पेठा 400 लीटर पानी से तीन बार धोया जाता है। जब यह टुकड़े पूरी तरह साफ हो जाते हैं तो इनको उबाला जाता है। उबालते समय पानी में थोड़ी सी फिटकरी डाली जाती है ताकि चूने का कोई भी अंश बाकी न रह जाए। फिर चीनी की पतली चाशनी के घोल में टुकड़ों को डालकर दो से तीन घंटे तक उबाला जाता है। अगर सूखा पेठा बनाना है तो चाशनी पूरी तरह मिल जाने पर पेठे को सुखा लिया जाता है और गीला पेठा बनाने के लिए चाशनी की निर्धारित मात्रा बचने पर पेठे को आग से उतारकर उसमें मिलाया जाता है।
आगरा का पानी बढ़ाता है पेठे का स्वाद
पेठे की मिठास जुबान पर आते ही एक सवाल जरूर मन में उभरता है कि आखिर पेठा सिर्फ आगरा का ही क्यों प्रसिद्ध है? ऐसा क्या है यहां जो और कहीं नहीं है? पेठा जबकि महाराष्ट्र, चेन्नई और राजस्थान के कई शहरों में भी बनता है लेकिन आगरा का पेठा देश ही नही बल्कि पूरी दुनिया में अपने स्वाद के लिये जाना जाता है। जानकारों का कहना है कि आगरा के पानी में वो तासीर है जो पेठे जैसे कसैले फल को भी स्वादिष्ट मिठाई में बदल देता है। यहां बनने वाला पेठा स्वादिष्ट और चमकीला होता है। यह 15 दिनों तक खराब भी नहीं होता। इससे इतर अन्य शहरों में पेठा बनाने का प्रयास किया गया तो न वो चमक आई और न स्वाद। दो- तीन दिन बाद ही पेठा प्राकृतिक रूप में भी बदलकर काला होने लगता है।
हजारों लोगों की रोजी- रोटी है पेठा कारोबार
पेठा कारोबार से करीब 50,000 से अधिक लोग जुड़े हुए हैं। आम दिनों में करीब 18 से 20 टन पेठा बनता है। इसकी खपत त्योहारों और शादियों के वक्त ज्यादा होती है। शहर के नूरी दरवाजा, गुड़ की मंडी, फुलट्टी और पेठा गली इलाके में ये काम बहुतायत में होता है।
एक कुम्हडे से बनता है पांच किलो पेठा
एक कुम्हडे का वजन एक किलो से 30 किलो तक होता है। सात-आठ किलो कच्चे फल से करीब पांच किलो पेठा तैयार हो जाता है। शहर में करीब 23 आढ़त व्यापारी हैं जो इस कच्चे फल की सप्लाई शहर मे करते हैं। हर सीजन मे इसकी खेती अलग इलाकों मे होती है। गर्मियों में बरेली, सांकड़ा और कार्तिक माह में कानपुर, इटावा, औरेया और मैनपुरी जिलों मे इसकी खेती की जाती है। शहर में प्रतिदिन लगभग एक कारखाने में डेढ़ कुंतल पेठा बनाने के लिये करीब 100 किलो चीनी, 1200 लीटर पानी की खपत होती है। सीजन के हिसाब से यह डिमांड घ्ाटती-बढती भी रहती है।
ताज के कारीगर खाते थे पेठा
पुरानी कहानियों के अनुसार 17 वीं शताब्दी में ताजमहल के निर्माण के दौरान मजदूरों और कारीगरों को पेठा खिलाया जाता था, जिससे उन्हें भरपूर ऊर्जा मिलती थी और वे स्फूर्ति से अपना काम करते थे।
ऑनलाइन हुई अब पेठे की डिमांड
शहर के कई प्रसिद्ध पेठा विक्रेताओं ने अपने ब्रांड की वेबसाइट बना रखी है। कई दूसरी वेबसाइट के माध्यम से अपने ब्रांड को प्रमोट कर रहे हैं। ट्रांसपोर्ट के अलावा अब पेठा भारतीय मिठाई के रूप में देश दुनिया में बिक रहा है।
पेठे की मिठास संग दालमोंठ की चटकारा
मीठे का स्वाद नमक बिना अधूरा है, यह सोचकर ही दशकों पहले गोकुल चंद गोयल ने पेठे के साथ दालमोंठ नमकीन की भी शुरूआत कर दी थी। औषधीय गुणों से भरपूर पेठे के साथ 14 औषधीय मसालों से बनी दालमोंठ उन्होंने बनानी शुरू की। बेसन के सेव और काली मसूर की दाल में काली मिर्च, बड़ी- छोटी पीपल, धनिया, सौंठ, काला नमक, समुंद्री नमक, बड़ी इलायची आदि मसालों से बनी दालमोंठ पेठे के साथ विशेष डिमांड में रहती है।
पेठे की वेराइटी तय करती है भाव
सूखा पेठा, 100 रुपये किलो
केसर पेठा, 130
केसर अंगूरी पेठा, 140
कोकोनट पेठा, 160
रसभरी पेठा, 200
शालीमार पेठा, 200
मेवबाटी पेठा, 240
पान पेठा 12 पीस 130 रुपये के
चॉकलेट पेठा, 240
संतरा पेठा, 240
शाही अंगूरी पेठा, 340
बटरस्कॉच बर्फी, 220
जैली पेठा, 360