उत्तर प्रदेश में कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाने के लिए खिलाई जाएगी आइवरमेक्टिन दवा
यूपी में कोरोना वायरस के बिना लक्षण वाले और हल्के लक्षण वाले रोगियों उनके संपर्क में आए व्यक्तियों व स्वास्थ्यकर्मियों को संक्रमण से बचाने के लिए आइवरमेक्टिन टैबलेट दी जाएगी।
लखनऊ, जेएनएन। उत्तर प्रदेश में कोरोना वायरस के बिना लक्षण वाले और हल्के लक्षण वाले रोगियों, उनके संपर्क में आए व्यक्तियों और स्वास्थ्यकर्मियों को संक्रमण से बचाने के लिए आइवरमेक्टिन टैबलेट दी जाएगी। स्वास्थ्य विभाग ने गुरुवार को कोरोना उपचार के लिए यह टैबलेट दिए जाने के आदेश सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों (सीएमओ) को दिए। इसे लेकर महानिदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य डॉ. डीएस नेगी की अध्यक्षता में तकनीकी विशेषज्ञों की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई और उसमें किसे कब कितनी डोज यह दवा दी जानी चाहिए यह तय किया गया। फिलहाल यूपी में कोरोना संक्रमितों के इलाज के लिए इस दवा के प्रयोग को हरी झंडी दे दी गई।
अपर मुख्य सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अमित मोहन प्रसाद की ओर से सभी सीएमओ को निर्देश दिए गए हैं कि वह तत्काल इस दवा का उपयोग कोरोना के इलाज के लिए करें। कोरोना के बिना लक्षण वाले व हल्के लक्षण वाले रोगियों को भर्ती होते ही प्रथम तीन दिन तक रात में भोजन के दो घंटे के बाद आइवरमेक्टिन टैबलेट दी जाएगी। यही नहीं इसके साथ डाक्सीसाइक्लीन औषधि दिन में दो बार पांच दिनों तक दी जाएगी।
वहीं कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज के संपर्क में आए व्यक्तियों को रोग के संभावित संक्रमण से बचाव के लिए व्यक्ति को पहले व सातवें दिन रात्रि के भोजन के दो घंटे के बाद आइवरमेक्टिन टैबलेट खिलाई जाएगी। यही नहीं कोविड-19 के उपचार व नियंत्रण में लगे स्वास्थ्य कर्मियों को भी इसके संक्रमण से बचाने के लिए यह दवा खिलाई जाएगी। स्वास्थ्य कर्मियों को पहले, सातवें व 30 वें दिन तथा आवृत्ति क्रम में प्रति महीने में एक बार आइवरमेक्टिन दवा दी जाएगी।
50 वर्ष पहले खोजी गई पेट में कृमिनाशक दवा आइवरमेक्टिन कोरोना वायरस पर भी असरकारी है। आइवरमेक्टिन की खोज 1970 में हुई थी। कृमिनाशक इस दवा के कई फायदे हैं। इसका उपयोग रिवर ब्लाइंडनेस, एस्कारिया सिस, फाइले रिया, इंफ्लूएंजा, डेंगू में भी किया गया। मरीजों में यह दवा उपयोगी भी साबित हुई है। वहीं, दवा कोरोना वायरस का असर कम करने में भी समर्थ है। आइवरमेक्टिन दवा कोशिका से वायरस को न्यूक्लियस में पहुंचने से रोक देती है। ऐसे में वायरस मरीज के डीएनए से मिलकर मल्टी फिकेशन नहीं कर पाता है। लिहाजा, इस सस्ती दवा के जरिए कई मरीजों की जिंदगी बचाई जा सकती है।